HomeAdivasi Dailyदेश के आदिवासी इलाक़ों में कोविड वैक्सिनेशन की मुश्किल है राह

देश के आदिवासी इलाक़ों में कोविड वैक्सिनेशन की मुश्किल है राह

मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल वैक्सिनेशन की एक बैहतर तस्वीर पेश करते हैं. इन राज्यों के आदिवासी इलाक़ों में कोविड वैक्सिनेशन अभियान ने लय नहीं पकड़ी है. ज़्यादातर आदिवासी इलाक़ों में वैक्सीन के बारे में ग़लत धारणाएं स्वास्थ्य कर्मियों की मुश्किल बढ़ा रही हैं.

भारत के आदिवासी इलाक़ों में कोविड-19 वैक्सिनेशन की एक दिलचस्प कहानी है. ज्यादातर जगहों पर वैक्सीन को लेकर झिझक है, क्योंकि ग़लतफ़हमियां बहुत हैं. ऐसे कई गांव हैं जहां अभी तक एक भी डोज़ नहीं लगाया गया है.

आबादी के इस वर्ग के बीच बस कुछ ही राज्यों में वैक्सिनेशन की दर थोड़ी ठीक है. झारखंड और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बीच वैक्सिनेशन कवरेज संतोषजनक है. ऐसा शायद इसलिए है कि यह दोनों ही आदिवासी बहुल राज्य हैं.

लेकिन मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल वैक्सिनेशन की एक बैहतर तस्वीर पेश करते हैं. इन राज्यों के आदिवासी इलाक़ों में कोविड वैक्सिनेशन अभियान ने लय नहीं पकड़ी है. ज़्यादातर आदिवासी इलाक़ों में वैक्सीन के बारे में ग़लत धारणाएं स्वास्थ्य कर्मियों की मुश्किल बढ़ा रही हैं.

केरल के वायनाड में वैक्सिनेशन ड्राइव

महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में आदिवासी राज्य की जनसंख्या का 9.35% हिस्सा हैं. एक तरफ़ जहां राज्य की जनरल आबादी के 38.51% लोगों को वैक्सीन लग चुका है, आदिवासियों की वैक्सिनेशन दर बेहद कम है.

नंदुरबार, गढ़चिरौली और अमरावती जैसे आदिवासी बहुल ज़िलों में यह दर क्रमशः 30.33, 27.72 और 33.41 है.गैर-आदिवासी ज़िलों पुणे, नागपुर और कोल्हापुर में यह दर 50.94, 51.94 और 66.64 है.

मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश में पांच आदिवासी बहुल ज़िलों और लगभग समान आबादी वाले कई ग़ैर-आदिवासी ज़िलों की तुलना करें तो साफ़ है कि आदिवासी बहुल ज़िलों में सिर्फ़ 10-15% लोगों को ही वैक्सीन लगाया गया है. गैर-आदिवासी ज़िलों में यह संख्या 15-19% है.

अलीराजपुर ज़िले के 57 आदिवासी बहुल गांवों में अब तक वैक्सीन की एक भी डोज़ नहीं दी गई है. बैतूल ज़िले में भी 40 से ज़्यादा आदिवासी गांवों का यही हाल है.

राजस्थान

राजस्थान की लगभग 13.5 फीसदी आबादी आदिवासी है. उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर और दौसा उन ज़िलों में से हैं जहां आदिवासियों का एक बड़ा हिस्सा रहता है. इन ज़िलों के आंकड़े साफ़ बताते हैं कि वैक्सिनेशन के मामले में यह ज़िले उन ज़िलों से काफी पीछे हैं जहां जनजातियां अल्पसंख्यक हैं.

76.4% की आदिवासी आबादी के साथ, बांसवाड़ा का वैक्सिनेश प्रतिशत 24.33 है, 70.8% आदिवासी आबादी वाले डूंगरपुर में वैक्सिनेशन दर 20.35 है, 50% वाले उदयपुर में 24.77, और 26.5% वाले दौसा में 22.38.

इनकी तुलना में 0.2% आदिवासी आबादी वाले नागौर में वैक्सिनेशन दर 32.07% है, और 0.4% वाले बीकानेर में 31.24% की दर है.

ओडिशा में बोंडा आदिवासी को लगाया जा रहा वैक्सीन

पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल में भी झारग्राम, पश्चिम मिदनापुर, पुरुलिया और बांकुरा जैसे आदिवासी बहुल ज़िलों में वैक्सिनेशन धीमी गति से हो रहा है. हालांकि राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने जागरुकता अभियान शुरू किया है, लेकिन प्रतिक्रिया अभी भी धीमी है.

झारग्राम में 27,277 खुराकें दी गई हैं. आदिवासी बहुल बेलपहाड़ी में यह आंकड़ा 8395 है. पुरुलिया शहर में 16,308 खुराकें लगाई गई हैं, जबकि आदिवासी बहुल सिरकाबाद में सिर्फ़ 2,395 डोज़ दिए गए हैं.

दरअसल, आदिवासियों के बीच एक डर है कि वैक्सीन लगाने से उन्हें कोई दूसरी बीमारी हो जाएगी, या फिर उनकी मौत भी हो सकती है. इन इलाक़ों में अंधविश्वास और अफ़वाहें एक बड़ी बाधा हैं. वैक्सिनेशन सेंटरों की कमी और उन तक पहुंचने में मुश्किल समस्या को और बढ़ा देती हैं.

झारखंड और छत्तीसगढ़

झारखंड और छत्तीसगढ़ में स्थिति बेहतर है. झारखंड के आदिवासी बहुल ज़िलों लोहरदगा, रांची, गुमला और पलामू में 36.5%, 30.94%, 34.72% और 35.80% वैक्सिनेशन दर है. आदिवासी आबादी कम वाले हज़ारीबाग, कोडरमा और गोड्डा जैसे ज़िलों में यह दर 32.16%, 37.91% और 24.52 है.

हालांकि छत्तीसगढ़ में कई आदिवासी इलाकों में वैक्सिनेशन के आंकड़े कम हैं, लेकिन ऐसे कई ज़िले हैं जिनका प्रदर्शन अच्छा है. मसलन बस्तर और सरगुजा में, जहां आदिवासी आबादी है, वैक्सिनेशन प्रतिशत 80% और 72% से ज़्यादा है. राजधानी रायपुर में 57% और बिलासपुर में 61% आबादी को वैक्सीन लगा दिया है.

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