HomeAdivasi Dailyअब हिंदू उत्तराधिकार कानून आदिवासी महिलाओं के आड़े नहीं आएगा- मद्रास हाईकोर्ट

अब हिंदू उत्तराधिकार कानून आदिवासी महिलाओं के आड़े नहीं आएगा- मद्रास हाईकोर्ट

कोर्ट ने राज्य सरकार को आदिवासी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए केंद्र सरकार के माध्यम से अधिसूचना जारी करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का भी निर्देश दिया.

अब तमिलनाडु की आदिवासी महिलाएं भी पारिवारिक या पैतृक संपत्ति में समान हिस्सेदार होंगी. मद्रास हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि तमिलनाडु में आदिवासी महिलाएं हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1965 के मुताबिक पारिवारिक या पैतृक संपत्ति में समान हिस्सेदारी की हकदार हैं. हाई कोर्ट ने हाल ही में समान उत्तराधिकार की मांग कर रही है आदिवासी महिलाओं का समर्थन‌ किया है.

अदालत ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार कानून आदिवासी महिलाओं को बाहर नहीं करता बल्कि रीति-रिवाजों को सकारात्मक रूप से शामिल करने का इरादा रखता है.

एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने कहा कि भले ही अनुसूचित जनजाति के रीति-रिवाज या प्रथाएं महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त करने से रोकती हो लेकिन ऐसे रीति-रिवाज कानून और सार्वजनिक नीति पर हावी नहीं हो सकते हैं.

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2 के खंड (2) में कहा गया है कि यह अधिनियम अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर तब तक लागू नहीं होगा, जब तक कि केंद्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा अन्यथा निर्देशित न करें.

कोर्ट ने राज्य सरकार को आदिवासी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए केंद्र सरकार के माध्यम से अधिसूचना जारी करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का भी निर्देश दिया.

कोर्ट ने कहा, “तमिलनाडु सरकार राज्य में आदिवासी महिलाओं के समान संपत्ति अधिकार की रक्षा के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 2(2) के तहत केंद्र सरकार के माध्यम से उचित अधिसूचना जारी करने के उद्देश्य से आवश्यक कदम उठाएगी.”

अदालत ने कहा कि सिर्फ अधिसूचना जारी न करने या इसे स्थगित करने से आदिवासी महिलाओं को पारिवारिक संपत्ति में अपना अधिकार प्राप्त करने से वंचित नहीं किया जा सकता है. इस तरह धारा 2(2) को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए पूर्ण रोक के रूप में नहीं समझा जा सकता है.

दरअसल, हाई कोर्ट में अनुसूचित जनजाति से संबंधित एक मां और बेटी की जोड़ी ने याचिका दायर की थी जिसकी सुनवाई के बाद ये फैसला आया है. याचिका में उनकी पारिवारिक संपत्ति में हिस्सेदारी की मांग की गई थी. 

9 दिसंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासी महिलाओं के उत्तराधिकार से जुड़े एक मामले पर सुनवाई के दौरान कहा था कि जब गैर-आदिवासी की बेटी पिता की संपत्ति में समान हिस्से की हकदार है तो आदिवासी बेटी को इस तरह के अधिकार से वंचित करने का कोई कारण नहीं है.

कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मुद्दे की जांच करने और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों में संशोधन करने पर विचार करने का निर्देश भी दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारत के संविधान में समानता के अधिकार की गारंटी दी गई है. लेकिन अफ़सोस की बात है कि संविधान लागू होने के 70 वर्षों बाद भी आदिवासियों की बेटी को समान अधिकार से वंचित किया जा रहा है.

कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार के लिए इस मामले को देखने का सही समय है और अगर जरूरी है तो सरकार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों में संशोधन करे.

दरअसल, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2 (2) के अनुसार, पुरुष और महिला उत्तराधिकारियों के लिए समान हिस्से की गारंटी देने वाला कानून अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर लागू नहीं होता है. ऐसे में अनुसूचित जनजाति की बेटियां पिता की संपत्ति की हकदार बनने से वंचित रह जाती हैं.

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