HomeAdivasi Dailyएशिया का सबसे बड़ा आदिवासी उत्सव - मेदारम जातरा

एशिया का सबसे बड़ा आदिवासी उत्सव – मेदारम जातरा

कई राज्यों के आदिवासी और गैर-आदिवासी भक्त इस मेले में हिस्सा ले रहे हैं.

सम्मक्का-सरक्का जातरी की शुरुआत कन्नेपल्ली गांव से सरक्का की मूर्ति के मेदारम आने के साथ होती है. लाल कपड़े में ढकी मूर्ति को सिंदूर और हल्दी से लदे बर्तन में लाया गया था. सरक्का को पूजा स्थल पर ले जा रहे पुजारियों को छूने की कोशिश करती भीड़ पर क़ाबू पाने के लिए बड़ी मात्रा में पुलिसकर्मी तैनात थे.

कन्नेपल्ली गांव के लिए रवाना होने से पहले श्रद्धालुओं ने जम्पन्ना वागु में स्नान किया. पुजारी भी अपनी परंपरा के अनुसार धारा से होकर गुजरते हैं. श्रद्धालु यह भी मानते हैं कि जम्पन्ना वागु में डुबकी लगाने से सभी रोग ठीक हो जाते हैं.

तेलंगाना के अलग-अलग हिस्सों और आंध्र प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों से आदिवासी और गैर-आदिवासी भक्त इस मेले में हिस्सा ले रहे हैं. इन राज्यों के आदिवासी देवी-देवताओं को अपनी श्रद्धांजलि देने के लिए जंगलों में उमड़ पड़ते हैं.

अनुष्ठानों के हिस्से के रूप में भक्त देवताओं को गुड़ भी चढ़ाते हैं.

जातरा में 1.25 करोड़ लोगों के आने की संभावना है. TSRTC इसके लिए 4,000 बसें खासतौर पर चला रहा है. उम्मीद है कि इनका इस्तेमाल लगभग 30 लाख लोग करेंगे. गोदावरी नदी के किनारे कई राज्यों में बसे आदिवासी दो साल में एक बार महान योद्धा सम्मक्का और सरक्का की वीरता का जश्न मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं.

आदिवासी उन्हें देवी के रूप में पूजते हैं और उनकी रक्षा करने में उनकी बहादुरी की प्रशंसा करते हैं. कोया जनजाति की यह मां-बेटी की जोड़ी क़रीब आठ शताब्दी पहले काकतीय साम्राज्य के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गई थीं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments