ज्यादातर बाल विवाह आदिवासी बस्तियों से होते हैं ऐसे में कर्नाटक के चामराजनगर ज़िला में प्रशासन ने सभी 48 आदिवासी बस्तियों में इस सामाजिक कुप्रथा के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने का फैसला किया है.
ज़िला आदिवासी कल्याण विभाग द्वारा प्राप्त रिपोर्ट और विभिन्न अध्ययनों के मुताबिक ज़िले के अधिकांश आदिवासी गांवों में बाल विवाह बड़े पैमाने पर होते हैं. विवाह में करने वाली अधिकांश लड़कियों की उम्र 12 से 16 वर्ष के बीच होती है और इनकी रिपोर्ट भी नहीं की जाती है.
चामराजनगर ज़िले में लगभग 48 फीसदी भूमि वन क्षेत्र है जिसमें 43 हज़ार से अधिक आदिवासी आबादी है. इनमें से अधिकांश बस्तियों में अभी भी उचित सड़क संपर्क, स्ट्रीट लाइट, पेयजल, परिवहन और अन्य सुविधाएं नहीं हैं. इन आदिवासी बस्तियों के निवासी अभी भी स्वास्थ्य, शिक्षा और जरूरी सामान को खरीदने के लिए मीलों यात्रा करते हैं.
ज़िला आदिवासी कल्याण अधिकारी मंजुला ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि विभाग ने समय-समय पर जारी विभिन्न अदालती सलाह के अनुसार इन सभी बस्तियों में स्थानीय मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, स्वास्थ्य सहायकों और बाल विकास कार्यक्रम अधिकारियों की मदद से घरों में जाकर बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता तेज़ कर दी है. इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने का समय आ गया है.
उन्होंने बताया कि महिला एवं बाल कल्याण विभाग, पुलिस, स्थानीय राजस्व, पंचायत अधिकारियों एवं आदिवासी प्रधान की लगातार निगरानी और सहयोग से इस तरह के विवाहों को रोकने के लिए बस्तियों में पोस्टर, हैंडबिल चिपकाए जाते हैं. उन्होंने इस तरह के बाल विवाहों में वृद्धि के प्रमुख कारणों के रूप में परंपरा, आदिवासी समुदाय की संरचना, शिक्षा की कमी, गरीबी और बेरोजगारी को जिम्मेदार ठहराया.
चामराजनगर ज़िला बाल कल्याण समिति के सदस्य सरस्वती ने सभी आदिवासी युवाओं से अपील की है कि इस समस्या को खत्म करने के लिए चाइल्डलाइन नंबर 1098 पर डायल करके निकटतम पुलिस, राजस्व और पंचायत विभाग के अधिकारियों को रिपोर्ट करें.
ज़िला बुडकट्टू गिरिजाना अभिवृद्धि संघ के अध्यक्ष सी महादेवा ने सरकारी कर्मचारियों को सूचना या शिकायत मिलने पर तेज़ी से कार्रवाई करने को कहा है.
उन्होंने कहा, “बाल विवाह के दुष्परिणामों को उजागर करने वाले पोस्टर लगाने और डोर टू डोर अभियानों से काम नहीं चलेगा. सरकार को दोषियों की पहचान करने के बाद उन्हें सजा देनी चाहिए. क्योंकि आदिवासी परिवारों में अधिकांश महिलाएं और बच्चे एनीमिया और कुपोषण से पीड़ित हैं इसलिए सरकार को स्वस्थ भोजन उपलब्ध कराने के उपाय भी करने चाहिए.”
(Image Credit: The New Indian Express)