HomeAdivasi Dailyआदिवासी जिलों में लाइफस्टाइल डिजीज मौत की वजह: ICMR

आदिवासी जिलों में लाइफस्टाइल डिजीज मौत की वजह: ICMR

ICMR सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि आदिवासी इलाक़ों में बीमार 70 प्रतिशत लोगों की मौत घर पर ही हो जाती है. यानि उन्हें अस्पताल में इलाज नसीब नहीं होता है.

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research) द्वारा भारत के 12 आदिवासी जिलों में किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि गैर-संक्रामक रोग (Non-Communicable Diseases) इन क्षेत्रों में 66 प्रतिशत मौतों का कारण बन रहे हैं.

यह गैर-आदिवासी जिलों (लगभग 63 प्रतिशत) में एनसीडी के कारण होने वाली मौतों के प्रतिशत के बराबर है. जो मुख्य रूप से हृदय रोग, कैंसर, पुरानी सांस की बीमारियाँ और डायबिटीज के कारण हुई.

गैर-संक्रामक रोग के बाद, आईसीएमआर सर्वेक्षण के अनुसार संक्रामक रोग की वजह से 15 प्रतिशत और चोटों की वजह से 11 प्रतिशत अधिकतम मौतें हुईं.

सर्वेक्षण 5 हज़ार से अधिक मृत आदिवासियों के परिवार के सदस्यों के इंटरव्यू पर आधारित था, जिसे 2015 से 2018 के बीच आयोजित किया गया था.

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि अधिकांश आदिवासियों यानि 70 प्रतिशत की मृत्यु घर पर ही हुई. अधिकारियों ने कहा कि यह स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में जागरूकता की कमी के साथ-साथ देश के आदिवासी जिलों में स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी को दर्शाता है.

आईसीएमआर सर्वेक्षण के अनुसार, जो इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Journal of Medical Research) में प्रकाशित हुआ है, मृतक के 5 हज़ार 292 परिवारों से उन्होंने बात की, 70 प्रतिशत ने कहा कि उनके रिश्तेदार घर पर मर गए, 9 प्रतिशत जिला अस्पताल में इलाज के दौरान मर गए, 5 प्रतिशत लोगों की मृत्यु निजी अस्पताल में, वहीं 3 प्रतिशत लोगों की मृत्यु PHC/CHC/ग्रामीण अस्पताल और जबकि 2 प्रतिशत लोगों की मौत मेडिकल कॉलेज/कैंसर अस्पताल में हुई.

लगभग 10 प्रतिशत आदिवासी ऐसे थे जिन्हें याद नहीं था कि मृत्यु कहाँ हुई थी और कुछ अन्य (3 प्रतिशत) जिन्होंने कहा कि उनके रिश्तेदार की मृत्यु स्वास्थ्य सुविधा तक पहुंचने के दौरान रास्ते में हुई थी.

सर्वेक्षण से पता चला है कि लगभग एक-चौथाई मृतक अपनी पहले से मौजूद बीमारी के लिए कोई इलाज नहीं करा रहे थे. बाकी का इलाज या तो जिला अस्पताल (25 प्रतिशत), निजी अस्पताल (20 प्रतिशत), पीएचसी/सीएचसी/ग्रामीण अस्पताल (19 प्रतिशत), मेडिकल कॉलेज/कैंसर अस्पताल (9 प्रतिशत) या स्थानीय डॉक्टरों/जनजातीय चिकित्सकों (13 प्रतिशत) में किया जा रहा था.

ICMR सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि मृत आदिवासियों में से 29 प्रतिशत का हाई ब्लड प्रेशर का इतिहास था जो हृदय रोगों के लिए एक प्रमुख जोखिम कारक है. जीर्ण श्वसन रोग/अस्थमा 17 प्रतिशत, स्ट्रोक (12 प्रतिशत), हृदय रोग (11 प्रतिशत), कैंसर (10 प्रतिशत) और डायबिटीज (9 प्रतिशत) में मौजूद था.

ICMR अध्ययन का हिस्सा रहे डॉक्टर प्रशांत माथुर ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, “यह एक मिथक है कि जनजातीय लोग एनसीडी से प्रभावित नहीं होते हैं, जिन्हें अक्सर गैर-आदिवासियों के रूप में जीवन शैली की बीमारियों के रूप में संदर्भित किया जाता है. यह स्टडी यह स्थापित करता है. परिणामों से यह भी स्पष्ट है कि बहुत से लोग घर पर ही मर जाते हैं जो अपनी बीमारी के बारे में नहीं जानते थे या क्षेत्र में डॉक्टरों या अस्पतालों की बहुत कमी के कारण हो सकता है. हमें उस पर काम करने की जरूरत है.”

उन्होंने इस तथ्य की ओर भी इशारा किया कि बढ़ते शहरीकरण के साथ, यहां तक ​​कि आदिवासी जिलों में भी जीवन शैली और भोजन की आदतों में बदलाव देखा गया है.

आईसीएमआर के नेशनल सेंटर फॉर डिसीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च के डायरेक्टर डॉक्टर माथुर ने कहा, “परिष्कृत खाद्य पदार्थ आदिवासी जिलों में उपलब्ध और उपभोग किए जाते हैं. इसके साथ ही तंबाकू उत्पादों के सभी रूपों की खपत काफी अधिक है, जो कि कुछ आदिवासी जिलों में कैंसर की उच्च घटनाओं से जुड़ा हुआ है.”

(प्रतिकात्मक तस्वीर)

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