HomeAdivasi Dailyक्यों मंडला के आदिवासी कर रहे बांध परियोजनाओं का विरोध

क्यों मंडला के आदिवासी कर रहे बांध परियोजनाओं का विरोध

बसनिया बांध मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी बेसिन पर योजनाबद्ध है. परियोजना फिलहाल घोषित चरण में है. इसे सिंगल फेज़ में विकसित किया जाएगा. परियोजना का निर्माण 2024 में शुरू होने की संभावना है. 3700 करोड़ की लागत से बनने वाले बसनिया बांध से 8780 हैक्टेयर में सिंचाई और 100 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन होना प्रस्तावित है.

मध्य प्रदेश का मंडला (Mandla) ज़िला एक ऐसा क्षेत्र है जो भारतीय संविधान के पांचवे अनुसूची के अंतर्गत आता है क्योंकि यह एक आदिवासी बहुल इलाका है जहां 95 प्रतिशत आदिवासी समुदाय रहता हैं. लेकिन इस जगह में अभी काफी उथल पुथल का माहौल बना हुआ है और आदिवासी लंबे वक्त से यहां विरोध कर रहे हैं क्योंकि बसनिया (Basania) इलाके के घुघरी तहसील के ओढारी गांव में नर्मदा नदी है उसमें एक बांध को बनाया जा रहा है.

इस बांध से इलाके के 31 गांवों के पानी में डूबने की आशंका है. साथ ही यहां रहने वाले 2700 से ज्यादा आदिवासी परिवारों को अपना घर, जमीन, कामकाज छोड़कर कहीं दूसरी जगह विस्थापित किए जाने का अनुमान हैं.

ऐसे में दो दिन के मंडला प्रवास पर आए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes) के सदस्य अनंत नायक (ओडिशा) और संयुक्त सचिव कोनथांग तऊथांग (मणिपुर) से बसनिया बांध प्रभावितो का एक प्रतिनिधिमंडल कांग्रेस विधायक डॉक्टर अशोक मर्सकोले के नेतृत्व में मिला और ज्ञापन दिया.

चर्चा कि शुरुआत करते हुए डाक्टर मर्सकोले ने कहा कि बसनिया सिंचाई परियोजना मापदंड को पूरा नहीं करता है क्योंकि जितनी जमीन डूब रही है उससे मात्र 2435 हेक्टेयर में सिंचाई होगी. बांध केवल विधुत उत्पादन कर निजी कंपनी को व्यवसायिक लाभ दिलाना मात्र है. इस बांध के बनने से आदिवासी समुदाय का कृषि एवं वन भूमि डूब जाएगा जो उनकी आजीविका का मुख्य साधन है, जिससे इनकी जिंदगी तबाह हो जाएगी.

उन्होने आग्रह किया कि आयोग को मंडला ज़िले की विभिन्न परियोजनाओं से विस्थापित आदिवासी परिवारों का आर्थिक, समाजिक और सांस्कृतिक स्थिति का अध्ययन कराना चाहिए. वहीं आयोग के सदस्य ने कहा कि समीक्षक प्रमोद मरावी को इसके लिए प्राथमिक रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है.

बसनिया प्रभावित गांव रमपुरी के नवल सिंह मरावी ने कहा कि इस परियोजना को निरस्त करने से संबंधित प्रस्ताव सभी प्रभावित ग्राम सभा ने  पारित कर राज्य सरकार को भेज दिया है. ओढारी गांव के तितरा मरावी ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा पेसा नियम अधिसूचित कर दिया गया है लेकिन उसका भी अनुपालन नहीं हो रहा है. हमलोग बांध निरस्त के अलावा किसी बात को स्वीकार नहीं करेंगे.

जिला पंचायत अध्यक्ष डॉक्टर संजय कुशराम ने बताया कि क्षेत्र के सांसद और राज्य मंत्री ने प्रभावित लोगों से कहा है कि ग्राम सभा को इस परियोजना से आपत्ति है तो इसे बढाने की कोई बात ही नहीं है.

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग भोपाल के क्षेत्रीय उपनिदेशक आर. के. दूबे ने विधानसभा में बसनिया बांध को विभिन्न कारणों से निरस्त करने सबंधित दस्तावेज की जानकारी आयोग के सदस्य को दिया. आयोग के सदस्य अनंत नायक ने कहा कि आयोग परियोजना के तकनीकी पक्ष के सबंध में कोई निर्देश राज्य सरकार को नहीं दे सकता है. लेकिन परियोजना के चलते आदिवासी समुदाय के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर का संज्ञान आयोग लेगा.

क्या है बसनिया बांध प्रोजेक्ट

बसनिया बांध परियोजना एक 100 मेगावाट जल विद्युत परियोजना है. इस बांध परियोजना की घोषणा साल 2012 में की गई थी. इसके साथ ही इस इलाके में दो और बांध परियोजना रोसरा और राघवपुर भी प्रस्तावित है.

यह बांध मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी बेसिन पर योजनाबद्ध है. परियोजना फिलहाल घोषित चरण में है. इसे सिंगल फेज़ में विकसित किया जाएगा. परियोजना का निर्माण 2024 में शुरू होने की संभावना है. 3700 करोड़ की लागत से बनने वाले बसनिया बांध से 8780 हेक्टेयर में सिंचाई और 100 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन होना प्रस्तावित है.

क्यों हो रहा है विरोध?

मंडला जिले के ओढारी गांव में नर्मदा नदी पर प्रस्तावित बसनिया बांध जिसके चलते मंडला और डिंडोरी ज़िले के आदिवासी बहुल कई गांव प्रभावित होने वाले हैं. इस बांध परियोजना से कई परिवार विस्थापित होंगे. बांध में 6 हज़ार हेक्टेयर से ज्यादा जमीन डूब में आएगी. जिसमें निजी, सरकारी और वन भूमि शामिल है. मंडला ज़िले में प्रस्तावित तीन बांधों में आदिवासी समुदाय की जमीन, प्राकृतिक संसाधन और निजी संपत्ति डूब जाएगी इसलिए वे इसका विरोध कर रहे हैं.

आदिवासी समूहों को अपनी आजीविका के संकट का भी डर है. लोगों को यह भी डर है कि जिस तरह बारगी बांध विस्थापित परिवारों के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों का हनन हुआ, कहीं वैसी ही दशा उनकी न हो जाए.

विरोध कर रहे आदिवासियों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन जिला कलेक्टर के ऑफिस में भेजा है, जिसमें सरकार ने साल 2021 में विधानसभा में कहा था कि इस बांध पर रोक लगाई जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. ग्रामीणों का कहना है कि किसी भी हाल में बसनिया बांध का निर्माण नहीं होने देंगे.

आदिवासियों को याद आया बरगी बांध का समय

बरगी बांध, जिसे रानी अवंती बाई सागर सिंचाई परियोजना के रूप में भी जाना जाता है, मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी पर बनने वाला पहला प्रमुख जलाशय था. इससे 4.37 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई और 105 मेगावाट जल विद्युद उत्पादन की उम्मीद थी. जल आर्पूति के लिए बरगी बांध जो कि नर्मदा नदी पर बनने वाले 30 प्रमुख बांधों की श्रृंखला में से एक था उसमें हज़ारों लोग विस्थापित किए गए थे.

सरकारी रिकॉर्ड और पुनर्स्थापित गांवों के निवासियों के सरकार ने न सिर्फ उनके विस्थापन के समय लोगों के पुनर्वास को नजरअंदाज किया बल्कि 34 सालों तक उन्हें लगभग भूल भी गया. ऐसे में अब मंडला और डिंडोरी ज़िले के आदिवासी समुदाय को भी इसी बात का डर सता रहा है कि सरकार उनको विस्थापित करने के बाद भूल जाएगी.

बांध और विस्थापन के आंकड़े बताते हैं कि 1947 के बाद अकेले भारत में 4,300 बड़े बांधों ने 42 मिलियन से अधिक लोगों को विस्थापित किया. आदिवासी भारत की आबादी का लगभग 8 प्रतिशत है लेकिन देश के विस्थापितों में वे 40 प्रतिशत से अधिक है.

गौरतलब है कि मंडला जिले में प्रस्तावित बसनिया, राघवपुर और रोसरा बांध बनाए जाने में अगर आदिवासी समुदाय की भूमि अधिग्रहित की जाती है और उन्हें विस्थापित किया जाता है तब नियम है कि पुर्नवास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 के तहत विस्थापित आदिवासी परिवार के सदस्य को नौकरी, ग्रामीण व्यक्ति को घर का अधिकार, प्रभावित परिवार को भूमि अनुदान, विस्थापित समूह को स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, श्मशान घाट, डाक जैसी अन्य सुविधाएं दी जाएं.

अगर सरकार विस्थापित आदिवासी परिवारों को यह सुविधाएं देने में असमर्थ होती है तब विस्थापित परिवारों के स्वतंत्रता, समानता, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक न्याय, व्यक्ति की गरिमा जैसे अन्य संवैधानिक मूल्यों पर संकट बरकरार रहेगा.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments