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महुआ की शराब मध्य प्रदेश में नहीं होगी अवैध – शिवराज सिंह चौहान

मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने कहा कि आदिवासियों में जन्म से मृत्यु तक सभी मौक़ों पर शराब की ज़रूरत होती है. उन्होंने कहा कि आदिवासी परंपरा में सभी धार्मिक कामों में आदिवासी शराब का तर्पण करते हैं.

मध्य प्रदेश में आदिवासी समुदायों को महुआ से शराब बनाने की अनुमति दी जाएगी. इसके अलावा आदिवासियों के ख़िलाफ़ दर्ज मामूली केस वापस लिए जाएँगे.

ये दो घोषणाएँ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की हैं. वो राज्य के भील बहुल झाबुआ ज़िले में एक जनजातीय सम्मेलन में बोल रहे थे.

इसके अलावा शिवराज चौहान ने इस सम्मेलन में कहा की राज्य में जल्दी ही पेसा (Panchayati Raj Extension to Scheduled Areas) के प्रावधान लागू किए जाएंगे. उन्होंने कहा कि इस क़ानून के लागू होने से आदिवासियों के सामुदायिक संसाधनों की सुरक्षा होगी. 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि अगर आदिवासी अपनी परंपरा के अनुसार महुआ की शराब बनाते हैं तो इसमें आपत्ति नहीं होनी चाहिए. इस तरह की ही बात उन्होंने ताड़ी के बारे में भी कही है. 

महुआ और ताड़ी आदिवासी संस्कृति का हिस्सा है

मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने कहा कि आदिवासियों में जन्म से मृत्यु तक सभी मौक़ों पर शराब की ज़रूरत होती है. उन्होंने कहा कि आदिवासी परंपरा में सभी धार्मिक कामों में आदिवासी शराब का तर्पण करते हैं.

उन्होंने कहा है कि जब राज्य में नई आबकारी नीति तैयार की जाएगी तो उसमें महुआ की शराब बनाने को क़ानूनी घोषित कर दिया जाएगा. 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह भी कहा कि आदिवासियों को मामूली से मामलों में कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं. इससे उन्हें परेशानी होती है. इस तरह के केस वापस लिए जाएँगे.

शिवराज सिंह चौहान आजकल लगातार आदिवासी क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं. इन दौरों में वो आदिवासियों से एक के बाद एक वादे कर रहे हैं. बेशक उन्होंने झाबुआ में जो घोषणाएँ की हैं उनका स्वागत किया जाना चाहिए.

शिवराज चौहान 15 साल से अधिक समय से राज्य की गद्दी पर रहे हैं

लेकिन 15 साल से ज़्यादा समय से राज्य की मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठे शिवराज सिंह चौहान को इस बात का भी जवाब देना ही चाहिए कि अभी तक राज्य में पेसा लागू क्यों नहीं है.

इसके अलावा आदिवासियों के ख़िलाफ़ छोटे मोटे मामले वापस लेने की घोषणा महत्वपूर्ण है.

लेकिन मुख्यमंत्री को यह भी बताना चाहिए कि उनके शासनकाल में कितने आदिवासी जेल गए. ज़्यादातर मामलों में देखा जाता है कि आदिवासी अधिकतम सज़ा से भी अधिक समय जेल में बिताता है क्योंकि उसे न्यायिक प्रणाली समझने में मुश्किल होती है.

मुख्यमंत्री ने क्यों यह नहीं कहा कि आदिवासियों को अच्छे वकीलों की मदद उपलब्ध कराई जाएगी. इसके साथ ही पुलिस की आदिवासियों के प्रति समझ को भी ठीक करने की कोशिश होगी.

जब तक पुलिस आदिवासी समुदायों के प्रति संवेदनशील नहीं होगी, तब तक आदिवासियों पर ग़ैर ज़रूरी मुक़दमे लगा कर उन्हें जेल में डालने का सिलसिला चलता रहेगा. 

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