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बुनियादी सुविधाओं के बिना, सड़क के किनारे आप कितने साल जी सकते हैं? यह इरुला आदिवासी तो 30 साल से जी रहे हैं

शौचालय के अभाव में महिलाओं को एकांत जगह खोजने के लिए 1 किमी चलने को मजबूर होने पड़ता है क्योंकि उनकी बस्ती के आस-पास एक आवासीय इलाका है. पीने का पानी लाने के लिए भी उन्हें इतना ही दूर चलना पड़ता है.

तमिलनाडु के महाबलीपुरम से बमुश्किल 10 किमी दूर 25 इरुला आदिवासी परिवार पानी, शौचालय, उचित आवास और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं के बिना रहते हैं. यह आदिवासी 30 सालों से ज़्यादा से ईस्ट कोस्ट रोड (ईसीआर) से मुश्किल से 500 मीटर की दूरी पर सड़क पर जर्जर हालात में रह रहे हैं.

वो जातने हैं कि उनके अस्थाई घर कभी भी तोड़े जा सकते हैं.

एक आदिवासी महिला, सेल्वी एम, ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हमें खुले में शौच करने के लिए मजबूर किया जाता है. यह बहुत शर्मनाक है. सरकारी योजनाओं के बारे में बताने के लिए कोई अधिकारी आजतक हमारी बस्ती में नहीं आया है.”

शौचालय के अभाव में महिलाओं को एकांत जगह खोजने के लिए 1 किमी चलने को मजबूर होने पड़ता है क्योंकि उनकी बस्ती के आस-पास एक आवासीय इलाका है. पीने का पानी लाने के लिए भी उन्हें इतना ही दूर चलना पड़ता है.

बस्ती की एक और निवासी पार्वती एम ने बताया कि बिजली की आपूर्ति न होने से रात में यह इलाक़ा बेहद असुरक्षित है. पार्वती कहती हैं, “चूंकि हम ईसीआर के बहुत क़रीब रहते हैं, यह इलाक़ा बहुत असुरक्षित है, क्योंकि आस-पास कोई पुलिस स्टेशन नहीं है.”

इन आदिवासियों के पास सड़क संपर्क भी नहीं है.

मांगें नहीं पूरी हुईं, तो नहीं देंगे वोट’

बस्ती की आदिवासी महिलाओं ने कहा कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में मतदान नहीं करेंगी.

“हमें हर दिन कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, और जीने के लिए ज़रूरी सबसे बुनियादी सुविधाओं तक के लिए हमारी दलीलें अनसुनी रहती हैं,” निवासी वल्ली टी ने कहा. “अगर अधिकारी हमारे मुद्दों को हल करने का आश्वासन नहीं देते हैं, तो हमने मतदान न करने का फैसला किया है.”

चेंगलपट्टू ज़िले के एक राजस्व अधिकारी ने अखबार को बताया, “हम चुनाव के बाद ही इस पर गौर कर सकते हैं. चुनाव के बाद फ़ीसीबिलिटी रिपोर्ट तैयार की जाएगी, और सभी मांगों को पूरा किया जाएगा.”

हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि इन आदिवासियों को पुनर्वास को एक विकल्प के रूप में स्वीकार करना चाहिए. उनका कहना है कि जब भी सरकार उन्हें पुनर्वास की बात कहती है तो वो विरोध करते हैं कि उन्हें एक ख़ास जगह पर घर चाहिए. कभी-कभार यह संभव नहीं होता है क्योंकि इनमें से कुछ इलाके निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं हैं, ऐसे में उन्हें प्रस्ताव स्वीकार करना पड़ सकता है।”

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