HomeAdivasi Dailyमणिपुर हाई कोर्ट को मिलेगी पहली आदिवासी महिला जज

मणिपुर हाई कोर्ट को मिलेगी पहली आदिवासी महिला जज

कल यानी शुक्रवार को केंद्र सरकार ने मणिपुर के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए एक महिला आदिवासी का नाम दिया है. जिनका नाम गोलमेई गैफुलशिलु काबुई है. इसके साथ ही केंद्र सरकार द्वारा दो और नामों की स्वीकृत दी गई है. जिसमें की एक अनुसूचित जाति और एक ओबीसी समुदायों से हैं.

केंद्र सरकार ने शुक्रवार को मद्रास और मणिपुर के उच्च न्यायालयों में तीन न्यायाधीशों की नियुक्ति की अधिसूचना जारी की. इनमे एक न्यायिक अधिकारी भी शामिल है जो मणिपुर हाई कोर्ट में न्यायाधीश बनने वाली अनुसूचित जनजाति की पहली महिला बन जाएंगी. वहीं केंद्र द्वारा स्वीकृत अन्य दो नाम अनुसूचित जाति और ओबीसी समुदायों से हैं.

मणिपुर हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए एक न्यायिक अधिकारी गोलमेई गैफुलशिलु काबुई की नियुक्ति की गई. अधिसूचना 10 जनवरी से लंबित थी. वहीं दो अधिवक्ताओं एन सेंथिलकुमार और जी अरुल मुरुगन को मद्रास उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त किया गया.

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना भी शामिल थे. उन्होंने नामों की सिफारिश जुलाई में की थी.

कॉलेजियम ने अपने प्रस्ताव में कहा कि सेंथिलकुमार के पास 28 साल से अधिक अनुभव है और उन्हें मद्रास हाई कोर्ट के साथ-साथ सत्र न्यायालय में पेश होने का अनुभव है. इसके अलावा वह संवैधानिक, आपराधिक, सेवा और सिविल मामले में प्रैक्टिस कर रहे हैं.

वहीं मुरुगन के बारे में कॉलेजियम ने बताया कि उनका बार में 24 साल का अनुभव है और वह सिविल, आपराधिक और रिट मामलों में विशेषज्ञ हैं. वह ओबीसी श्रेणी के हैं. कॉलेजियम ने बताया कि न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति से ओबीसी को अधिक प्रतिनिधित्व की सुविधा मिलेगी.

तीनों नाम इस साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा की गई 9 सिफारिशों के एक बैच का हिस्सा है. लेकिन केंद्र द्वारा अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया था. सबसे पुरानी अनुशंसा जनवरी से लंबित थी.

मार्च में लोकसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के मुताबिक 2018 से नियुक्त 575 उच्च न्यायालय न्यायाधीशों में से 67 ओबीसी श्रेणी, 17 एससी श्रेणी, 9 एसटी श्रेणी और 18 अल्पसंख्यक समुदाय से हैं.

इस जांच का उद्देश्य इन आंकड़ों को और संतुलित करना एंव न्यायपालिका के भीतर समान प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना है.

ये नियुक्तियाँ न्यायमूर्ति संजय किशन कौल के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण सुनवाई के मद्देनजर हुई हैं, जो संवैधानिक अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए कॉलेजियम के प्रस्तावों को संसाधित करने में सरकार की प्रगति की निगरानी कर रही है.

26 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इन नियुक्तियों की प्रक्रिया में देरी के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की और इस संबंध में सरकार के कार्यों का समय-समय पर आकलन करने का वादा किया.

अदालत एडवोकेट अमित पई के माध्यम से एडवोकेट एसोसिएशन, बेंगलुरु द्वारा दायर एक अवमानना याचिका पर सक्रिय रूप से विचार कर रही है. जो सरकार द्वारा लंबित नियुक्तियों और बिना किसी स्पष्टीकरण के रोक के विभिन्न उदाहरणों पर प्रकाश डालती है.

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