सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नागालैंड सरकार की एक रिट याचिका स्वीकार कर ली. इस रिट याचिका में नागालैंड राज्य सरकार ने केंद्र के एक साल से भी पुराने आदेश को चुनौती दी है.
दरअसल, नागालैंड में एक असफल आतंकवाद-रोधी अभियान के दौरान 4 दिसंबर 2021 को कोन्याक जनजाति के 13 लोगों की जान चली गई थी.
इस घटना के दौरान सेना की एक टीम ने पूर्वी नागालैंड के ओटिंग गांव में खनन मज़दूरों को ले जा रहे एक पिकअप ट्रक पर उग्रवादी समझकर गोली चलाई थी. इस घटना में 6 नागरिकों की मौत हो गई थी.
इसके बाद स्पष्टीकरण देते हुए सेना ने कहा था कि इन मज़दूरों के कंधे पर बंदूक थी और इनके कपड़े भी कुछ आतंकवादियों जैसे थे.
जिसके कारण उन्हें भ्रम हो गया. उन्हें लगा कि ये पड़ोसी देश म्यांमार से भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करने वाले सशस्त्र विद्रोही हैं और इसलिए फायरिंग कर दी.
इस घटना के बाद इलाके में हिंसा भड़कने के बाद सुरक्षा बलों द्वारा कथित तौर पर की गई गोलीबारी में आठ और नागरिक मारे गए थे.
इस अभियान में शामिल 30 सैनिकों पर 13 नागरिकों की हत्या का आरोप लगा था और इनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही करने की मांग की गई थी.
पिछले साल अप्रैल महीने में केंद्र सरकार ने नागालैंड के ओटिंग में हुए इस हमले में शामिल जवानों पर मुकदमा चलाने की मंज़ूरी देने से मना कर दिया था.
इसी सिलसिले में राज्य सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों के हनन के खिलाफ आवाज़ उठाने का अधिकार देता है.
इस याचिका में केंद्र पर मनमानी करने का आरोप लगाया गया था.
इस याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने एफआईआर दर्ज कराई थी और दावा किया था कि उसके पास मेजर और अन्य सैन्यकर्मियों के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं.
लेकिन इसके बावजूद केंद्र ने इस मामले में अपनी मनमानी की और उन सभी सैनिकों पर मुकदमा चलाने के लिए मंज़ूरी नहीं दी थी.
केंद्र सरकार राज्य पुलिस के विशेष जांच दल द्वारा इकट्ठा की गई समस्त सामग्री का अध्ययन किए बिना ही उन पर मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले में केंद्र को अपना जवाब दाखिल करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया है.
नागालैंड सरकार ने न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच को बताया कि केन्द्र ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम 1958 (Armed Forces Special Powers Act, 1958) के तहत उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है, जबकि आरोपी सैन्य अधिकारियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत मौजूद हैं.
इस याचिका पर अगली सुनवाई 3 सितंबर तक स्थगित कर दी गई है.