नगालैंड में नगर निकायों में चुनाव के लिए बुधवार सुबह कड़ी सुरक्षा के बीच मतदान जारी है. राज्य निर्वाचन आयोग के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी.
नागालैंड में यह ऐतिहासिक चुनाव है क्योंकि तीन नगरपालिकाओं और 36 नगर परिषद के लिए चुनाव 20 साल के अंतराल के बाद कराया जा रहा है. साथ ही यह पहली बार है जब राज्य में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण के साथ चुनाव हो रहे हैं.
अधिकारियों ने 25 जून को शाम 5 बजे से 27 जून को शाम 7 बजे तक दीमापुर, चुमौकेदिमा और निउलैंड जिलों में सीआरपीसी की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी.
यह आदेश शांति भंग होने और सार्वजनिक शांति को ख़तरे की आशंकाओं के बाद जारी किए गए, जिससे यूएलबी चुनावों के शांतिपूर्ण संचालन पर असर पड़ सकता है.
राज्य में तीन नगरपालिका और 36 नगर परिषद हैं. कुल 418 सीटों में से 112 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. कोहिमा, दीमापुर और मोकोकचुंग में नगरपालिका परिषद है और बाकी जगह नगर परिषद है.
चुनाव आयुक्त ने बताया कि इस चुनाव में कुल 523 उम्मीदवार मैदान में हैं. पहले कुल 670 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया था लेकिन उनमें से 79 ने अपने नाम वापस ले लिए और चार का नामांकन कागजात अधूरे रहने के कारण खारिज हो गया था.
मतदान से पहले ही 64 उम्मीदवार निर्विरोध चुन लिए गए हैं. इनमें सत्तारूढ़ नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के सबसे ज्यादा 45 उम्मीदवार हैं. इसके अलावा भाजपा के सात, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के पांच, कांग्रेस के तीन, नागा पीपुल्स फ्रंट के दो उम्मीदवारों के अलावा दो निर्दलीय भी शामिल हैं.
निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान के लए सुरक्षा व्यवस्था मजबूत कर दी गई है. पहली बार यहां किसी चुनाव में सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य पुलिस को सौंपी गई है.
चुनाव आयोग के मुताबिक, राज्य के 530 मतदान केंद्रों में से 92 सामान्य, 209 संवेदनशील और बाकी बेहद संवेदनशील हैं.
वहीं स्टेट लेबर कमिशनर ने राज्य में ऑफिसों में काम करने वाले सभी श्रमिकों के लिए 26 जून को सवेतन अवकाश घोषित किया है ताकि वे अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें.
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए नागालैंड बैपटिस्ट चर्च काउंसिल ने “एक व्यक्ति, एक वोट और बिना किसी प्रभाव के वोट” की अपील की.
शहरी स्थानीय निकाय चुनाव और महिला आरक्षण
नागालैंड ने 2001 में अपना नगरपालिका अधिनियम लागू किया और महिलाओं के लिए आरक्षण के बिना 2004 में पहला शहरी स्थानीय निकाय चुनाव हुआ.
सरकार ने 2012 में अगले यूएलबी चुनावों के लिए एक अधिसूचना जारी की लेकिन महिला आरक्षण और नगरपालिका अधिनियम में कुछ खंडों के मुद्दे पर स्थानीय आदिवासी संगठनों के भारी विरोध और बड़े पैमाने पर होने वाली हिंसा के कारण आयोजित नहीं किया जा सका.
उसी वर्ष सितंबर में विधानसभा ने संविधान के अनुच्छेद 243T से राज्य को छूट देने का प्रस्ताव पारित किया, जो महिलाओं के लिए कोटा से संबंधित है. लेकिन 2016 में इसे रद्द कर दिया.
2017 में राज्य सरकार ने महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण के साथ चुनाव कराने का प्रयास किया लेकिन यह उल्टा पड़ गया.
प्रदर्शनकारियों ने राज्य के कुछ हिस्सों में सरकारी इमारतों पर हमला किया और आग लगा दी. शक्तिशाली आदिवासी संगठनों ने तर्क दिया कि महिलाओं के लिए आरक्षण नागा प्रथागत कानूनों का उल्लंघन है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 371 (ए) में निहित है, जो राज्य के पारंपरिक जीवन शैली की रक्षा करता है.
हिंसा के मद्देनजर तत्कालीन मुख्यमंत्री टी.आर. जेलियांग को इस्तीफा देना पड़ा और राज्य सरकार ने चुनाव प्रक्रिया को अमान्य घोषित कर दिया. बाद में कुछ महिला संगठनों ने इस मामले को लेकर हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने नागालैंड राज्य चुनाव आयोग को चुनाव अधिसूचित करने और महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत कोटा के साथ चुनाव कराने का निर्देश दिया था. राज्य सरकार ने नगरपालिका अधिनियम में कुछ संशोधन करके चुनावों का मार्ग प्रशस्त किया.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि नागालैंड पूर्वोत्तर का पहला राज्य है जहां किसी चुनाव में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण का प्रावधान लागू किया गया है. राज्य में अक्सर राजनीतिक दलों पर महिलाओं की अनदेखी करने के आरोप लगते रहे हैं. लेकिन अब यह चुनाव एक नई मिसाल कायम कर सकता है.
ENPO ने चुनाव का किया बहिष्कार
इस बीच, ईस्टर्न नगालैंड पीपुल्स ऑर्गेनाइजेशन (ENPO) ने फैसला किया है कि वह क्षेत्र के छह जिले में चुनावों में हिस्सा नहीं लेगा. छह पूर्वी जिलों में रह रहीं सात नगा जनजातियों की सर्वोच्च संस्था ईएनपीओ ‘फ्रंटियर नगालैंड क्षेत्र’ की मांग करती रही है. उसका दावा है कि इस क्षेत्र को बरसों से नजरअंदाज किया गया है.
ईएनपीओ इलाके में 14 नगर परिषद हैं. इस इलाके से 59 नामांकन पत्र स्वीकार किए गए हैं लेकिन आदिवासी संगठनों ने उम्मीदवारों को अपना नामांकन वापस लेने के लिए मजबूर किया है.
ईएनपीओ ने राज्य में इकलौती लोकसभा सीट के लिए 19 अप्रैल को हुए चुनाव में भी हिस्सा नहीं लिया था.