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असम सरकार की नई पॉलिसी, अब आदिवासी परिवार 50 बीघे तक भूमि के मालिक हो सकते हैं

सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि सरकार आदिवासी संगठनों से बात कर आदिवासियों को पशुओं को चराने वाली जगह के आसपास के गांवों में बसाने का प्रयास करेगी. उन्होंने कहा कि सरकारी जमीन पर बसे आदिवासियों को अगर किसी वजह से बेदखल भी कर दिया जाए, तो भी उन्हें सरकार से मुआवज़ा मिलेगा.

असम सरकार जल्द ही अपनी नई जनजातीय भूमि नीति जारी करेगी. इसके तहत राज्य के हर एक आदिवासी परिवार को 50 बीघे तक ज़मीन रखने की अनुमति होगी. जबकि असम भूमि नीति, 2019 के तहत 8 बीघे की ऊपरी सीमा राज्य की बाकी आबादी के लिए जारी रहेगी.

सोमवार को गुवाहाटी में छात्रों को डिजिटल जाति प्रमाण पत्र जारी करने का एक सरल और डिजिटल तरीका “मिशन भूमिपुत्र” लॉन्च करते हुए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, “हमारा प्रयास 2 अक्टूबर तक एक आदिवासी भूमि नीति तैयार करना है. यह आदिवासी लोगों के वंशानुगत भूमि पर उनके अधिकारों को सुरक्षित करने के हमारे बजट प्रस्ताव के अनुरूप है.”

सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि आदिवासी भूमि नीति 2 अक्टूबर को ‘बसुंधरा’ चरण 2 के तहत शुरू की जाएगी, जिससे एक आदिवासी व्यक्ति की भूमि मौजूदा आठ बीघे से 50 बीघा हो जाएगी.

मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार आदिवासी संगठनों से बात कर आदिवासियों को पशुओं को चराने वाली जगह के आसपास के गांवों में बसाने का प्रयास करेगी. उन्होंने कहा कि सरकारी जमीन पर बसे आदिवासियों को अगर किसी वजह से बेदखल भी कर दिया जाए, तो भी उन्हें सरकार से मुआवज़ा मिलेगा.

असम में 38 लाख से ज़्यादा आदिवासी हैं, जो 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल आबादी का 12 फीसदी से अधिक है. आदिवासी आबादी का लगभग 95 फीसदी हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र में रहता है.

पिछले साल असम में विधानसभा चुनाव से पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक लाख से ज़्यादा भूमिहीन आदिवासियों को भूमि ‘पट्टा’ या भूमि आवंटन प्रमाण पत्र वितरित करने के लिए राज्य सरकार का एक विशेष कार्यक्रम शुरू किया था.

दरअसल, राज्य ने 2019 में एक नई भूमि नीति अपनाई थी, जिसमें भूमिहीन लोगों को कृषि उद्देश्य के लिए 7 बीघा, और राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में घर बनाने की भूमि के लिए 1 बीघा भूमि के आवंटन की अधिकतम सीमा बढ़ा दी गई थी.

वहीं “मिशन भूमिपुत्र” पर बोलते हुए, सरमा ने कहा कि मिशन के तहत सरकार दो स्तंभ बनाएगी. इसके बाद से जाति प्रमाण पत्र जारी करने की मैनुअल प्रणाली ख़त्म हो जाएगी.

सरमा ने कहा, “अगले साल से, आठवीं कक्षा के छात्र इस पोर्टल के माध्यम से जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन कर सकते हैं, जिसे मुख्यमंत्री के डैशबोर्ड से भी जोड़ा जाएगा ताकि मुख्यमंत्री कार्यालय पूरी प्रक्रिया की निगरानी कर सके.”

उन्होंने कहा कि आठ अगस्त से उपायुक्त शैक्षणिक संस्थानों के प्रधानाध्यापकों को जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदनों का फॉर्मेट देंगे.

मुख्यमंत्री सरमा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ पर जोर देने के बाद, राज्य सरकार लोगों को विभिन्न सार्वजनिक सेवाओं की सुविधा प्रदान कर रही है. उन्होंने कहा कि इसके अलावा, डिजिटलीकरण की शुरुआत के साथ लोगों को पारदर्शी और तेजी से विभिन्न सेवाएं प्रदान की गई हैं. इस प्रणाली ने ‘बिचौलियों’ के खतरे को ख़त्म कर दिया है.

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