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आदिवासी माँ बाप गोद में मृत बच्चे को लिए एंबुलेंस का इंतज़ार करते रहे

उन्होंने एंबुलेंस ड्राइवर से गुहार लगाई कि उन्हें वापस घर ही छोड़ दिया जाए. लेकिन मृत बच्चे को गोद में लिए इस आदिवासी दंपति को छोड़ कर वह ड्राइवर ग़ायब हो जाता है. पत्रकार राजा सिंह कहते हैं कि आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि एक पत्रकार जिसे ज़िले के सभी अधिकारी जानते हैं, उनकी नहीं सुनी गई. इस स्थिति में एक आदिवासी जो ज़िले में किसी को नहीं जानता है, उसकी कौन सुनेगा.

20 जून की रात को छत्तीसगढ़ के जिला अस्पताल में एक आदिवासी माता-पिता अपने मृत बच्चे को गोद में लिए बैठे थे. दरअसल यह बच्चा एक स्वास्थ्य उप केन्द्र में  जन्मा था. लेकिन जन्म के समय उसकी स्थिति ठीक नहीं थी.

इसलिए उप केन्द्र से माँ के साथ बच्चे को ज़िला अस्पताल रेफ़र कर दिया गया. लेकिन जब तक एंबुलेंस आती और बच्चे को ज़िला अस्पताल पहुँचाती, तब तक बच्चे के प्राण निकल गए. 

उन्होंने एंबुलेंस ड्राइवर से गुहार लगाई कि उन्हें वापस घर ही छोड़ दिया जाए. लेकिन मृत बच्चे को गोद में लिए इस आदिवासी दंपति को छोड़ कर वह ड्राइवर ग़ायब हो जाता है.

सुकमा के स्थानीय पत्रकार राजा सिंह राठौर को इस घटना के बारे में पता चलता है तो वो ज़िला अस्पताल पहुँचते हैं. MBB से बातचीत करते हुए राजा सिंह बताते हैं कि यह 20 जून रात की बात है.

मृत बच्चे के साथ इंतज़ार में बैठी मां

जब वो अस्पताल पहुँचे तो देखा कि आदिवासी पति पत्नी अपने मृत बच्चे को लेकर अस्पताल के बेंच पर बैठे हैं. उनके पास अपने घर पहुँचने का कोई साधन नहीं था.

वो कहते हैं, “ मेरे एक मित्र ने बीएमओ को फ़ोन लगाया और मैंने सीएचएमओ का फ़ोन लगाया, लेकिन दोनों ने ही फ़ोन नहीं उठाया. उसके बाद हार कर मैंने ज़िला कलेक्टर को फ़ोन लगाया. सौभाग्य से उन्होंने फ़ोन उठा लिया. कलेक्टर ने कहा कि वो कुछ इंतज़ाम करवा रहे हैं.”

लेकिन एक घंटे तक कोई एंबुलेंस या दूसरा साधन नहीं पहुँचा. उसके बाद एक डॉक्टर आए और उन्होंने कहा कि जिस गाँव का यह आदिवासी परिवार है उस गाँव के आगे किसी गाँव में एंबुलेंस है और उसे आने में समय लग रहा है.

रात का समय था और परिवार दुखी और परेशान था. वैसी सूरत में राजा सिंह और उनके साथी ने तय किया कि वो अपनी ही गाड़ी से आदिवासी परिवार को उनके घर छोड़ देंगे.

राजा सिंह ने MBB से बातचीत में बताया कि अगर वो और उनके दोस्त इस परिवार को उनके घर नहीं पहुँचाते तो पूरी रात इस परिवार को अस्पताल के बेंच पर बैठ कर बितानी पड़ती या फिर वे पैदल ही अपने घर जाते. 

पत्रकार राजा सिंह ने आदिवासी परिवार को उनके घर छोड़ा

राजा सिंह कहते हैं कि सुकमा ज़िला अस्पताल की स्थिति अच्छी है. स्वास्थ्य उप केंद्र भी आदिवासी गाँवों में काम करते हैं. लेकिन मामला रवैये का है. अधिकारी और कर्मचारी उतने संवेदनशील नहीं हैं जितने होने चाहिए. 

राजा सिंह कहते हैं कि आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि एक पत्रकार जिसे ज़िले के सभी अधिकारी जानते हैं, उनकी नहीं सुनी गई. इस स्थिति में एक आदिवासी जो ज़िले में किसी को नहीं जानता है, उसकी कौन सुनेगा.

राजा सिंह कहते हैं कि ज़िला मेडिकल ऑफ़िसर ने मुझे कहा था कि इस मामले में जाँच हो रही है. लेकिन 8 दिन बीत चुके हैं, किसी को नहीं पता कि इस मामले में जाँच क्या हो रही है.

MBB ने सुकमा के कलेक्टर से फ़ोन पर संपर्क साधा. उन्होंने जल्दी पूरी जानकारी देने के आश्वासन के बाद फ़ोन काट दिया. उसके बाद बार बार के प्रयास के बावजूद उनसे संपर्क नहीं हो पाया.

सुकमा ज़िला माओवाद प्रभावित ज़िलों में से एक है. यहाँ पर सरकार और प्रशासन के लिए आदिवासियों का भरोसा जीतना बड़ी चुनौती है. 

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