असम के चाय बागान मज़दूरों को राज्य सरकार द्वारा घोषित बढ़े हुए दैनिक वेतन के लिए अभी और इंतज़ार करना होगा. गुवाहाटी हाई कोर्ट ने असम के चाय एस्टेट मालिकों को यह निर्णय लेने की अनुमति दी है कि वो खुद तय करें कि वो इन मज़दूरों का दैनिक वेतन मज़दूरी बढ़ाना चाहते हैं या नहीं.
इसका सीधा-सीधा मतलब यह है कि एस्टेट मालिक अपने मज़दूरों का दैनिक वेतन फ़िलहाल 167 रुपए ही रख सकते हैं.
भारतीय चाय संघ (Indian Tea Association – ITA) और 17 चाय कंपनियों ने वेतन बढ़ोत्तरी के ख़िलाफ़ याचिका दायर की थी. जस्टिस माइकल ज़ोथानखुमा ने आठ मार्च को एक आदेश में राज्य सरकार को चाय एस्टेट मालिकों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से रोक दिया था.
अब कोर्ट इस मामले पर अगली सुनवाई 23 अप्रैल को करेगा. उससे पहले 6 अप्रैल को असम में तीन चरण के चुनाव खत्म हो जाएंगे.
आईटीए और चाय कंपनियों ने अपनी याचिका में कहा था कि सरकार की अधिसूचना अवैध हैं क्योंकि किसी समिति/उप-समिति का गठन किए बिना यह फ़ैसला लिया गया, जो कि मिनिमम वेज एक्ट की धारा 5 (1 / a) और धारा 9 के तहत ज़रूरी है.
चाय बागान मज़दूरों की दिहाड़ी असम में एक प्रमुख चुनावी मुद्दा है. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही लंबे समय से टी ट्राइब का सपोर्ट जीतने की कोशिश कर रहे हैं.
टी ट्राइब राज्य की 126 विधानसभा सीटों में से कम से कम 40 पर निर्णायक वोटबैंक हैं, और राज्य की आबादी का लगभग 20% हिस्सा हैं.
चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले ही राज्य की बीजेपी सरकार ने इनके वेतन में 50 रुपए की बढ़ोत्तरी का ऐलान किया था. हालांकि ये बीजेपी के 2016 के विज़न डॉक्यूमेंट में किए गए 351 रुपए प्रति दिन के वादे से काफ़ी कम है.
उधर, कांग्रेस ने जीतने पर टी ट्राइब के दैनिक वेतन को 365 रुपए करने का वादा किया है.
ज़्यादातर चाय बागान मज़दूर 2016 तक राज्य और केंद्र दोनों जगह कांग्रेस के साथ खड़े रहते थे, लेकिन 2014 में यह तस्वीर बदल गई.