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क्या नए साल में पूर्वोत्तर के राज्यों से हटेगा AFSPA? असम के मुख्यमंत्री ने दिया ये संकेत

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का यह बयान ऐसे समय आया है जब केंद्र ने नगालैंड में दो दिन पहले 31 दिसंबर को ही AFSPA को अगले 6 महीने के लिए और बढ़ा दिया है.

नगालैंड हिंसा के बाद पूर्वोत्तर राज्यों से आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (AFSPA) को हटाने की मांग तेज हुई है. इसी बीच असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने उम्मीद जताई है कि विवादित आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर ऐक्ट पर अगले 45 दिनों में कोई ‘गुड न्यूज’ मिल सकती है.

दरअसल केंद्र सरकार ने नगालैंड से AFSPA को वापस लेने की संभावनाओं को देखने के लिए एक 5 सदस्यीय कमिटी का गठन किया है. यह कमिटी 45 दिनों में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. वहीं असम में मार्च 2022 में इस कानून का रीन्यूअल होना है.

पत्रकारों को संबोधित करते हुए हिमंत बिस्व सरमा ने कहा कि असम में उग्रवाद कमजोर पड़ गया है और पांच-छह जिलों को छोड़कर राज्य से सेना हटा ली गई है और जब इस वर्ष AFSPA की समीक्षा की जाएगी, तब गृह मंत्रालय के परामर्श से असम सरकार कोई व्यावहारिक निर्णय लेगी.

उन्होंने कहा, “AFSPA का जहां तक सवाल है, 2022 में असम में इसको लेकर कोई तर्कसंगत फैसला लिया जाएगा। 5-6 जिलों को छोड़ दें तो राज्य में आर्मी की मौजूदगी पहले ही कम हो चुकी है. यह असम में बदले हुए हालात के संकेत हैं.”

असम का यह बयान ऐसे समय आया है जब केंद्र ने नगालैंड में दो दिन पहले 31 दिसंबर को ही AFSPA को अगले 6 महीने के लिए और बढ़ा दिया है.

सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि राज्य में आदिवासी उग्रवाद खत्म हो गया है और उल्फा (I) के साथ संघर्ष के अंत की शुरुआत दिखने लगी है. उन्होंने कहा, “हालांकि उल्फा (I) की संप्रभुता की मांग अभी भी एक बड़ी बाधा है लेकिन सरकार और संगठन इसके समाधान के लिए मिलकर काम कर रहे हैं. यह एक बहुत ही जटिल स्थिति है. परेश बरुआ 1982 से जंगलों में हैं और तब से असम पुलिस जंग के रास्ते पर है. लेकिन मैं यह कहने की हिम्मत करता हूं कि हम अंत की शुरुआत देख रहे हैं.”

वहीं वैश्विक स्तर पर नगा लोगों के लिए काम करने वाले एक संगठन ने नगालैंड में सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (आफस्पा) विस्तारित किये जाने की निंदा की है. पूर्वोत्तर के इस राज्य में मोन जिले के ओटिंग इलाके में पिछले साल दिसंबर की शुरूआत में पैरा-कमांडो द्वारा 14 नागरिकों के मारे जाने के बाद कई वर्गों ने आफस्पा हटाने की मांग की है.

ग्लोबल नगा फोरम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे एक खुला पत्र में कहा है, ‘‘नगालैंड, मेघालय और मणिपुर सहित क्षेत्र में राज्य सरकारों के नेताओं ने आफस्पा हटाने की अपील की है. क्षेत्र के लोग और नागरिक समाज संस्थाएं आफस्पा हटाना चाहते हैं.’’

फोरम की सह-संयोजक प्रोफेसर रोजमेरी दुविचु और सचिव प्रोफेसर पॉल पिमोमो ने पत्र में कहा है, ‘‘मारे गए लोगों के परिवार के सदस्य अब भी शोक मना रहे हैं लेकिन सरकार ने हत्याओं की कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं ली, ना ही हत्या का कारण रहे सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (1958) को हटाने की कोशिश की.’’

फोरम के पत्र में दावा किया गया है कि ओटिंग हत्याकांड के बाद (नरेंद्र) मोदी को ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में देखा जाएगा, जिन्होंने आफस्पा को विस्तारित कर नगालैंड के लोगों को नये साल का तोहफा दिया है.

क्या है AFSPA, कब लागू हुआ था?

AFSPA कानून को साल 1958 में लागू किया गया था. जिन राज्यों में राज्य सरकार और पुलिस-प्रशासन कानून-व्यवस्था संभालने में नाकाम रहती है, केंद्र सरकार उस क्षेत्र को ‘डिस्टर्ब एरिया’ घोषित कर आंतरिक सुरक्षा के लिए सेना को तैनात कर देती है. ऐसे में सेना को खास पावर दिए जाते हैं. ऐसा ही नागालैंड में भी है. केंद्रीय गृह मंत्रालय हर छह महीने के लिए इस कानून को लागू करता है.

सेना को क्या अधिकार मिलते हैं?

AFSPA लागू होने पर सेना को कई विशेषाधिकार मिल जाते हैं, जिसमें किसी को भी शक के आधार पर बिना वॉरंट के गिरफ्तार करना, फायरिंग करने के लिए खास परमिशन की आवश्यकता ना होना, किसी की हत्या होने पर मुकदमा दर्ज ना होना आदि शामिल है. कई बार आरोप लगते हैं कि सेना इन अधिकारों का गलत इस्तेमाल करती है इसलिए इस कानून को हटाया जाना चाहिए.

किन राज्यों में लागू है AFSPA

1958 में इसे कानून बनाने के बाद इसे देश के कई हिस्सों में लागू किया गया है, जिसमें मणिपुर, त्रिपुरा, असम, पंजाब, जम्मू एंड कश्मीर आदि राज्य शामिल हैं. वर्तमान में नॉर्थ ईस्ट में असम, नागालैंड, मणिपुर (इंफाल को छोड़कर), अरूणांचल प्रदेश के कुछ जिलों में AFSPA लागू है. हालांकि, कई जगह से AFSPA को हटाया भी गया है, जैसे ही वहां स्थिति ठीक हो जाती है तो वहां से इसे हटा दिया जाता है.

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