त्रिपुरा की राजनीति में आदिवासी नेतृत्व को लेकर सरगर्मी बढ़ती जा रही है. इसी बीच टिप्रा मोथा पार्टी (TMP) के अध्यक्ष प्रद्योत माणिक्य देबबर्मा ने दावा किया है कि अगर आदिवासी एकजुट हो जाएं तो वे राज्य की राजनीति की दिशा बदल सकते हैं.
हाल ही में एक जनसभा को संबोधित करते हुए देबबर्मा ने कहा कि 2026 के TTADC (Tripura Tribal Autonomous District Council) चुनाव और 2028 के विधानसभा चुनावों में TMP एक अहम भूमिका निभाने जा रही है बशर्ते कि आदिवासी समाज संगठित और जागरूक बना रहे.
उन्होंने अपने भाषण में यह स्पष्ट किया कि TMP केवल चुनावी राजनीति तक सीमित नहीं है बल्कि यह आंदोलन सामाजिक न्याय और अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक बन चुका है.
देबबर्मा ने यह भी कहा कि अब समय आ गया है जब लोग यह समझें कि अधिकार मांगने से नहीं बल्कि संघर्ष से मिलते हैं.
राष्ट्रीय दलों पर निशाना
TMP अध्यक्ष ने इशारों-इशारों में राष्ट्रीय दलों पर भी सवाल उठाए.
उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय को अब तक जो भी कुछ हासिल हुआ है वह किसी दल की कृपा नहीं बल्कि क्षेत्रीय ताकतों के सतत प्रयासों का परिणाम है.
उन्होंने यह कहा कि जब भी आदिवासी समुदाय से जुड़े मुद्दों की बात आती है तो सभी राष्ट्रीय दल चुप ही नज़र आते हैं. वे आगे कहते हैं कि अब इन मुद्दों पर समझौता नहीं किया जाएगा.
समझौते के प्रावधानों पर चिंता
देबबर्मा ने कुछ समझौतों के बिंदुओं का भी उल्लेख किया. इसमें ज़मीन के अधिकार, कोकबरोक भाषा के लिए रोमन लिपि और TTAADC के लिए केंद्रीय फंड जैसे मुद्दों को उन्होंने रेखांकित किया.
उनका मानना है कि यह वादे केवल कागजों पर नहीं रहने चाहिए बल्कि इनका कार्यान्वयन भी सुनिश्चित होना चाहिए.
सूत्रों के मुताबिक, देबबर्मा ने यह भी आरोप लगाए कि TMP को भीतर से कमज़ोर करने की कोशिशें की जा रही हैं.
उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से सतर्क रहने की अपील करते हुए कहा कि कुछ शक्तियाँ विधायकों और नेताओं को खरीदने की कोशिश कर रही हैं ताकि आंदोलन को कमज़ोर किया जा सके.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि TMP प्रमुख का यह बयान केवल एक चुनावी भाषण नहीं था बल्कि आने वाले समय में पार्टी की रणनीति और दिशा का संकेत भी है.
पार्टी के आक्रामक रुख और स्पष्ट मांगों से यह स्पष्ट है कि TMP अब केवल एक क्षेत्रीय दल नहीं बल्कि राज्य की सत्ता संतुलन में एक निर्णायक खिलाड़ी बनने की ओर अग्रसर है.