HomeAdivasi Dailyकर्नाटक TRI की लापरवाही आदिवासियों पर पड़ रही भारी

कर्नाटक TRI की लापरवाही आदिवासियों पर पड़ रही भारी

सूत्रों ने कहा कि इस बात की तत्काल जांच की आवश्यकता है कि केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत होने के बाद भी टीआरआई को धनराशि क्यों जारी नहीं की गई.

कर्नाटक में कुप्रबंधन का एक ताज़ा उदाहरण सामने आया है, जिसमें बताया गया है कि किस तरह आदिवासी समुदाय के कल्याण के लिए केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत धन का पूरा उपयोग नहीं किया गया है.

मैसूर में 2005 में स्थापित आदिवासी अनुसंधान संस्थान (TRI) आदिवासी कल्याण के लिए निर्धारित केंद्रीय निधियों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने में बार-बार विफल रहा है.

केंद्रीय जनजातीय मामलों के राज्य मंत्री दुर्गादास उइके द्वारा चल रहे लोकसभा सत्र में साझा किए गए आंकड़ों से पता चला है कि टीआरआई अपनी गतिविधियों के लिए स्वीकृत धन का सही तरीके से उपयोग करने में विफल रहा.

मंत्री द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, केंद्र सरकार ने 2023-24 में टीआरआई के लिए 4.6 करोड़ रुपये मंजूर किए गए थे लेकिन कोई राशि जारी नहीं की गई. वहीं 2022-23 में 1 करोड़ रुपये के आवंटन के बावजूद फिर से कोई धनराशि वितरित नहीं की गई. यहां तक ​​कि 2020-21 में, स्वीकृत 1.8 करोड़ रुपये में से केवल 26.2 लाख रुपये ही जारी किए गए.

राज्य समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों ने इस कमी के लिए उपयोग प्रमाण पत्र जमा करने में देरी और नियोजित गतिविधियों या कार्यक्रमों को आयोजित करने में विफलता को जिम्मेदार ठहराया.

क्योंकि केंद्र सरकार उपयोग रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद ही धन जारी करती है इसलिए डॉक्यूमेंटेशन में देरी के कारण बड़ी फंडिंग ब्लॉक हो गई है.

दिलचस्प बात यह है कि कुछ वर्षों में टीआरआई को शुरू में आवंटित राशि से ज़्यादा राशि मिली. 2024-25 में स्वीकृत 1.5 करोड़ रुपये के मुक़ाबले 2 करोड़ रुपये जारी किए गए और 2021-22 में उसी स्वीकृत राशि के मुक़ाबले 1.8 करोड़ रुपये वितरित किए गए.

सूत्रों ने कहा कि इस बात की तत्काल जांच की आवश्यकता है कि केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत होने के बाद भी टीआरआई को धनराशि क्यों जारी नहीं की गई.

एक अधिकारी ने बताया कि प्रमाण पत्र जमा करने में देरी के कारण स्वीकृत और जारी की गई राशि में अंतर आ गया.

वहीं बेट्टा कुरुबा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले राज्य आदिम जनजाति मंच के समन्वयक विजयकुमार ने कहा कि राज्य को अन्य राज्यों के जनजातीय अनुसंधान संस्थान से सीखने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए, केरल और तमिलनाडु में टीआरआई आदिम जनजातियों की जीवनशैली, उनकी परंपरा, संस्कृति आदि का अध्ययन करने में शामिल हैं. अध्ययन के उद्देश्य से केरल टीआरआई परिसर में उनकी झोपड़ियों का पुनर्निर्माण किया जाता है. इन संस्थानों में आदिवासी परिवारों की शिक्षा और स्वास्थ्य से लेकर रोजगार की जरूरतों का अध्ययन किया जाता है. लेकिन मैसूर में टीआरआई आदिवासी समुदायों के लिए काम करने में विफल रही.

उन्होंने आगे कहा कि हम चाहते हैं कि टीआरआई कर्नाटक सार्थक अध्ययन और हस्तक्षेप करे.

साथ ही उन्होंने आग्रह किया कि मैसूर में कर्नाटक टीआरआई के लिए कोई फूल-टाइम डायरेक्टर नहीं है. राज्य को इन सभी मुद्दों पर गौर करने की जरूरत है.

ऐसे में अधिकारियों और राज्य सरकार की लापरवाही का खामियाजा आदिवासियों को भुगतना पड़ रहा है. क्योंकि स्वीकृत फंड का पूरा उपयोग नहीं होने से आदिवासी समुदाय के विकास कार्य बाधित हो रहे हैं.

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