HomeAdivasi Dailyझारखंड के महान क्रांतिकारी वीर बुधू भगत

झारखंड के महान क्रांतिकारी वीर बुधू भगत

बुधू भगत एक समझदार और दूरदर्शी नेता थे. वे झारखंड में आज़ादी की पहली चिंगारी जलाने वाले नेता थे.

झारखंड की धरती कई वीरों की जन्मभूमि रही है. इन्हीं में से एक नाम वीर बुधु भगत का भी है.

बुधु भगत ने झारखंड की धरती पर अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासी समुदाय को संगठित करके आज़ादी की अलख जगाई थी.

वीर बुधू भगत का जन्म 17 फरवरी 1792 को झारखंड के रांची ज़िले के चान्हों प्रखंड के सिलागांई गांव में हुआ था.

वे एक गरीब उरांव आदिवासी परिवार से थे. उनके पिता का नाम शिबू सुकरा भगत और माँ का नाम बालकुंदरी भगत था.

बचपन से ही वे निर्भीक और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले व्यक्ति थे.

लोग उन्हें प्रेम से “सुग्गा मुंडा” भी कहते थे. उनका पालन-पोषण आदिवासी परंपराओं और प्रकृति के नज़दीक हुआ था.

बचपन से ही थे खास

बचपन से ही बुधू भगत में कुछ खास बातें थी. लोग कहते हैं कि उनके अंदर दैवीय शक्ति थी.

ऐसा बताते हैं कि एक दिन वे कोयल नदी के किनारे ध्यान में बैठे थे, अचानक उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और धनुष से एक तीर चलाया.

वह तीर दो किलोमीटर दूर एक चट्टान में जाकर धँस गया और वहाँ से साफ पानी की धारा निकल पड़ी. आज भी वह जगह “वीर पानी” के नाम से जानी जाती है.

लोककथाओं में पानी की इस धारा से जुड़ी एक खास घटना का ज़िक्र भी मिलता है.

कहा जाता है कि एक दिन उन्होंने एक बुजुर्ग महिला को सूखी टहनियाँ तोड़ते हुए देखा. आमतौर पर यह काम इतना आसान नहीं होता लेकिन वह महिला बिना ज्यादा ताकत लगाए ही डालियाँ तोड़ रही थी.

जब बुधू भगत ने इसका कारण पूछा तो महिला ने बताया कि वह टोंगरी की चट्टान से निकले एक खास पानी से अपनी रस्सी को भिगोती है जिससे उसमें अलग तरह की ताकत आ जाती है.

बुधू भगत ने भी उस जल को ग्रहण किया और उन्हें अपने भीतर एक नई ऊर्जा, आत्मविश्वास और प्रेरणा का अनुभव हुआ.

यही वह क्षण माना जाता है जब उनके भीतर विद्रोह की चिंगारी तेज़ हुई और वे अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए पूरी तरह तैयार हुए.

क्यों बने क्रांतिकारी?

बचपन से ही उन्होंने देखा था कि जमींदार, साहूकार और अंग्रेज अधिकारी आदिवासियों के साथ अन्याय करते थे.

गरीब किसानों की फसलें छीन ली जाती थीं, जानवर उठा लिए जाते थे और बेगारी (बंधुआ मज़दूरी) करवाई जाती थी और मारपीट की जाती थी.

कोई विरोध नहीं कर पाता था क्योंकि अंग्रेजी सरकार जमींदारों का साथ देती थी.

1828 से 1832 के बीच का समय आदिवासी समाज के लिए बहुत कठिन था. अंग्रेजों ने जंगल, जमीन और संसाधनों पर जबरन कब्जा करना शुरू कर दिया था.

आदिवासियों को उनके पारंपरिक जीवन से अलग किया जा रहा था. ऐसे समय में बुधु भगत ने समाज को एकजुट किया और अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजा दिया.

उन्होंने आदिवासी युवाओं की एक सेना बनाई. इस सेना में में महिलाएं भी शामिल थीं.

वे रात-रात भर जंगलों में चलकर अंग्रेजों पर हमला करते और लोगों की रक्षा करते थे.

उन्होंने अपने गांव और आसपास के क्षेत्रों में लोगों को संगठित कर एक सशक्त आंदोलन शुरू किया. उनका यह आंदोलन सिर्फ हथियारों से नहीं बल्कि आत्मसम्मान और आज़ादी की भावना से भरा हुआ था.

वीरता की मिसाल

बुधू भगत एक समझदार और दूरदर्शी नेता थे. वे लोगों को संगठित करते थे, न्याय और समानता की बात करते थे. अंग्रेज सरकार को भी उनके आंदोलन से डर लगने लगा.

बुधू भगत छोटा नागपुर के प्रथम क्रांतिकारी थे जिन्हें पकड़ने के लिये अंग्रेजों ने एक हजार रुपये पुरस्कार की घोषणा की थी लेकिन कोई भी इस पुरस्कार के लालच में नहीं आया.  

बुधु भगत ने 1828 से 1832 तक कील विद्रोह का नेतृत्व किया था. अंग्रेजों के शोषण, अत्याचार के विरुद्ध किया गया यह सबसे पहला स्वतंत्रता आंदोलन था.

13 फरवरी 1832 में बुधू भगत को उनके साथियों के साथ कप्तान इम्पे की अंग्रेजी फौज ने सिलागाईं गांव में घेर लिया.

इस दौरान लगभग तीन सौ से अधिक ग्रामीण और क्रांतिकारी मारे गये थे. युद्ध में बुधू भगत और उनके दो बेटे भी शहीद हो गए.

लेकिन उनकी कुर्बानी बेकार नहीं गई. वे झारखंड में आज़ादी की पहली चिंगारी जलाने वाले नेता बने.

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