मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में रविवार को थांगजिंग पहाड़ी पर कुकी-ज़ो समुदाय के सैकड़ों लोग एकत्र हुए. उन्होंने थांगजिंग पहाड़ियों के नीचे और प्रमुख बफर ज़ोन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर धरना प्रदर्शन किया.
इस प्रदर्शन का उद्देश्य मैतेई समुदाय के श्रद्धालुओं को उनकी वार्षिक चेइराओबा तीर्थयात्रा के दौरान पवित्र थांगजिंग पहाड़ियों तक पहुंचने से रोकना था.
अधिकारियों ने बताया कि आंदोलनकारी विभिन्न इलाकों से वाहनों में सवार होकर पहाड़ी पर धरना देने पहुंचे.
कुकी प्रदर्शनकारी इकट्ठा हुए और पहाड़ियों की ओर जाने वाली सड़कों पर बैठ गए, जैसा कि सोशल मीडिया पर साझा किए गए वीडियो में दिखाया गया है.
कुकी प्रदर्शनकारी तख्तियां लेकर बैठे थे जिन पर लिखा था, “मणिपुर को पहाड़ियों और घाटी में विभाजित करो”, “मैतेई के बिना पहाड़ियां सुरक्षित हैं” और “बफर जोन का सम्मान करें.”
थांगजिंग हिल को मैतेई लोगों के लिए एक पवित्र स्थल माना जाता है, जो अप्रैल महीने में यहां आते हैं.
कुक-ज़ो समूहो ने दी चेतावनी
9 अप्रैल को कम से कम छह कुकी-ज़ो संगठनों द्वारा एक संयुक्त बयान जारी किया गया, जिसमें मैतेई लोगों को पहाड़ी पर चढ़ने से परहेज़ करने की चेतावनी दी गई. साथ ही कहा कि इस तरह के किसी भी प्रयास का “पूरी ताकत से विरोध किया जाएगा.”
छह कुकी-ज़ो समूहों ने एक बयान में कहा, “ऐसी अटकलें हैं कि मैतेई समुदाय अप्रैल के महीने में थांगजिंग हिल में चिंगा काबा के लिए बफर ज़ोन को पार करने का इरादा रखता है. भारत सरकार और कुकी-ज़ो समुदाय के बीच कोई राजनीतिक समझौता नहीं हुआ है और इस तरह के समझौते के बिना मैतेई समुदाय को कुकी-ज़ो भूमि में प्रवेश करने का कोई अधिकार नहीं है.”
बयान में कहा गया था, “जब तक भारत सरकार संविधान के तहत कुकी-जो समुदाय के लिए राजनीतिक समाधान नहीं निकालती, तब तक इस क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा सकती.”
उन्होंने चेतावनी दी कि किसी भी प्रकार के प्रवेश को सीधा ख़तरा माना जाएगा और किसी भी संभावित हिंसा की पूरी ज़िम्मेदारी मैतेई समुदाय पर होगी.
इसमें आगे कहा गया है, “जो कोई भी बफर ज़ोन को पार करने की कोशिश करेगा, उसे कुकी-ज़ो समुदाय के लिए सीधी चुनौती माना जाएगा और ऐसे प्रयासों के दौरान होने वाली किसी भी अप्रिय घटना के लिए पूरी तरह से उन लोगों की जिम्मेदारी होगी, जिन्होंने ऐसा किया है.”
बफर ज़ोन, जो सुरक्षा बलों द्वारा कड़ी निगरानी में रखा जाता है. मैतेई-नियंत्रित इम्फाल घाटी और कुकी-प्रभुत्व वाले पहाड़ी जिलों को अलग करता है.
हालांकि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है और गृह मंत्रालय ने स्वतंत्र आवाजाही के निर्देश दिए हैं लेकिन ज़मीनी स्थिति अभी भी तनावपूर्ण बनी हुई है.
अधिकारियों ने बताया कि एहतियात के तौर पर बिष्णुपुर और चुराचांदपुर जिलों में मोइरंग और फौगाकचाई इखाई सहित कई स्थानों पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है.
इस बीच इस पर प्रतिक्रिया देते हुए मैतेई हेरिटेज सोसाइटी ने कुकी-जो संगठनों के बयान को “असंवैधानिक और भड़काऊ” करार दिया और केंद्र व राज्य सरकार से त्वरित कार्रवाई की मांग की..
मैतेई हेरिटेज सोसाइटी ने एक बयान में कहा कि “भारतीय राज्य को यह तय करना होगा कि क्या कानून का शासन कायम रहना चाहिए और क्या उसके नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए.”
बयान में आगे कहा गया है कि मैतेई लोगों को थांगजिंग हिल की तीर्थयात्रा छोड़ने की धमकी देना “असंवैधानिक और स्वतंत्र आवागमन की स्वतंत्रता और धार्मिक प्रथाओं के अधिकार का घोर उल्लंघन है.”
समूह ने अपने बयान में कहा, “यह संविधान में प्रदत्त आवागमन और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन है. प्राचीन काल से ही मैतई समुदाय थांगजिंग पर्वत के रक्षक देवता ईबुधौ थांगजिंग की पूजा के लिए यहां वार्षिक तीर्थयात्रा करता आया है. इस तरह की रोक एक हिंदू को कैलाश पर्वत या एक मुसलमान को मक्का जाने से रोकने के समान है.”
पिछले साल भी हुआ था विवाद
चुराचंदपुर जिले के हेंगलेप पुलिस स्टेशन के अंतर्गत स्थित थांगजिंग हिल्स पिछले साल मई में सुर्खियों में आया था. जब कुकी ने इसका नाम बदलकर थांगटिंग हिल्स कर दिया था.
मैतेई लोगों ने तब गुस्सा जाहिर किया था, जब तस्वीरों में पहाड़ियों की ओर जाने वाले एक गेट को कथित तौर पर कुकी नेशनल फ्रंट-मिलिट्री काउंसिल (KNP-MC) के “थांगटिंग कैंप” के रूप में दिखाया गया.
KNP-MC कुकी विद्रोही समूहों में से एक है, जो सरकार के साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन एग्रीमेंट पर है.
पिछले साल हिंसा के कारण मैतेई लोगों ने तीर्थयात्रा नहीं की थी. लेकिन इस बार वे राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद स्थिति में सुधार को देखते हुए पवित्र पहाड़ियों पर चढ़ने की योजना बना रहे हैं.
क्योंकि कुकी ने पहाड़ियों पर अपना दावा किया था. इसलिए इस साल फरवरी में मणिपुर के वन विभाग ने एक बयान जारी कर कहा था कि थांगजिंग हिल्स रेंज को सितंबर 1966 में संरक्षित वन घोषित किया गया था.
इसमें कहा गया है कि थांगजिंग हिल के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए, मणिपुर सरकार ने 2022 में इसे मणिपुर प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1976 के तहत संरक्षित स्थल भी घोषित किया था.
मैतेई समुदाय के लिए थांगजिंग हिल पवित्र
दरअसल, मैतेई समुदाय थांगजिंग चिंग को अपनी नववर्ष पर्व चेइराओबा के अवसर पर पवित्र मानता है. शाजिबू महीने के पहले दिन परंपरागत रूप से यह पर्व मनाया जाता है और पहाड़ी पर चढ़ाई इसका अहम हिस्सा है.
हर साल अप्रैल में चेइराओबा (मेइतेई नव वर्ष) मनाने के लिए कई मैतेई लोग थांगजिंग हिल जाते हैं, ताकि वे अपने कल्याण के लिए प्रार्थना करते हुए मैतेई देवता लैनिंगथौ सनामाही (Lainingthou Sanamahi) को प्रसाद चढ़ा सकें.
लेकिन मई 2023 में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से थांगजिंग हिल मैतेई लोगों के लिए प्रतिबंधित है.