पश्चिम बंगाल के दो हिस्सों में आदिवासियों की बड़ी आबादी है. एक झारखंड की सीमा से लगा जंगलमहल इलाक़ा, और दूसरा राज्य के उत्तर में जहां चाय के बागान हैं. 27 मार्च को पहले चरण में जंगलमहल में मतदान होगा.
यहां की आदिवासी जनता के समाने दो विकल्प हैं – तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी. पहले चरण के चुनाव बांकुरा, पुरुलिया, झारग्राम, पश्चिम मिदनापुर और पूर्वी मिदनापुर के पांच ज़िलों में 30 सीटों पर होंगे. इनमें से पहले चार जंगलमहल में आते हैं.
इस इलाक़े में 70 प्रतिशत आदिवासी आबादी है जिनमें संथाल, उरांव, सबर, खेरिया, लोधा, मुंडा, भूमिज, महाली, वोरा जैसे समुदाय शामिल हैं. शनिवार को जिन 30 सीटों पर चुनावों होगा, उनमें से कम से कम 15 पर आदिवासी समुदाय परिणाम को प्रभावित करते हैं.
आदिवासी अधिकारों से जुड़े आंदोलनों के चलते, यह इलाक़ा लंबे समय तक वामपंथियों का गढ़ था, लेकिन 2011 में जंगल महल ने ममता बनर्जी के लिए भारी मतदान किया.
2016 के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 30 में से 27, कांग्रेस ने दो और आरएसपी ने एक सीट जीती थी. उस साल बीजेपी इन सभी सीटों पर तीसरे स्थान पर रही थी.
2019 में हालात कुछ बदले, और भाजपा ने इस क्षेत्र की छह लोकसभा सीटों में से पांच पर कब्ज़ा किया. ग़रीबी, नौकरी के अवसरों की कमी, खाद्य सुरक्षा और भ्रष्टाचार इस इलाक़े में प्रमुख मुद्दे हैं.
तृणमूल सरकार ने पिछले कुछ सालों में इस क्षेत्र में सड़क और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं देने की कोशिश की है. लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी यहां अपने पांव पसारने की फ़िराक में है.
उधर, ममता को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का साथ मिला है. हालांकि तृणमूल कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के बीच कोई गठबंधन नहीं हुआ है, लेकिन सोरेन जंगलमहल का दौरा कर टीएसमी के लिए समर्थन जोड़ रहे हैं.