बांसवाड़ा सांसद राजकुमार रोत ने राज्य और केंद्र सरकार पर आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित भूमि को कमर्शियल प्रोजेक्ट और आवासीय क्षेत्रों के लिए कंपनियों को आवंटित करने का आरोप लगाया है.
उनका दावा है कि यह प्रथा मूल निवासी लोगों की आजीविका और सांस्कृतिक विरासत को ख़तरे में डालती है.
रोत ने कहा कि ये आवंटन 2006 के वन अधिकार अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का उल्लंघन करते हैं.
संसद के हाल के सत्र में रोत ने चिंता जताई थी कि आदिवासियों के निवास और आजीविका के लिए बनाई गई भूमि गैर-आदिवासियों को सौंपी जा रही है, जिससे मूल निवासी समुदायों का प्रभाव और अधिकार कम हो रहे हैं.
वहीं रोत ने शुक्रवार को कहा, “पिछले कुछ वर्षों में चार कंपनियों को लगभग 488 हेक्टेयर भूमि आवंटित की गई है और ये अनुमति ग्राम सभा से आवश्यक सहमति प्राप्त किए बिना दी गई थी, जैसा कि पेसा अधिनियम और वन अधिकार अधिनियम (FRA) द्वारा अनिवार्य है. ये पट्टे राजस्थान में लगातार सरकारों द्वारा जारी किए गए थे.”
खास तौर परराजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में दांता और केला मेला गांवों में 85 हेक्टेयर वन भूमि को खुले में संगमरमर खनन के लिए आवंटित किया गया था.
रोत ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा, “यहां तक कि आरक्षित वन क्षेत्रों को भी नहीं बख्शा गया है और उन्हें खनन और अन्य वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए दे दिया जा रहा है.”
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार द्वारा आदिवासी भूमि पर खनन की मंजूरी 1980 के वन संरक्षण अधिनियम और 2023 के वन नियमों का उल्लंघन करती है, जो ऐसी अनुमति देने से पहले आदिवासी आजीविका और अधिकारों की सुरक्षा को अनिवार्य बनाते हैं.
रोत ने प्रस्तावित माही-बांसवाड़ा राजस्थान परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए अधिग्रहित भूमि के मुद्दों को भी उजागर किया, यह सुझाव देते हुए कि इन अधिग्रहणों में भी स्थापित नियमों की अवहेलना की गई है.
रोत ने चेतावनी देते हुए कहा, “मैं समझता हूं कि नियमों का उल्लंघन करके भूमि अधिग्रहण करने की प्रथा दशकों से चली आ रही है लेकिन अब आदिवासी जागरूक हो गए हैं और अपनी भूमि की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं.”
संसद में रोत ने वन विभाग द्वारा आदिवासियों के साथ किए जा रहे व्यवहार पर भी चिंता जताई और कहा कि जहां आदिवासियों को छोटे-मोटे वन उपयोग के लिए परेशान किया जाता है. वहीं निजी कंपनियों को कर्मशियल लाभ के लिए वन भूमि के विशाल क्षेत्रों को नष्ट करने की अनुमति दी जा रही है.
रोत ने आरक्षित क्षेत्रों में खनन और अन्य वाणिज्यिक परियोजनाओं पर तत्काल रोक लगाने का आह्वान किया और वन भूमि उपयोग के लिए दी गई सभी अनुमतियों की गहन समीक्षा की मांग की.
उन्होंने सरकार से आदिवासी समुदायों के अधिकारों और कल्याण को प्राथमिकता देने और कॉर्पोरेट हितों के पक्ष में उन्हें विस्थापित करना बंद करने का आग्रह किया.