ओडिशा के 100 से ज़्यादा आदिवासी बच्चे, जो अपने माता-पिता के साथ खदानों में काम कर रहे थे, उनकी काउंसलिंग कर, उनमें से कुछ को आंध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना द्वारा संचालित स्कूल में दाखिला कराया गया है.
NCLP के कृष्णा ज़िले के परियोजना निदेशक डी अंजनेय रेड्डी ने उन शिविरों का दौरा किया जहां लगभग 200 ओडिशा आदिवासी परिवार रहते हैं. उन्होंने वहां बच्चों के माता-पिता से बातचीत कर और उन्हें अपने बच्चों को स्कूल में भर्ती करने के लिए राज़ी किया.
झुग्गियों, खदान इकाइयों और गांवों में 16 एनसीएलपी स्कूल चलाए जा रहे हैं. लगभग 500 ड्रॉपआउट और दूसरे बच्चों को एनसीएलपी स्कूलों में भर्ती किया गया है.
मुफ्त ट्रांस्पोर्ट
इन आदिवासी प्रवासी मज़दूरों के बच्चों को स्कूल आने के लिए लंबी दूरी पैदल तय करनी पड़ती थी. इन हालात में कई बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया. अब स्कूल प्रशासन ने फिर से भर्ती किए गए इन बच्चों को मुफ्त ट्रास्पोर्ट सुविधा देने का फ़ैसला किया है.
सभी आदिवासी बच्चों को यह सुविधा मिलेगी. यह एक बड़ी वजह है कि खदानों में काम करने वाले अभिभावकों ने बच्चों को स्कूल भेजने का फ़ैसला किया.
खदान में काम करने वाले एक आदिवासी ने द हिंदू अखबार को बताया कि वो खदानों में पत्थर काटते हैं, जिसके लिए उन्हें प्रति दिन 300 रुपए मिलते हैं. कई बार वो अपने बच्चों को साथ ले जाते हैं. एनसीएलपी स्कूल की इस पहल से बच्चे अब अपनी पढ़ाई जारी रख सकेंगे.
इनमें से कई बच्चे एनीमिक हैं, इसलिए उन्हें मिड-डे मील और दूसरा पौष्टिक आहार भी दिया जाएगा. इन 100 छात्रों में कई ऐसे हैं, जिन्हें दोबारा भर्ती किया जा रहा है, क्योंकि उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी.
COVID-19 प्रोटोकॉल का पालन
अभिभावकों को मास्क, अंडे और सूखा राशन भी बांटा गया. यह माता-पिता चाहते हैं कि स्कूल के शिक्षक नियमित रूप से कैंपों का दौरा कर यह सुनिश्चित करें कि बच्चे रूप से अपनी कक्षाओं में भाग ले रहे हैं.
स्कूल फिर से खुलने के बाद कर्मचारियों को COVID-19 प्रोटोकॉल का पालन सख्ती से करने के लिए कहा गया है. फ़िलहाल स्कूल को अच्छे से सैनिटाइज़ कर दिया गया है. सभी छात्रों और उनके अभिभावकों को मास्क और सैनिटाइज़र भी दिए जाएंगे.