हर साल 19 जून को World Sickle Cell Day मनाया जाता है. सिकल सेल एक जेनेटिक बीमारी है, जो माता-पिता से बच्चों में ट्रांसफर होती है.
इस बीमारी के प्रति जागरूकता फैलाने के मकसद से 22 दिसंबर 2008 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा में 19 जून को विश्व सिकल सेल जागरूकता दिवस (World Sickle Cell Awareness Day) के रूप में मनाए जाने का फैसला लिया गया था.
जिसके बाद से हर साल इस दिन को विश्व स्तर पर मनाया जाता है. पहली बार सिकल सेल जागरूकता दिवस 19 जून 2009 को आयोजित किया गया था.
वहीं आज विश्व सिकल सेल दिवस के अवसर पर केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय ने बिरसा मुंडा केंद्र, ऐम्स (AIIMS) दिल्ली के साथ मिलकर इस रोग के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया.
केंद्रीय जनजातीय मंत्री जुएल ओराम (Jual Oram) ने इस सम्मेलन की अध्यक्षता की. ऐम्स (AIIMS) के डायरेक्टर एम श्रीनिवास भी इस सम्मेलन में मौजूद थे. साथ ही राज्य मंत्री दुर्गादास उइके भी इस कॉन्फ्रेंस में शामिल थे.
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में केंद्रीय जनजातीय मंत्री बने जुएल ओराम ने अपने संबोधन में कहा कि जब प्रधानमंत्री गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे तब उन्हें सबसे पहले जनजाति कार्य मंत्री बनाया गाया था तब गुजरात के जनजातीय इलाकों में पहला दौरा करने के बाद उन्हें पता लगा कि आदिवासी क्षेत्रों में सिकल सेल एक व्यापक समस्या है.
उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि ये बीमारी सिर्फ आदिवासियों में है लेकिन जहां आज भी बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करवाना मुश्किल है, उन क्षेत्रों में सिकल सेल से संबंधित जागरूकता पहुंचाना एक बहुत बड़ी चुनौती है.
ओराम ने कोविड महामारी से निपटने में आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की भूमिका की प्रशंसा की और कहा कि वे भारत को सिकल सेल रोग से मुक्त बनाने के सरकार के लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
उन्होंने आगे कहा कि शीर्ष विशेषज्ञ और डॉक्टर राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन में योगदान देंगे लेकिन सफलता केवल जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की भागीदारी से ही संभव होगी.
विकसित भारत संकल्प यात्रा का उदाहरण देकर ओराम ने समझाया कि किसी भी अभियान को ज़मीनी स्तर पर सफल बनाने के लिए ग्राम पंचायतों में उसका सही तरीके से लागू होना बहुत ज़रूरी है.
उन्होंने कहा कि जब तक ग्राउंड लेवल पर लोगों को सिकल सेल जागरूकता अभियान में शामिल नहीं करेंगे और जब तक ग्रामीणों को प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा तब तक आपकी प्लेनिंग, बड़े बजट और डॉक्टरों के प्रयासों से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.
उन्होंने कहा कि सरकार प्लेटफार्म दे सकती है, डॉक्टर बता सकते है कि क्या करना है, क्या सावधानियाँ बर्तनी हैं लेकिन काम तो ग्राउंड पर होगा. इसलिए काम करने वाले जो लोग हैं उन्हें जागरूक करना और प्रोत्साहित करना ज़रूरी है.
जनजातीय मंत्री ने कहा कि इस प्रोग्राम से संबंधित लोगों को सुझाव दिया कि वे उन 340 गांवों में जाकर देखें जो इस जागरूकता अभियान के प्रथम चरण का हिस्सा है और उस हिसाब से योजना बनाए और सुधार करें.
PM ने लॉन्च किया था सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 जुलाई 2023 को नेशनल सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन को लांच किया था. इसका उद्देश्य यह था कि सिकल सेल एनीमिया की समय से पहचान कर उसके उन्मूलन की दिशा में काम करना.
भारत सरकार ने लक्ष्य रखा था कि 2047 के पहले भारत में सिकल सेल एनीमिया का खात्मा कर दिया जाए. इसके अंतर्गत 40 साल तक के 7 करोड़ लोगों की जाँच का लक्ष्य रखा गया था. इसके अलावा सिकल सेल के प्रति जागरुकता, काउंसलिंग और ट्रेनिंग भी शामिल है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब तीन से साढ़े तीन करोड़ लोगों की जांच अभी तक की जा चुकी है यानि करीब 50 प्रतिशत तक टार्गेट पूरा हो चुका है. जिसमें करीब 10 लाख इसके कैरियर पाए गए हैं और करीब एक लाख लोगों में ये बीमारी पाई गई है.
वहीं आज 17 जिलों और 350 गांवों में इस प्रोग्राम का आयोजन किया गया है.
क्या है सिकल सेल एनीमिया?
सिकल सेल एनीमिया एक जेनेटिक डिसऑर्डर है. स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में लाल रक्त कोशिकाएं होती हैं जो आकार में गोल, नर्म और लचीली होती हैं. लाल रक्त कोशिकाओं का लाल रंग उसमें रहने वाले हीमोग्लोबिन नामक तत्व के कारण होता है.
हीमोग्लोबिन का आकार सामान्य के बदले असामान्य भी देखने को मिलता है. जब लाल रक्त कोशिकाओं में इस प्रकार का बदलाव होता है तब लाल रक्त कोशिकाएं जो सामान्य रूप से आकार में गोल और लचीली होती हैं यह गुण परिवर्तित कर अर्ध गोलाकार एवं सख्त/कड़क हो जाता है जिसे सिकल सेल कहा जाता है.
यह धमनियों में अवरोध उत्पन्न करती हैं जिससे शरीर में हीमोग्लोबिन व खून की कमी होने लगती है इसलिए इसे सिकल सेल एनीमिया कहा जाता है.