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वैक्सिनेशन सेंटर तक पहुंच की कमी और अंधविश्वास दूर रख रहा है तेलंगाना के आदिवासियों को कोविड वैक्सीन से

अनुसूचित क्षेत्रों के रूप में मान्यता प्राप्त तेलंगाना के 10 जिलों में से, तीन ज़िले - आदिलाबाद, आसिफ़ाबाद और नागरकुरनूल – में कुल आबादी के 10 प्रतिशत हिस्से को ही वैक्सीन लग पाया है. बाकी बचे सात जिलों ने अपनी आबादी के 20 प्रतिशत से भी कम लोगों को वैक्सीन की एक डोज़ लगाई है. यह राज्य के 32 फीसदी के औसत से काफ़ी कम है.

एक जुलाई को जब तेलंगाना सरकार ने 18 साल से ज़्यादा उम्र के नागरिकों के लिए कोविड वैक्सिनेशन अभियान शुरू किया, तब CoWin पोर्टल पर लगभग 3 लाख स्लॉट खुले.

हैदराबाद में, स्लॉट कुछ ही मिनटों में पूरी तरह से बुक हो गए, लेकिन आदिलाबाद के दूरदराज़ के आदिवासी इलाकों, जैसे झरी और गजिगुडा में, वैक्सिनेशन सेंटरों में सिर्फ़ मुट्ठी भर लोग ही पहुंचे.

हालत ऐसी थी कि इन आदिवासी इलाक़ों के कई सेंटरों से लोगों को बिना वैक्सीन के लौटना पड़ा क्योंकि वैक्सीन की शीशियां 10 से कम लोगों के लिए नहीं खोली जा सकतीं.

कमोबेश यही कहानी तेलंगाना के दूसरे आदिवासी इलाकों में भी है. CoWin पोर्टल पर डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि अनुसूचित क्षेत्रों के रूप में मान्यता प्राप्त तेलंगाना के 10 जिलों में से, तीन ज़िले – आदिलाबाद, आसिफ़ाबाद और नागरकुरनूल – में कुल आबादी के 10 प्रतिशत हिस्से को ही वैक्सीन लग पाया है.

बाकी बचे सात जिलों – मंचेरियल, कोठुगुडेम, निर्मल, महबूबाबाद, जंगाव, मुलुगु और खम्मम – ने अपनी आबादी के 20 प्रतिशत से भी कम लोगों को वैक्सीन की एक डोज़ लगाई है. यह राज्य के 32 फीसदी के औसत से काफ़ी कम है.

तेलंगाना के स्वास्थ्य अधिकारी कम वैक्सिनेशन संख्या के पीछे जागरुकता की कमी और अंधविश्वास से लेकर स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को ज़िम्मेदार मानते हैं.

इसके अलावा आदिवासियों की मान्यताएं की वैक्सिनेशन की धीमी दर के लिए एक बड़ी वजह हैं. कई आदिवासी एक स्थानीय देवता की पूजा करते हैं, और मानते हैं कि सिर्फ़ देवता ही सभी बीमारियों को ठीक कर सकते हैं.

इस विश्वास या अंधविश्वास से पार पाने के लिए ज़रूरत है सामान्य स्वास्थ्य संचार से परे जाने की. इसके अलावा स्थानीय नेताओं, और आदिवासियों के मुखियाओं की मदद लेनी होगी, ताकि हर आदिवासी बस्ती में वैक्सीन के महत्व को पहुंचाया जा सके.

वैक्सिनेशन कम होने की एक और वजह है कनेक्टिविटी की कमी. अगर किसी के पास निजी वाहन नहीं है, तो उनके लिए वैक्सिनेशन सेंटर तक पहुंचना बेहद मुश्किल होगा. सेंटर तक दूरी तो है ही, लेकिन स्वास्थ्य कर्मियों के पास संसाधनों की कमी भी एक बड़ा मुद्दा है.

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