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बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा- आदिवासी क्षेत्रों में काम करने से मना करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें

बेंच ने कहा कि जब राज्य सरकार स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की नियुक्ति पर काम कर रही है और महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (MPSC) उन पदों को भर रहा है, फिर भी मुद्दा यह है कि कई "प्रतिनियुक्त डॉक्टर काम पर नहीं आते हैं."

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि बाल रोग विशेषज्ञ और स्त्री रोग विशेषज्ञ सहित विशेषज्ञ डॉक्टर कुपोषण से होने वाली मौतों से प्रभावित आदिवासी क्षेत्रों में अपनी प्रतिनियुक्ति के अनुसार सेवा में शामिल हों. साथ ही कहा कि “रोजाना नहीं तो हफ्ते में कम से कम कुछ दिन काम करें”.

कोर्ट ने राज्य सरकार को आदिवासी क्षेत्रों में पोस्टिंग लेने से इनकार करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि वे प्रभावित लोगों के लिए उपलब्ध हों.

एक जनहित याचिका (PIL) के जरिए याचिकाकर्ता, बंडू संपतराव साने ने कोर्ट को बताया कि अकेले 2022 में महाराष्ट्र के आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण के कारण लगभग 10 हज़ार मौतें हुईं और कई अदालती आदेशों के बावजूद स्पेशलिस्ट डॉक्टर वहां काम करने के इच्छुक नहीं हैं.

एक्टिंग चीफ जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस एसजी चपलगांवकर की डिवीजन बेंच कार्यकर्ता डॉक्टर राजेंद्र बर्मा और बंडू संपतराव साने द्वारा दायर याचिका सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. साने ने कोर्ट को बताया कि स्त्री रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ और रेडियोलॉजिस्ट सहित कोई भी विशेषज्ञ डॉक्टर आदिवासी क्षेत्रों में पोस्टिंग लेने के इच्छुक नहीं थे.

वहीं एडिशनल स्टेट गवर्नमेंट की याचिकाकर्ता नेहा भिड़े ने बताया कि महाराष्ट्र सरकार ने डॉक्टरों के लिए ग्रामीण या आदिवासी क्षेत्रों में पोस्टिंग लेना अनिवार्य कर दिया था. लेकिन कई ने आदिवासी क्षेत्रों में जाने से इनकार कर दिया. साथ ही बॉन्ड पर हस्ताक्षर करने या प्रतिनियुक्त होने के बावजूद काम करने की रिपोर्ट भी नहीं की.

उन्होंने कहा कि सरकार रिक्त पदों को भरने और ऐसे डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई करने की कोशिश कर रही है.

बेंच ने कहा कि जब राज्य सरकार स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की नियुक्ति पर काम कर रही है और महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (MPSC) उन पदों को भर रहा है, फिर भी मुद्दा यह है कि कई “प्रतिनियुक्त डॉक्टर काम पर नहीं आते हैं.”

जस्टिस गंगापुरवाला ने कहा, “सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? क्या कोई कार्य योजना है और क्या वहां डॉक्टरों की प्रतिनियुक्ति की गई है? सरकार की नीतियां कल्याणकारी हैं. यह सुनिश्चित करने के लिए कार्रवाई की जानी चाहिए कि डॉक्टर हफ्ते के सात दिन नहीं तो कम से कम कुछ दिनों के लिए उपलब्ध हों. प्रतिनियुक्त डॉक्टरों को ज्वाइन कराने के लिए आप (राज्य सरकार) क्या निवारक कार्रवाई कर रहे हैं? यह देखें कि प्रतिनियुक्त डॉक्टर ड्यूटी पर हों और एक कार्यप्रणाली हो. बॉन्ड राशि की वसूली रिक्तियों को रिप्लेस नहीं करेगी. स्त्री रोग विशेषज्ञ और बाल रोग विशेषज्ञ ड्यूटी पर होने चाहिए.”

नेहा भिड़े ने तब कहा था कि राज्य सरकार याचिका को उसके खिलाफ नहीं मान रही है और वह जनजातीय क्षेत्रों में चिकित्सा कर्मियों को उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक कदम उठाती रहेगी.

बेंच ने अगली सुनवाई 19 जनवरी 2023 को रखी है.

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