मोदी सरकार ने दावा किया है कि आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए उसने क्रांतिकारी सुधार लाने पर जोर दिया है. सरकार की तरफ़ से बताया गया है कि संसद में आदिवासियों की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए संसद में कई संशोधन विधेयक लाए गए.
सरकार ने दावा किया है कि आदिवासी विकास के लिए बजट खर्च बढ़ाया गया है. इसके अलावा उनकी उपज को अंतरराष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराने से लेकर नए स्कूल खोलने और आदिवासी भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा देने तक, सरकार आदिवासियों के लिए काम कर रही है.
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बुधवार को कहा कि मोदी सरकार आदिवासियों के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए एक आदर्श बदलाव लेकर आई है.
2014-15 में आदिवासियों के लिए केंद्र प्रायोजित योजनाओं का बजट 19,437 करोड़ रुपये था जो चालू वर्ष में 91 हज़ार करोड़ रुपये है.
जनजातीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तकें
प्रधान ने कहा कि मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान स्थानीय भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है और इसका भी फायदा आदिवासी समुदाय के लोगों को भी मिल रहा है.
उन्होंने कहा, “[राष्ट्रपति] द्रौपदी मुर्मू देश में सर्वोच्च पद पर हैं और वह एक शिक्षिका थीं. शिक्षा क्रांतिकारी परिवर्तन लाती है और इस तरह हमारा ध्यान यह सुनिश्चित करना है कि शिक्षा आदिवासियों तक पहुंचे. जब उनकी भाषा औपचारिक हो जाएगी, तो उन्हें इससे लाभ होगा.”
उन्होंने कहा कि यूजीसी ने कहा है कि उसकी पाठ्यपुस्तकें स्थानीय/आदिवासी भाषाओं में होंगी. स्थानीय भाषाओं और मातृभाषा में शिक्षा राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के प्रमुख स्तंभों में से एक है. पीएम मोदी देश की आदिवासी आबादी को लंबे समय से सम्मान दे रहे हैं.
एकलव्य विद्यालयों के लिए 2014-15 में 3,832 करोड़ रुपये का बजट था, जो 2022-23 में बढ़कर 8,500 करोड़ रुपये हो गया. प्रधान ने कहा कि यह उनकी पहचान का सम्मान करने से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वरोजगार प्रदान करने तक आदिवासियों की आबादी के उत्थान के लिए पीएम मोदी की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.
बाजरा वर्ष जनजातीय कल्याण से जुड़ा है
केंद्र सरकार की आदिवासी कल्याण योजनाओं के बारे में चर्चा करते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि जनजातीय समुदाय द्वारा उगाए जाने वाले बाजरा को केंद्र सरकार G-20 की बैठक में प्रमुख भोजन के तौर पर मेहमानों को परोसेगी.
धर्मेंद्र प्रधान का कहना है कि पीएम नरेंद्र मोदी सरकार के प्रयासों के कारण ही संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने 2023 को इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर घोषित किया है. प्रधान ने कहा कि बाजरा के कई पोषक गुण हैं और इसकी पूरी तरह से ब्रान्डिंग भारत सरकार करेगी. जिससे इसका फायदा देश के आदिवासी समुदाय को ही होगा.
धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मेहमानों को न सिर्फ बाजरा के फायदे बताते हैं बल्कि उन्हें भोजन के तौर पर बाजरा से बना खाना खिलाते भी हैं.
आदिवासी आबादी पर फोकस
धमेंद्र प्रधान ने जानकारी दी कि राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासियों के मुद्दों को देखने के लिए पहली बार राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई है. उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों को उजागर करने का प्रयास किया गया है.
उन्होंने कहा, “आदिवासी आबादी ने स्वतंत्रता संग्राम में अत्यधिक योगदान दिया है. भगवान बिरसा मुंडा से लेकर लक्ष्मण नाइक, निर्मल मुंडा, माधो सिंह और कई अन्य, कई दिग्गजों ने स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया. आदिवासियों के गौरव के लिए बिरसा मुंडा की जयंती को आदिवासी गौरव दिवस के तौर पर मनाया जा रहा है. पूरे देश में जनजातीय संग्रहालयों का निर्माण किया जा रहा है.”
सरकार द्वारा सर्चेबल एक डिजिटल जनजातीय भंडार विकसित किया गया है. वन धन विकास केन्द्र योजना के अंतर्गत ऐसे केन्द्र विकसित किये जा रहे हैं जिनमें स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से जनजातीय लोगों को जोड़ा जा रहा है. लगभग 60 हज़ार कारीगर MSME के पारंपरिक उद्योगों के उत्थान के लिए कोष योजना (SFURTI) के तहत लगे हुए हैं.
दरअसल, आदिवासी आबादी प्रत्येक राज्य में राजनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण हैं. कई राज्यों में तो अनुसूचित जनजाति की आबादी काफी ज्यादा है. ऐसे में बीजेपी के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह जीत हासिल करने के लिए उनका समर्थन हासिल करे.
बीजेपी का ध्यान खासतौर पर 2024 के लोकसभा चुनावों पर केंद्रित है. फिलहास आदिवासी बहुल त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में होने वाले विधानसभा चुनाव पर बीजेपी की नज़रें हैं.
सरकार के दावों और सच्चाई में फ़ासला है
सरकार बेशक यह दावा कर सकती है कि उसने आदिवासी मंत्रालय या फिर उन योजनाओं का बजट बढ़ाया है. लेकिन आदिवासी मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति की रिपोर्ट इन दावों पर गंभीर सवाल उठाती है.
इसी साल अगस्त महीने में जब आदिवासी मंत्रालय से जुड़ी इस समिति की रिपोर्ट में पता चलता है कि सरकार ने आदिवासी बच्चों के लिए पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप की संख्या साल 2020-21, 2021-22 और 2022-23 में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई है.
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह नोट करते हुए हैरानी प्रकट की थी कि इस योजना का लक्ष्य स्कूल ड्रॉप आउट रेट को न्यूनतम स्तर पर लाना है. लेकिन इस योजना में तीन सालों में टार्गेट एक समान ही रखा गया है.
कमेटी ने यह भी कहा है कि आदिवासी मंत्रालय ने आदिवासी आबादी के सही आँकड़ों की तुलना में इस योजना के लिए आदिवासी छात्रों की संख्या को कवर करने का लक्ष्य नहीं बनाया है.
इसके साथ ही कमेटी ने यह भी नोट किया है कि अरुणाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र, तेलंगाना, मेघालय और उत्तर प्रदेश को एक पैसा भी चालू वित्त वर्ष में नहीं भेजा गया था.
इसके जवाब में सरकार ने कमेटी को बताया था कि इन राज्यों ने समय से पैसा खर्च करने का प्रमाण पत्र केंद्र को नहीं भेजा था इसलिए उन्हें केंद्र से पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप का पैसा नहीं भेजा जा सका है.
शिक्षा के क्षेत्र में आदिवासियों के लिए क्रांतिकारी काम करने का दावा बेशक किया जा रहा है. लेकिन इस क्षेत्र से जुड़े तथ्य सरकार के दावों का समर्थन नहीं करते हैं.
मसलन आदिवासी छात्रों के लिए स्थापित किये जाने वाले एकलव्य मॉडल रेजिडेंशियल स्कूलों के लक्ष्य से भी सरकार काफ़ी दूर खड़ी हुई नज़र आती है.
मोदी सरकार ने साल 2022 तक 462 नए EMRS स्थापित करने का लक्ष्य रखा था. लेकिन तथ्य ये है कि यह साल ख़त्म होने वाला है और सरकार अभी 100 स्कूल भी नहीं बना सकी है. अब सरकार ने साल 2025 तक इस लक्ष्य को हासिल करने का लक्ष्य रखा है.
इसी तरह से कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना के बजट और ख़र्च पर सवाल उठाए हैं.