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तमिलनाडु: आदिवासी बस्तियों में बाल विवाह पर रोक लगाने कि लिए उठाए जा रहे हैं क़दम

तमिलनाडु का समाज कल्याण एवं महिला अधिकारिता विभाग बाल विवाह के खिलाफ नकेल कसने की तैयारी कर रहा है.

ग़ैर सरकारी संगठन चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) ने हाल ही में एक रिपोर्ट साझा की थी, जिसमें दावा है कि राज्य के कुछ हिस्सों में बाल विवाह की घटनाएं तेज़ी से बढ़ रही हैं.

अब उस रिपोर्ट के हवाले से मंत्री पी गीता जीवन ने अधिकारियों को बाल विवाह के पीड़ितों के परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं.

मंत्री गीता जीवन ने सोमवार को अपने विभाग और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ इस मामले पर समीक्षा बैठक की. बैठक के बाद उन्होंने मीडिया को बताया कि ज़िला समाज कल्याण अधिकारियों (District Social Welfare Officers – DSWO) से बाल विवाह के सभी मामलों में कड़ी कानूनी कार्रवाई करने को कहा गया है.

चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) की रिपोर्ट में कहा गया है कि सेलम, धर्मपुरी, रामनाथपुरम और डिंडीगुल जिलों के 10 ब्लॉक और 72 आदिवासी बस्तियों में बाल विवाह के मामलों में 40% की वृद्धि हुई है. मई 2020 में इन ज़िलों में 98 बाल विवाह के मामले दर्ज किए गए, जबकि मई 2019 में 60 मामले दर्ज किए गए थे.

एक अधिकारी ने CRY की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि सिर्फ़ 2020 में तमिलनाडु के इन चार ज़िलों में 318 बाल विवाह हुए.

ज़िला स्तर के अधिकारियों को इस प्रथा के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए गांव-स्तरीय बाल विवाह निषेध समितियों को सक्रिय करने के लिए कहा गया है. इसके अलावा ज़िला कलेक्टर समय-समय पर बाल विवाह के मामलों की समीक्षा करेंगे.

हर DSWO को लंबित मामलों की स्टेटस रिपोर्ट देने को भी कहा गया है. मंत्री गीता जीवन का कहना है कि आदिवासी लोगों में जागरुकता की कमी है, इसलिए वो बाल विवाह को अवैध नहीं मानते.

बाल विवाह के मामलों में बढ़ोत्तरी इन परिवारों की ख़राब सामाजिक-आर्थिक स्थिति की वजह से है. ऐसे में ज़रूरत है आदिवासियों की सामाजिक स्थिति को समझने की, और उनकी आर्थिक स्थिति में तेज़ी से सुधार लाने की.

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