आज़ादी के बाद अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) की पहली सूची संविधान के अनुच्छेद 342(2) के अनुसार 1950 में प्रकाशित की गई थी. जिसमें एसटी को शामिल करने और बाहर करने के नियमों का पालन किया गया था.
इसके बाद इस सूचि में 1956, 1976, 2003 और सबसे हाल ही में 3 जनवरी, 2023 को संशोधन किए गए.
हालांकि, आदिवासी आबादी को बेहतर शिक्षा और रोजगार के अपने सपनों को पूरा करने के लिए सामुदायिक प्रमाण पत्र प्राप्त करने की चुनौती का सामना करना पड़ता है.
तमिलनाडु में एक महिला सहित तीन लोगों ने कथित तौर पर अपनी जान ले ली क्योंकि वे अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने में विफल रहे थे.
तमिलनाडु में कट्टुनाइकर, मलकुरवन, कोंडारेड्डी, कुरुमान और कनिक्कर जैसे समुदायों के आदिवासी अपनी पहचान स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
कई अदालती आदेशों और सरकारी आदेशों (Government Orders) के बावजूद, राजस्व विभाग सहित प्रशासनिक तंत्र एसटी प्रमाण पत्रों के वितरण में अत्यधिक देरी करता है. इस वजह से संघर्ष और दुखद घटनाएं होती हैं.
ऑनलाइन आवेदन के दौरान आने वाली चुनौतियां
तमिलनाडु सरकार ने आदिवासी समुदायों के लिए सामुदायिक प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए ऑनलाइन आवेदन जमा करना अनिवार्य कर दिया है.
तमिलनाडु आदिवासी संघ (TNTA) ने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि वह राज्य भर में आदिवासियों के सामने आने वाली इंटरनेट पहुंच सहित कई मुश्किलों को देखते हुए ऑफ़लाइन आवेदन जमा करने का विकल्प खुला रखे.
टीएनटीए के एक नेता ने कहा, “हमारे अनुरोध पर राज्य सरकार ने अभी तक विचार नहीं किया है. स्कूल और कॉलेज के छात्रों द्वारा ऑनलाइन जमा किए गए आवेदन अक्सर खारिज हो जाते हैं. इसके कई कारण बताए गए हैं, जिनमें उचित डेटाबेस की कमी, पुराने कार्ड-फ़ॉर्मेट वाले सामुदायिक प्रमाणपत्र ऑनलाइन सिस्टम के अनुकूल नहीं होना और राजस्व विभाग के कुछ अधिकारियों द्वारा जानबूझकर खारिज किया जाना शामिल है.”
मानवाधिकार आयोग का हस्तक्षेप
2021 में तमिलनाडु राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC) ने एसटी प्रमाण पत्र जारी करने में अधिकारियों के सुस्त रवैये पर कई रिपोर्ट आने के बाद एक स्वप्रेरणा मामला उठाया.
राजस्व प्रशासन के आयुक्त को SHRC के समक्ष उपस्थित होना पड़ा और एक हलफनामा प्रस्तुत करना पड़ा जिसमें सभी राजस्व प्रभागीय अधिकारियों के साथ बैठकें आयोजित करने और प्रमाण पत्र जारी करने में तेजी लाने के उपाय करने का वादा किया गया था.
टीएनटीए के डिली बाबू ने मीडिया से कहा, “वादे के बावजूद सामुदायिक प्रमाणपत्र जारी करने में बड़ी समस्याएं सभी जिलों में बनी हुई हैं. वेलमुरुगन की दो साल पहले मद्रास उच्च न्यायालय के सामने खुद को आग लगाने के बाद मृत्यु हो गई; पेरियासामी ने थिरुथानी राजस्व अधिकारी के कार्यालय में फांसी लगा ली; और साथ ही एडप्पालायम, तिरुवन्नामलाई में पन्नियांदी समुदाय से राजेश्वरी भी.”
कोर्ट के आदेशों और जीओ का पालन न करना
पिछले डेढ़ दशक से आदिवासी समुदाय को एसटी समुदाय प्रमाण पत्र प्राप्त करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. टीएनटीए ने कई राजस्व प्रभागीय अधिकारियों (RDO) और तहसीलदारों पर हाई कोर्ट के आदेशों और तमिलनाडु जीओ का सम्मान न करने का आरोप लगाया है.
डिली बाबू ने कहा, “हाई कोर्ट के आदेश और राज्य सरकार द्वारा जारी जी.ओ. 104 में कहा गया है कि जिन माता-पिता के पास पहले से ही एसटी समुदाय का प्रमाण पत्र है, उनके बच्चों और रक्त संबंधियों को भी एसटी प्रमाण पत्र जारी किया जाना चाहिए. लेकिन अधिकांश अधिकारी आदेशों को लागू करने से इनकार करते हैं.”
मदुरै, डिंडीगुल, पलानी, तिरुपत्तूर, मेट्टूर, अरुप्पुकोट्टई, विरुधुनगर और धर्मपुरी में राजस्व अधिकारियों पर आरोप है कि वे जनजातीय समुदाय प्रमाण-पत्रों के लिए आवेदनों को लगातार खारिज कर रहे हैं.
आवेदकों को अपील दायर करने के लिए मजबूर कर रहे हैं या मानवविज्ञानियों द्वारा आगे की जांच के लिए मजबूर कर रहे हैं, जिससे उन्हें लगातार परेशान किया जा रहा है.
पुलायन और वेट्टईकरन जनजातियां 1974 तक तमिलनाडु की जनजातीय सूची में शामिल थीं और 1975 में इन दोनों जनजातीय समुदायों को अज्ञात कारणों से सूची से हटा दिया गया था.
वेट्टईकरन समुदाय को 2016 में पुडुचेरी सरकार की जनजातीय सूची में शामिल किया गया था, लेकिन तमिलनाडु में इसे शामिल करने के लिए संघर्ष कई वर्षों से जारी है.
आरक्षण और आवास भूमि पट्टे
2011 की जनगणना के मुताबिक, राज्य में 9 लाख 69 हज़ार 654 आदिवासी लोग हैं. लेकिन आरक्षण 1.04 फीसदी को कवर करता है.
तमिलनाडु सरकार द्वारा आवास भूमि पट्टे प्रदान करने का नया आदेश उन आदिवासी लोगों के लिए राहत की बात है, जो बेघर, भूमिहीन हैं और दिहाड़ी मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते हैं.
टीएनटीए ने कहा कि सभी बेघर आदिवासी लोगों को मुफ्त आवास भूमि पट्टे प्रदान करने के लिए जल्द से जल्द मूल्यांकन किया जाना चाहिए.
डिली बाबू ने कहा, “सबसे बुरी बात यह है कि राज्य सरकार ने दलितों और आदिवासियों के कल्याण के लिए आवंटित अप्रयुक्त धनराशि को वापस कर दिया है. पिछले 10 वर्षों में लगभग 5,318 करोड़ रुपये बिना खर्च किए ही वापस कर दिए गए हैं.”
वन एवं भूमि अधिकार
वन अधिकार अधिनियम 2006 (FRA) 2016 से तमिलनाडु में लागू हुआ. FRA वन भूमि में रहने वाले आदिवासी लोगों और पारंपरिक वनवासियों को भूमि अधिकार सुनिश्चित करता है.
लेकिन पिछले कई वर्षों से अधिनियम लागू होने के बावजूद केवल 15,000 आवेदनों पर ही कार्रवाई की गई है और व्यक्तिगत भूमि पट्टों और सामुदायिक भूमि अधिकारों का वितरण किया गया है.
डिली बाबू ने कहा, “शिक्षा और रोजगार के अवसर प्राप्त करने के लिए सामुदायिक प्रमाण पत्र केंद्रीय बिंदु हैं. आरक्षण कोटे के अनुसार बैकलॉग रिक्तियों को भरना और एफआरए को पूरी तरह से लागू करना आदिवासी लोगों को हाशिए पर जाने से बचाने और उन्हें अन्य सामाजिक समुदायों की तरह सभी अधिकारों वाले समुदाय के रूप में स्थापित करने के लिए आवश्यक है.”