HomeAdivasi Dailyकोयला खदान के विस्तार का विरोध करने पर आदिवासी एक्टिविस्ट और नेता...

कोयला खदान के विस्तार का विरोध करने पर आदिवासी एक्टिविस्ट और नेता गिरफ़्तार

इन खदानों से पैदा होने वाली फ्लाई ऐश से आसपास के खेत, और जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं. यहां तक ​​कि इन आदिवासियों के घरों और आंगनवाड़ी केंद्रों का पीने का पानी भी प्रभावित हो रहा है.

ओडिशा में सोलह आदिवासी एक्टिविस्ट और नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है. यह लोग 14 फ़रवरी को सुंदरगढ़ ज़िले में कुलदा की खदानों के विस्तार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे थे.

इलाक़े के आदिवासियों के मुद्दों को नज़रअंदाज़ करते हुए, केंद्र सरकार ने हाल ही में टपरिया क्षेत्र में स्थित कुलदा खानों में कोयला खनन गतिविधि के विस्तार को मंज़ूरी दे दी थी.

इस विस्तार के बाद खदान की क्षमता, जो फ़िलहाल 14 मिलियन टन प्रति वर्ष (MTPA) है, वो 19.60 MTPA हो जाएगी.

19 जनवरी को कोयला खनन में विस्तार की ख़बर आने के बाद से ही इलाक़े के आदिवासी विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, जिसके बाद राज्य सरकार ने यहां धारा 144 लगा दी थी.

ख़बरों के मुताबिक़ इन एक्टिविस्टों पर धारा 307, जो हत्या के प्रयास का आरोप है, लगाई गई है.

इलाक़े के गांवों में खड़िया आदिवासी समुदाय रहते हैं. खड़िया एक आदिम जनजाति यानि PVTG है, मतलब यह काफ़ी पिछड़े हैं, और सरकार इनके लिए अलग से योजनाएं बनाती है. यहां ओराम और गोंड आदिवासी भी रहते हैं.

इलाक़े के आदिवासी खदानों के विस्तार का विरोध कर रहे हैं (NEWSCLICK पर छपी तस्वीर)

यह आदिवासी लंबे समय से इन खदानों का विरोध कर रहे हैं. कुलदा की खदानों से छत्तीसगढ़ तक कोयले की ढुलाई होती है.

इन खदानों से पैदा होने वाली फ्लाई ऐश से आसपास के खेत, और जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं. यहां तक ​​कि इन आदिवासियों के घरों और आंगनवाड़ी केंद्रों का पीने का पानी भी प्रभावित हो रहा है.

महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड (MCL) इन खदानों की मालिक है. परिवेश वेबसाइट पर छपे विस्तार की शर्तों के अनुसार, वायु प्रदूषण कम करने के लिए कंपनी को आसपास के गांवों में एक लाख पेड़, और कोयला ले जाने वाली सड़कों पर दो साल में पचास हज़ार पेड़ लगाने हैं.

कंपनी को यह भी निर्देश दिया गया है कि वो मार्च तक तीन एयर क्वॉलिटी मॉनिटरिंग स्टेशन शुरु करे, जिसके आंकड़े कंपनी की वेबसाइट और माइनिंग लीज़ वाले इलाक़े में लगातार अपडेट किए जाएं.

यह खदान 2007 से चल रही है. गांवों के विरोध और पर्यावरण प्रोटोकॉल का पालन न करने के बावजूद, इसे अगले 30 सालों के लिए विस्तार दे दिया गया है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments