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‘जंगल हमारा घर है’ फ़िल्म सिटी या फिर मैट्रो शेड हमारा ही घर लुटता है – आरे के आदिवासी

कार्यकर्ताओं के अनुसार, मुद्दा मेट्रो शेड के बारे में नहीं है, बल्कि आरे में प्रस्तावित सभी रियल एस्टेट, वाणिज्यिक और मनोरंजन परियोजनाओं के खिलाफ है, जैसे 33 मंजिला मेट्रो भवन और क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (RTO).

आरे कॉलोनी के अंदर मुंबई मेट्रो शेड परियोजना फिर से पटरी पर आने के साथ, आदिवासियों को डर है कि वे अपनी कल्चर, आजीविका और आवास हमेशा के लिए खो देंगे.

आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधियों ने गुरुवार को मीडिया को संबोधित किया और सरकार पर परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें जबरदस्ती उनके घरों से बेदखल करने का आरोप लगाया.

एक 70 वर्षीय आदिवासी महिला, लक्ष्मी गायकवाड़, जिसे बेदखल कर दिया गया था और एक एसआरए परियोजना में स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया गया था, ने कहा, “पुलिस ने जबरदस्ती हमें हमारे घर खाली कर दिए. उन्होंने मुझे एक इमारत की 12वीं मंजिल पर एक घर दिया. मैं उस घर का क्या करूंगी? क्या यह मेरे लिए खाने की व्यवस्था कर सकता है? हम यहां के नहीं हैं.”

लक्ष्मी गायकवाड़ ने कहा कि जंगल उनका घर है और वह अपने प्राकृतिक आवास में बेहतर है.

वहीं आदिवासी समुदाय की एक सदस्य आशा भोय ने कहा, “अगर वास्तव में मेट्रो कार डिपो का काम लगभग पूरा हो चुका है तो 33 हेक्टेयर से अधिक जमीन की घेराबंदी क्यों कर रखा है.”

भोय ने कहा, “वे झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले नहीं हैं और अपनी पहचान साबित करने के लिए एक साल से संघर्ष कर रहे हैं. इस बीच, आप (अधिकारी) हमारी पुश्तैनी जमीन को नष्ट करने का अपना काम करते रहे.”

कार्यकर्ताओं के अनुसार, मुद्दा मेट्रो शेड के बारे में नहीं है, बल्कि आरे में प्रस्तावित सभी रियल एस्टेट, वाणिज्यिक और मनोरंजन परियोजनाओं के खिलाफ है, जैसे 33 मंजिला मेट्रो भवन और क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (RTO).

आदिवासियों का मानना ​​​​है कि इतिहास एक बार फिर खुद को दोहरा रहा है और चाहे वह वेटरनरी कॉलेज हो या फिल्म सिटी, उन्होंने सिर्फ अपने प्राचीन जंगल को छीनते हुए देखा है.

आदिवासी हक संवर्धन समिति (Adivasi Haqq Samvardhan Samiti) के दिनेश हबले ने कहा, “आरे में आने वाली सभी परियोजनाओं ने आदिवासियों को विस्थापित कर दिया है और हमारे लिए एक समस्या पैदा कर दी है.”

कहां स्थित है आरे जंगल?

आरे उत्तरी मुंबई के गोरेगांव में संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान (SGNP) के पास 1,300 हेक्टेयर में फैला एक वन क्षेत्र है. यहां जीव-जंतुओं की लगभग 300 प्रजातियां रहती हैं और एक अनुमान के मुताबिक यहां लगभग पांच लाख पेड़ हैं.

आरे जंगल मुंबई में साफ हवा का सबसे बड़ा जरिया हैं और इसे ‘मुंबई के फेफड़े’ के रूप में जाना जाता है.

आरे में 27 छोटे-छोटे गांव भी हैं जिनमें लगभग 8,000 आदिवासी सदियों से रहते आ रहे हैं.

क्या है विवाद?

2014 में बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार आरे कॉलोनी में मेट्रो-3 के लिए कार शेड बनाने का प्रस्ताव लेकर आई थी. इस कार शेड के लिए जंगल की लगभग 33 हेक्टेयर जमीन से पेड़ काटे जाने थे.

लेकिन जब सरकार इस प्रस्ताव के साथ आगे बढ़ी तो 2019 में तमाम छात्रों, आम लोगों, बॉलीवुड सितारों और पर्यावरणविदों ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया और इसे सतत विकास की अवधारणा के विपरीत बताया.

सरकार के उनकी मांगों पर सुनवाई न करने पर छात्र और पर्यावरणविद पेड़ों की कटाई रुकवाने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचे लेकिन कोर्ट ने अक्टूबर, 2021 में उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया.

इसके बाद प्रशासन ने रात में ही पेड़ों को काटना शुरू कर दिया और महज दो दिन के अंदर 2100 से 2200 पेड़ काट दिए.

इस बीच प्रदर्शनकारी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए जिसने पेड़ काटने पर रोक लगा दी लेकिन तब तक सरकार ज्यादातर पेड़ काट चुकी थी.

विरोध के क्या कारण हैं?

आरे में मेट्रो शेड बनाने का विरोध कर रहे लोगों की सबसे पहली दलील मुंबई की हवा को लेकर है जिसे अच्छा बनाए रखने में आरे जंगल का महत्वपूर्ण योगदान है.

इसके अलावा एक चिंता आरे जंगल में रहने वाले आदिवासियों को लेकर भी है. कार शेड का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि ये आदिवासी अपनी सभी जरूरतों के लिए जंगल पर निर्भर है और पेड़ों को काटने से इन्हें बड़ा नुकसान होगा.

इसके अलावा लोगों को डर है कि कार शेड बनाने के बाद सरकार धीरे-धीरे निजी बिल्डरों और दूसरे प्रोजेक्ट के लिए भी यहां जमीन देना शुरू कर देगी. इससे इलाके की परिस्थितिकी और वन्यजीवन पर बुरा असर पड़ेगा और जंगल में रहने वाले जानवरों का ठिकाना उजड़ जाएगा.

(Image Credit: PTI)

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