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तमिलनाडु: बच्चे को पोस्ट से बांधने को मजबूर एक आदिवासी मां की सरकार से मदद की गुहार

पांच साल के करुप्पसामी की मां, 21 साल की सौंदर्या को डर है कि उसका बच्चा दिमागी तौर पर कमज़ोर है. लेकिन उसकी मदद करने के लिए न तो सौंदर्या के पास संसाधन हैं, न देखभाल करने के लिए समय. सौंदर्या खुद बाल विवाह की शिकार हैं, जिसकी 14 साल की उम्र में शादी करा दी गई थी.

तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के गुम्मिदिपुंडी की एक नारिकुरवर आदिवासी बस्ती में पहुंचते ही, पहली चीज़ जो नज़र आती है, वो है पाँच साल का एक लड़का जिसे किसी ने लकड़ी के पोस्ट से बांध रखा है.

देखने में यह कितना भी बर्बर लगे, लेकिन लड़के की मां कहती है कि उसे अगर ऐसे नहीं बांधा गया तो वो भाग जाएगा.

पांच साल के करुप्पसामी की मां, 21 साल की सौंदर्या को डर है कि उसका बच्चा दिमागी तौर पर कमज़ोर है. लेकिन उसकी मदद करने के लिए न तो सौंदर्या के पास संसाधन हैं, न देखभाल करने के लिए समय. सौंदर्या खुद बाल विवाह की शिकार हैं, जिसकी 14 साल की उम्र में शादी करा दी गई थी.

सौंदर्या ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, “करुप्पसामी मेरा सबसे बड़ा बेटा है. मेरा एक और तीन साल का बेटा है, और उसने अब बात करना शुरू कर दिया है. लेकिन मेरे बड़े बेटे ने अब तक बोलना शुरु नहीं किया है. उसकी दीमागी कमज़ोरी की वजह से उसे सरकारी स्कूल में भर्ती नहीं किया जा सका, और क्योंकि वह स्कूल नहीं जा रहा तो दोपहर का भोजन भी उसे नहीं मिलता.”

इस बस्ती की ज़्यादातर औरतें मोतियों के गहने बनाकर उसे सड़क के किनारे बेचती हैं. लेकिन सौंदर्या अपने बच्चों को छोड़कर बस्ती की दूसरी औरतों के साथ नहीं जा सकती, क्योंकि उसे डर है कि उसका बेटा भाग जाएगा.

“वह भाग जाता है. अगर वह गलत हाथों में पहुंच गया तो उसे कोई बंधुआ मज़दूर बना देगा, या उससे भी बदतर कुछ हो सकता है,” सौंदर्या को डर है. उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि उसे और उसके बच्चों को किसी तरह की मदद दी जाए.

वो सरकार से अपने बेटे के लिए उचित चिकित्सा सहायता चाहती है, ताकि बच्चे की मदद की जा सके, और वह भी दूसरे बच्चों की तरह स्कूल जा सके. यहां के दूसरे परिवारों का भी कहना है कि ग़रीबी की वजह से सौंदर्या और उसके बच्चों की तरह ही उन्हें भी स्वस्थ भोजन नहीं मिलता.

इन आदिवासी परिवारों को सरकार से राशन में सिर्फ़ चावल मिलता है, जो इनकी पौष्टिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए काफ़ी नहीं है. उम्मीद है कि सरकार का ध्यान इस आदिवासी बस्ती की तरफ़ भी जाएगा.

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