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अमरकंटक आदिवासी विश्वविद्यालय (IGNTU) में प्रवेश परीक्षा रद्द करने की माँग, आदिवासी छात्रों के साथ धोखे का आरोप

शुरूआतें में यहाँ क़रीब 45 प्रतिशत आदिवासी समुदाय के छात्र थे. लेकिन अब सिर्फ़ 20 प्रतिशत छात्र ही आदिवासी समुदायों से आते हैं.

मध्यप्रदेश में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय (IGNTU) की स्थापना आदिवासी समुदायों को उच्च शिक्षा में मौक़ा देने के लिए किया गया था. इसके साथ ही इस विश्वविद्यालय का मक़सद आदिवासी संस्कृति, भाषा – बोली और इतिहास को सहजने और आगे बढ़ाने का भी बताया गया था. 

संसद से एक एक्ट के ज़रिए इस यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई थी. इस विश्वविद्यालय के ऑब्जेक्टिव में यह बातें बिलकुल स्पष्ट रूप से कही गई हैं. 2007 में स्थापना के बाद इस विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्र में आदिवासी समुदाय के छात्रों को मौक़ा देने की दिशा में काम भी किया गया. 

लेकिन अब विश्वविद्यालय प्रशासन पर आरोप लग रहे हैं कि बहुत तेज़ी के साथ इस यूनिवर्सिटी का चरित्र बदला जा रहा है. इस सिलसिले में यूनिवर्सिटी के कई छात्रों और देश के कई बड़े आदिवासी संगठनों ने यह आरोप लगाया है.

विश्वविद्यालय का उद्देश्य

इस सिलसिले में पहला आरोप यह है कि इस साल जो पीएचडी के दाख़िले हुए हैं उनमें आदिवासी समुदायों के छात्रों के साथ धोखाधड़ी हुई है. यूनिवर्सिटी के कई छात्रों के अलावा अलग अलग संगठनों ने इन परीक्षाओं को रद्द करने की माँग की है. 

विश्वविद्यालय के ट्राइबल स्टडीज़ विभाग में स्कॉलर मोहन मीणा इस मसले को लगातार उठा रहे हैं. उन्होंने मैं भी भारत से बात करते हुए कहा कि इस साल यूनिवर्सिटी में जो दाख़िले हुए हैं उसमें कई तरह की गड़बड़ी नोटिस हुई है. 

उन्होंनें इन गड़बड़ियों को गिनवाते हुए कहा कि यूनिवर्सिटी ने जो प्रवेश परीक्षा की घोषणा की थी उसमें आदिवासी बहुल इलाक़ों में एग्जामिनेशन सेंटर नहीं बनाए गए.

मोहन मीणा ने आरोप लगाया है कि ऑन लाइन परीक्षाओं में धांधली हुई है. वो कहते हैं कि आदिवासी समुदाय के जो छात्र जेआरएफ़ की परीक्षा पास कर चुके हैं, उन्हें दाख़िला नहीं मिला है. 

उन्होंने धांधली की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि जब यूनिवर्सिटी ने दाखिलों की पहली लिस्ट जारी की तो उसमें परीक्षा देने वाले छात्रों के नाम भी थे. लेकिन प्रशासन ने आनन फ़ानन में यह लिस्ट हटा ली और फिर सिर्फ़ रोल नंबर के आधार पर लिस्ट जारी की गई. 

देश के कई आदिवासी संगठनों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखे हैं

इस मसले पर आदिवासी एकता परिषद ने राष्ट्रपति को एक पत्र भी लिखा है. इस पत्र में शोध प्रवेश परीक्षा को रद्द करने की माँग की गई है. इस पत्र में कहा गया कि जब इस विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी तो यहाँ पर आदिवासी समुदायों को समुचित प्रतिनिधित्व दिया जा रहा था.

लेकिन धीरे धीरे यह प्रतिनिधित्व कम होता गया है. शुरूआतें में यहाँ क़रीब 45 प्रतिशत आदिवासी समुदाय के छात्र थे. लेकिन अब सिर्फ़ 20 प्रतिशत छात्र ही आदिवासी समुदायों से आते हैं. 

आदिवासी संगठनों और छात्रों की यह भी शिकायत है कि शोध प्रवेश परीक्षा के लिए यूनिवर्सिटी ने जो विज्ञापन निकाला था उसमें आरक्षित सीटों का ब्यौरा ही नहीं दिया गया था. 

इस सिलसिले में आदिवासी छात्र संघ, झारखंड ने भी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक पत्र लिखा है. इस पत्र में भी प्रवेश परीक्षाओं को रद्द करने की माँग दोहराई गई है. 

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