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मोबाइल के साइड इफ़ेक्ट, 72 साल की महिला को 15 मिनट में दो वैक्सीन

इस मामूली सी नज़र आने वाली लापरवाही का आदिवासी इलाक़ों में वैक्सीन अभियान पर गंभीर और नकारात्मक असर पड़ सकता है. आदिवासी इलाक़ों में पहले से ही वैक्सीन के बारे में जागरूकता की कमी है. आदिवासियों में वैक्सीन के बारे में कई तरह की भ्रांतियाँ हैं. अगर इस तरह की घटना में किसी आदिवासी की जान चली जाती है तो वैक्सीन के बारे में भ्रांतियाँ और बढ़ सकती हैं.

शुक्रवार को तेलंगाना के चंद्रगोंडा मंडल के पोकलागुडेम गांव में लापरवाही से एक आदिवासी महिला की जान ख़तरे में पड़ गई है.

यहाँ  एक सहायक नर्स (ANM) कार्यकर्ता ने एक 72 वर्षीय आदिवासी महिला को 15 मिनट से भी कम समय के अंतराल में कोविड ​​-19 वैक्सीन के दो टीके लगा दिए .

इस घटना का पता देर से तब चला जब इस महिला ने नसों में तेज़ दर्द की शिकायत की.  सकरी नाम की इस बुजुर्ग महिला ने शनिवार को दोनों इंजेक्शन स्थलों पर मांसपेशियों में तेज दर्द और दर्द का अनुभव किया.

इस घटना के बारे में बताया गया है कि सकरी को वैक्सीन की दूसरी खुराक एक आशा कार्यकर्ता द्वारा पहली खुराक देने के कुछ मिनट बाद दे दी गई.

घटना स्थल पर मौजूद लोगों का कहना है कि ये आशा कार्यकर्ता वैक्सीन लगाने के दौरान लगातार फ़ोन पर बात कर रही थी. 

इसी चक्कर में उन्होंने यह नहीं देखा कि उन्होंने एक ही महिला को दो बार इंजेक्शन लगा दिया है. बुजुर्ग महिला की हालत अभी स्थिर बताई गई है.

प्रशासन की तरफ़ से बताया गया है कि पोकलागुडेम की इस महिला की स्थिति की लगातार निगरानी की जा रही है.

जिला स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया है कि इस लापरवाही के लिए संबंधित महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया. 

इस मामूली सी नज़र आने वाली लापरवाही का आदिवासी इलाक़ों में वैक्सीन अभियान पर गंभीर और नकारात्मक असर पड़ सकता है. आदिवासी इलाक़ों में पहले से ही वैक्सीन के बारे में जागरूकता की कमी है.

आदिवासियों में वैक्सीन के बारे में कई तरह की भ्रांतियाँ हैं. अगर इस तरह की घटना में किसी आदिवासी की जान चली जाती है तो वैक्सीन के बारे में भ्रांतियाँ और बढ़ सकती हैं. 

अभी तक ग्रामीण भारत और ख़ासतौर से आदिवासी इलाक़ों में वैक्सीन अभियान काफ़ी धीमा चल रहा है. इसकी पहली वजह तो वैक्सीन की कमी है, उसके अलावा आदिवासियों में वैक्सीन के प्रति झिझक भी एक कारण है. 

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