HomeAdivasi Dailyआदिवासियों में मनोरोग और डिप्रेशन आत्महत्या का बड़ा कारण, जागरूकता ज़रूरी है

आदिवासियों में मनोरोग और डिप्रेशन आत्महत्या का बड़ा कारण, जागरूकता ज़रूरी है

मेंटल हेल्थ के सही न होने पर व्यक्ति को एंग्जायटी डिसऑर्डर हो सकता है, जिसमें उसे हर समय घबराहट या डर महसूस होता है. इस कंडीशन में पैनिक अटैक भी आ सकता है. बिगड़ी हुई मेंटल हेल्थ का सबसे बड़ा लक्षण डिप्रेशन है.

केंद्रीय मनश्चिकित्सा संस्थान (Central Institute of Psychiatry) रांची ने  झारखंड में डिप्रेशन और दूसरी मानसिक बीमारियों को आदिवासी आबादी में बड़ी समस्या माना है. संस्थान ने आदिवासी और ग्रामीण आबादी के बीच मानसिक बीमारियों और अवसाद के बारे में जागरूकता फैलाने का फैसला किया है.

इसलिए इस संस्थान ने चार क्षेत्रीय भाषाओं में आत्महत्या से होने वाली मौतों की रोकथाम के लिए पैम्फलेट बांटने का फैसला किया है. इन पर्चों में आदिवासी लोगों से डिप्रेशन सहित विभिन्न मानसिक बीमारियों के कारण पहचानने के तरीके के साथ साथ इलाज की ज़रूरत भी बाती जाएगी.

इंस्टीट्यूट ने सोमवार को चार क्षेत्रीय और आदिवासी भाषाओं जैसे खोरथा, संथाली, नागपुरी और हो में जागरूकता के लिए पैम्फलेट जारी किए.

इस मुद्दे पर बोलते हुए, सीआईपी के निदेशक डॉक्टर बासुदेव दास ने कहा, “आदिवासी लोग, जो राज्य की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं, अपनी मानसिक बीमारियों और उसके इलाज के बारे में जानने के लिए सामने नहीं आते हैं. आउटपेशेंट विभाग (OPD) के एक अध्ययन से पता चला है कि सिर्फ 10 फीसदी मरीज आदिवासी हैं.”

उन्होंने कहा कि सीआईपी ने उन विभिन्न मनोवैज्ञानिक समस्याओं से निपटने में मदद करने का फैसला किया है जो आत्महत्या का कारण बन सकती हैं. उन्होंने साथ ही कहा कि आदिवासी समुदायों के अन्य मुद्दों जैसे शराब पर निर्भरता और आस्था के जरिए इलाज करने वालों से भी निपटने की जरूरत है.

दास ने कहा कि सीआईपी इस संबंध में एक विशेष आदिवासी मनोरोग केंद्र स्थापित करने पर भी विचार कर रही है. डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और स्कॉलर डॉक्टर सत्य नारायण मुंडा ने कहा कि आदिवासी लोग लगभग साल भर त्योहारों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लगे रहते हैं और सामुदायिक कार्यों में शामिल लोगों के अकेलेपन या डिप्रेशन से पीड़ित होने की संभावना नहीं है.

जंगल से विस्थापित आदिम जनजातियों में डिप्रेशन एक बड़ा मसला है

उन्होंने आगे कहा, “हालांकि, आधुनिक युग के प्रभाव ने कई आदिवासी लोगों में व्यक्तिवाद को जन्म दिया है जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है. मनोवैज्ञानिक समस्याओं के आर्थिक और सामाजिक कारण भी हैं.”

डॉक्टर मुंडा ने यह भी कहा कि स्थानीय भाषाओं में एडवाइजरी से कई आदिवासियों को मदद मिलेगी, जो हिंदी और अंग्रेजी में पढ़ना-लिखना नहीं जानते हैं. उन्होंने कहा कि इसी तरह की कवायद मुंडारी भाषा में भी की जानी चाहिए.

सीआईपी ने कहा कि सामुदायिक संसाधन केंद्रों के माध्यम से लोगों के बीच पैम्फलेट बांटे जाएंगे. पैम्फलेट में उन लोगों के लिए एक हेल्पलाइन नंबर भी होता है, जिन्हें किसी विशेषज्ञ की सलाह की आवश्यकता होती है.

मेंटल हेल्थ क्या है?

हम क्या सोचते हैं, क्या महसूस करते हैं और किन कार्यों को करते हैं ये हमारा दिमाग तय करता है. हमारा दिमाग पर बुरा असर पड़ रहा है, तो ये तय है कि मेंटल हेल्थ बिगड़ी हुई है.

आज मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स का सामना लगभग हर इंसान कर रहा है लेकिन, शारीरिक स्वास्थ्य की तुलना में मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स ज्यादातर लोग कम जानकारी के आभाव में अनदेखा कर देते हैं. उन्हें लगता है कि दिखने वाले ये लक्षण किसी आम बीमारी के होंगे और बाद में ये ही लक्षण एक गंभीर मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स का रूप ले लेते हैं. एंग्जाइटी, डिप्रैशन सबसे ज्यादा कॉमन मेंटल हेल्थ से जुड़ी बीमारियां हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) में नेशनल केयर ऑफ़ मेडिकल हेल्थ (National Care of Medical Health) के लिए की गई एक रिसर्च में कहा गया है कि कम से कम 6.5 फीसदी भारतीय किसी न किसी तरह के मानसिक विकार से पीड़ित हैं.

भारत में मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स की संख्‍या इसीलिए ज्यादा बढ़ रही है क्‍योंकि लोग मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स (Mental Health Problems) को कम आंकते हैं.

दरअसल, शारीरिक समस्याएं दिख या महसूस हो जाती हैं तो हम इनका इलाज करवा लेते हैं. लेकिन हम बिगड़ी हुई मेंटल हेल्थ पर बहुत कम ध्यान देते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन भी ये बात कह चुका है कि इस दुनिया में हर 8 में से 1 व्यक्ति मानसिक रोगी होता है.

मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम को कैसे पहचाने ?

मेंटल हेल्थ के सही न होने पर व्यक्ति को एंग्जायटी डिसऑर्डर हो सकता है, जिसमें उसे हर समय घबराहट या डर महसूस होता है. इस कंडीशन में पैनिक अटैक भी आ सकता है. बिगड़ी हुई मेंटल हेल्थ का सबसे बड़ा लक्षण डिप्रेशन है.

इसकी शुरुआत स्ट्रेस से होती है और एक समय पर इंसान डिप्रेशन का शिकार बन जाता है. इससे बाहर आना आसान नहीं है और ये हमें दुनिया से अलग भी कर सकता है.

आदिवासी और मेंटल हेल्थ

भारत दुनिया की सबसे बड़ी जनजातीय आबादी रही है. कुल भारतीय आबादी का 8.6 फीसदी अनुसूचित जनजाति है. जनजातीय आबादी कई कारणों से मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के प्रति अधिक संवेदनशील है. जैसे कि तेज़ी से बदलते सामाजिक परिवर्तनों का प्रभाव उनकी जीवन शैली, विश्वास और सामुदायिक जीवन को बदल देता है.

इन हालात में इन सबका प्रभाव उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, लेकिन वो इसे समझ नहीं पाते क्योंकि इसके प्रति वो जागरुक नहीं है.  

आदिवासी मेंटल हेल्थ के मामले में इलाज के लिए कम ही सामे आते हैं

साथ ही अपनी संस्कृति को छोड़कर शहरी क्षेत्रों में पलायन, शराब और अन्य पदार्थों के उपयोग उन्हें कई मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की ओर धकेलता है. भारत में मेंटल हेल्थ पर व्यापक स्तर पर शोध किए गए हैं. हालांकि, आदिवासी आबादी का मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसी चीज है जिसे अब तक नजरअंदाज किया गया है.. लेकिन अब इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

दरअसल, आदिवासी इलाकों में नशे और मेंटल हेल्थ का सही सही आकलन करना बेहद ज़रूरी है. इस बारे में कहा गया है कि आदिवासी इलाकों में उनकी संस्कृति और परंपराओं को ध्यान में रखते हुए मेंटल हेल्थ से जुड़े मसलों को सुलझाना होगा.

वहीं ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में आज भी अंधविश्वास बहुत ज्यादा है. हर चीज का इलाज झाड़-फूंक में पहले ढूंढा जाता है. अंधविश्वास भी मानसिक स्वास्थ्य के बढ़ रहे मामलों का एक कारण है.

मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स के लक्षण…

*नींद और भूख में बदलाव- अगर आप मेंटल हेल्थ परेशानी से गुजर रहे हैं तो आपकी नींद में कमी आ सकती है या भूख कम हो जाती है या ज्यादा लगने लगती है.

*मूड में बदलाव आ जाना- आप अपनी भावनाओ पर नियंत्रण नहीं रख पाते जिसकी वजह से आपके मूड बदलते हैं और आप जल्दी उदास फील करते है.

*काम को ठीक तरीके से न कर पाना- कोई भी काम को मन से न करना, मेंटल हेल्थ का मुख्य लक्षण होता हैं.

*सोचने और समझने कि शक्ति कम होना- जब दिमाग ही स्वस्थ नहीं होता तो किसी भी काम को पूरा करने कि क्षमता खो बैठते है और किसी भी समस्या को समझना और सुलझाना कठिन हो जाता हैं.

*उदासीनता और असामान्य व्यवहार- किसी भी गतिविधि मे भाग लेने कि इच्छा न होना. अजीब तरीके का व्यवहार करना.

*घबराहट और डर लगना- दूसरों से डर लगना और किसी भी स्थिति में खुद को असहज पाना.

इनमे से एक या दो लक्षण अकेले मानसिक बीमारी कि वजह नहीं हो सकती. अगर कोई शख्स एक समय में कई लक्षणों को अनुभव कर रहा हो तो इसके लिए मानसिक चिकित्सक को दिखाना चाहिए.

मानसिक तनाव एक ऐसी परेशानी हैं जिसको सही करना और समझना थोड़ा मुश्किल होता है इसलिए इसको नजरंदाज नहीं करना चाहिए, नहीं तो यह भयानक रूप ले लेती है. व्यक्ति कई बार सुसाइड करने जैसे विचारो का भी मन बना लेता है. 

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