HomeAdivasi Dailyतमिलनाडु के कोविड प्रतिबंधों ने बढ़ाई केरल के आदिवासियों की मुश्किल

तमिलनाडु के कोविड प्रतिबंधों ने बढ़ाई केरल के आदिवासियों की मुश्किल

उनकी बस्ती केरल में है, लेकिन उन्हें अपनी हर छोटी से छोटी ज़रूरत के लिए मलक्कपारा के पास तमिलनाडु राज्य के चेकपोस्ट से होकर गुजरना पड़ता है. लेकिन, चेकपोस्ट की देखरेख करने वाले अधिकारी आजकल अक्सर कोविड प्रतिबंधों का हवाला देते हुए अपने आने-जाने की अनुमति नहीं देते.

केरल के लोगों की आवाजाही पर तमिलनाडु द्वारा लगाए गए कोविड प्रतिबंधों ने दोनों राज्यों के सीमावर्ती इलाक़े की वेट्टीविट्टकाडु बस्ती में रहने वाले आदिवासियों को मुश्किल में डाल दिया है.

उनकी बस्ती केरल में है, लेकिन उन्हें अपनी हर छोटी से छोटी ज़रूरत के लिए मलक्कपारा के पास तमिलनाडु राज्य के चेकपोस्ट से होकर गुजरना पड़ता है. लेकिन, चेकपोस्ट की देखरेख करने वाले अधिकारी आजकल अक्सर कोविड प्रतिबंधों का हवाला देते हुए अपने आने-जाने की अनुमति नहीं देते.

पहाड़ी ढलानों पर घने जंगल के अंदर स्थित इस बस्ती में 20 पुरुष, 18 महिलाएं और 13 बच्चे रहते हैं. ये सभी मुदुवान आदिवासी समुदाय से हैं.

उन्होंने हाल ही में यात्रा करने के लिए एक बोलेरो एसयूवी खरीदी है. बस्ती के निवासी हरिकृष्णन ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए कहा, ” हमें लगभग एक घंटे तक पहाड़ी ढलान पर पैदल चलकर उस स्थान तक चढ़ना पड़ता है, जहां बोलेरो पहुंच सकती है. मलक्कप्पारा, जहां राशन की दुकान है, हमारी बस्ती से लगभग 25 किमी दूर है. लगभग 40 किलोग्राम वज़न वाले राशन का सामान हमें सिर पर उठाना पड़ता है.”

अदिराप्पल्ली पंचायत अध्यक्ष के के रिजेश ने कहा कि वन विभाग के अधिकारियों ने वहां के आदिवासियों के दरवाज़े तक राशन पहुंचाने की व्यवस्था की है. लेकिन उन्होंने यह भी माना कि वन अधिकारी भी वहीं तक पहुंच सकते हैं जहां तक सड़क है.

इसके अलावा, जब किसी ख़ास दिन मासिक राशन लाया जाता है, तो कुछ आदिवासी ऐसे भी होते हैं जो उसे ख़रीदने में असमर्थ हों, और उन्हें दूसरे दिन राशन की दुकान तक जाना पड़ता है.

इन लोगों की परेशानियां सिर्फ़ तमिलनाडु द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों जी वजह से ही नहीं बढ़ रही हैं. “हमें छोटी से छोटी बीमारी के इलाज के लिए भी तमिलनाडु के वालपराई के स्वास्थ्य केंद्र जाना पड़ता है. अगर कोई मेडिकल इमरजेंसी होती है, तो एम्बुलेंस को चालक्कुडी से आना पड़ता है, जो पहाड़ी रास्ते पर 100 किमी दूर है. मंगलवार को मलक्कप्पारा स्टेशन को एक एम्बुलेंस दी गई है, लेकिन हमें अपनी बस्ती तक के लिए एक पक्की सड़क की ज़रूरत है, ”हरिकृष्णन ने कहा.

इस आदिवासी बस्ती में बिजली की आपूर्ति भी नहीं है, न ही मज़बूत मोबाइल नेटवर्क है, जिसका सीधा असर बस्ती के बच्चों की शिक्षा पर पड़ा है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments