HomeAdivasi Dailyअब आदिवासियों से कोविड वैक्सीन भी छिन रहा है

अब आदिवासियों से कोविड वैक्सीन भी छिन रहा है

मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई, कल्याण डोंबिवली जैसे सैटेलाइट शहरों के विशेष रूप से 18-44 साल के लोगों को जब अपने निवास स्थान के पास स्लॉट नहीं मिलता, तो वो ठाणे ज़िला के आदिवासी बहुल शाहपुर और मुरबाद तालुक के टीकाकरण केंद्रों में आ जाते हैं.

मुंबई के आसपास के आदिवासी इलाक़ों के लोगों में काफ़ी गुस्सा है. मुंबई शहर में वैक्सीन की डोज़ की कमी के चलते, वहां से लोग आसपास के ग्रामीण आदिवासी इलाक़ों में वैक्सीन के स्लॉट बुक कर रहे हैं.

मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई, कल्याण डोंबिवली जैसे सैटेलाइट शहरों के विशेष रूप से 18-44 साल के लोगों को जब अपने निवास स्थान के पास स्लॉट नहीं मिलता, तो वो ठाणे ज़िला के आदिवासी बहुल शाहपुर और मुरबाद तालुक के टीकाकरण केंद्रों में आ जाते हैं.

ऐसे में इन जगहों के आदिवासी निवासियों को टीकाकारण के स्लॉट नहीं मिल पाते. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ इन दोनों तालुकों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर आसपास के शहरों से कई लोग पहुंच रहे हैं.

इन केंद्रों पर पहुंचने वाले शहरी लोगों का तर्क यह है कि उन्हें अपने घर के आसपास जहां टोकन मिलता है, वो वहां पहुंच जाते हैं. भले ही आदिवासी इलाक़ों के यह स्वास्थ्य केंद्र शहरों से दूर हैं, लेकिन जिनके पास अपनी गाड़ी है, उनके लिए दूरी कोई बड़ी बात नहीं है.

हालांकि यह लोग समझते हैं कि वो स्थानीय लोगों के हिस्से के वैक्सीन लगवा रहे हैं, पर उनका मानना है कि यह चिंता सरकार को करनी चाहिए.

इन इलाक़ों के स्वास्थ्य अधिकारी ग्रामीण टीकाकरण केंद्रों में शहरी लोगों के आने की बात स्वीकारते हैं. वो कहते हैं कि इससे ग्रामीण केंद्रों में तनाव भी रहता है, लेकिन वो इस बारे में ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते.

शहरी लोगों से यह स्वास्थ्य अधिकारी अपील करते हैं कि वो निजी अस्पतालों में जाएं, ताकि ग़रीबों को फायदा हो सके. 18-44 वर्ष समूह के लिए टीकाकरण के लिए ऑनलाइन पंजीकरण अनिवार्य है.

लेकिन आदिवासी इलाक़ों में इंटरनेट स्पीड और टेक्नोलॉजी की जानकारी की कमी के चलते जैसे ही पंजीकरण खुलता है शहरी लोग स्लॉट बुक कर लेते हैं. ज़ाहिर है स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देने का कोई विशेष प्रावधान होना चाहिए.

ठाणे ज़िला कलेक्टर राजेश नार्वेकर ने मीडिया को बताया कि मुंबई से कई लोग ग्रामीण ठाणे इलाक़े में स्लॉट बुक कर लेते हैं.

आदिवासियों की मदद करने के लिए उन्होंने नर्सों को उनके लिए स्लॉट बुक करने को कहा. लेकिन इंटरनेट स्पीड कम होने के चलते जब तक वो एक पंजीकरण पूरा करते हैं, तब तक मुंबई शहर के लोग बाकि के स्लॉट बुक कर चुके होते हैं.

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