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तोरगट्टा आंदोलन को लेकर पुलिस और माओवादियों के बीच फंस गए हैं आदिवासी

माओवादियों ने सुरजागढ़ खनन स्थल के कर्मचारियों से भी अपना काम बंद करने और तोरगट्टा में आंदोलन में शामिल होने का आग्रह किया है. दूसरी चेतावनी में, जो एक पत्र के रूप में थी, आदिवासियों को कहा गया है कि जो लोग खदानों में काम करना जारी रखेंगे, उन्हें प्रतिद्वंद्वी खेमे का सदस्य माना जाएगा और उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे.

महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा पर तोरगट्टा में चल रहे खनन विरोधी आंदोलन को लेकर गढ़चिरौली जिले के आदिवासी पुलिस और माओवादियों के बीच फंस गए हैं. पुलिस और माओवादियों दोनों उन्हें डराने की कोशिश कर रहे हैं.

माओवादियों की भामरागढ़ क्षेत्र समिति ने सुरजागढ़ पहाड़ियों में खनन कार्य में लगे आदिवासियों को ‘अल्टीमेटम’ दिया और उन्हें तोरगट्टा में चल रहे आंदोलन में शामिल होने के लिए कहा है. वहीं जिला पुलिस ने मंगलवार को कई लोगों को आंदोलन स्थल की ओर जाने से रोक दिया.

माओवादियों ने स्थानीय गोंडी भाषा में आदिवासी नेताओं, गयता (ग्राम प्रधान), परमा (पुजारी) और भूमिया (गाँव के संस्थापक या मुख्य देवता) को संबोधित करते हुए उन्हें खनन कंपनियों को अपने संचालन के लिए जनशक्ति प्राप्त करने के लिए जिम्मेदार ठहराया.

माओवादियों ने सुरजागढ़ खनन स्थल के कर्मचारियों से भी अपना काम बंद करने और तोरगट्टा में आंदोलन में शामिल होने का आग्रह किया है. दूसरी चेतावनी में, जो एक पत्र के रूप में थी, आदिवासियों को कहा गया है कि जो लोग खदानों में काम करना जारी रखेंगे, उन्हें प्रतिद्वंद्वी खेमे का सदस्य माना जाएगा और उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे.

एडवोकेट लालसू नरोती, जो जिला परिषद के सदस्य भी हैं, ने कहा कि कुछ आदिवासियों को हेदरी में तोरगट्टा जाते समय पुलिस ने रोक लिया था.

नरोती ने कहा, “आदिवासी अब दुविधा में हैं. अगर वे खनन कार्य के लिए जाते हैं और तोरगट्टा से बचते हैं तो माओवादी उन्हें निशाना बना सकते हैं. लेकिन अगर वे खनन कार्य से बचते हैं और तोरगट्टा जाते हैं तो पुलिस उन्हें माओवादी करार देगी.”

वहीं एसपी नीलोत्पल ने कहा कि पुलिस आदिवासियों को समझाने की कोशिश कर रही है कि झूठे प्रचार के जरिए उन्हें गुमराह किया जा रहा है.

उन्होंने कहा, “कई आदिवासी खनन स्थल पर काम कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अच्छा भुगतान किया जा रहा है. माओवादी इन नियोजित आदिवासियों के पीछे पड़े हैं. हम केवल आदिवासियों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे माओवादियों की गलत सूचनाओं का शिकार न हों.”

उधर जिले में ग्रामीणों का एक समूह एक सड़क के निर्माण का विरोध कर रहा है. ग्रामीणों का दावा है कि इस सड़क से खनन गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा. ग्रामीणों का यह विरोध बृहस्पतिवार को 19वें दिन में प्रवेश कर गया.

दरअसल, सुरजागढ़ तोरगट्टा ग्राम सभा के अंतर्गत आने वाले 70 गांवों के लोग दमकोंडवाही बचाव कृति समिति और पारंपरिक सुरजागढ़ इलाका समिति के बैनर तले सुदूर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सड़क निर्माण को लेकर विरोध कर रहे हैं.

इस विरोध प्रदर्शन में शामिल एक व्यक्ति ने कहा, ‘‘छत्तीसगढ़ सीमा के पास एट्टापल्ली तालुका में गट्टा गांव और टोडगट्टा के बीच चल रहे सड़क निर्माण का इस्तेमाल खनन वस्तुओं को लाने-ले जाने के लिए किया जाएगा और यह यहां के वन क्षेत्र, आदिवासी आवास और पर्यावरण को नष्ट कर देगा.’’

हालांकि, पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आस-पास के दमकोंडावाही में किसी भी खदान को शुरू करने का कोई प्रस्ताव नहीं है और सड़क गांवों को जिले के मुख्य नेटवर्क से जोड़ने के लिए है.

उन्होंने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा के दोनों ओर के ग्रामीणों को संभवतः नक्सलियों द्वारा इस विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के लिए धमकी दी जा रही है.

माओवाद से प्रभावित इलाक़ों में आदिवासियों के लिए अक्सर यह दुविधा समाने आती है. एक तरफ़ अगर वो माओवादियों की बात माने तो पुलिस उन्हें परेशान करती है. वहीं अगर वो माओवादी संगठन के आंदोलन में हिस्सा ना लेना चाहें तो माओवादियों द्वारा उन्हें ग़द्दार घोषित कर यातनाएँ दी जाती है.

इस मामले में माओवादियों से कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है, लेकिन कम से कम प्रशासन को इस बात का ध्यान रखना होगा कि जब तक वो आदिवासियों को सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकते, तब तक आदिवासियों पर माओवादी से दूरी बनाने का दबाव अनुचित है.

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