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त्रिपुरा विधानसभा चुनाव: बीजेपी ने घोषणापत्र में आदिवासी परिषद को अधिक स्वायत्तता देने का किया वादा

बीजेपी ने कहा कि पार्टी आदिवासियों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन त्रिपुरा के विभाजन के खिलाफ है. हालांकि, सीपीआई(एम) और कांग्रेस भी 'ग्रेटर टिप्रालैंड' की मांग के खिलाफ हैं और TTAADC को अधिक स्वायत्तता देने के पक्षधर हैं.

त्रिपुरा में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में आदिवासी वोट महत्वपूर्ण होने वाले हैं. यही वजह है कि चुनाव से पहले ‘ग्रेटर टिपरलैंड’ राज्य की मांग करने वाली क्षेत्रीय पार्टी टिपरा मोथा की संभावित चुनौती का सामना करते हुए, सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (TTAADC) के लिए “अधिक स्वायत्तता” का वादा किया है.

साथ ही TTAADC के तहत रहने वाले आदिवासियों को हर साल 5000 रुपये और धार्मिक गुरु अनुकुल चंद्र के नाम पर सभी के लिए पांच रुपये की भोजन योजना शुरू की.

बीजेपी ने संकल्प पत्र के नाम से घोषित घोषणापत्र जारी करते हुए पार्टी प्रमुख जे पी नड्डा ने कहा कि पार्टी प्रस्तावित 185वें संविधान संशोधन के अनुसार अधिक वित्तीय समर्थन के साथ आदिवासी परिषद को अधिक विधायी, कार्यकारी, प्रशासनिक शक्तियां देगी, जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्रों का दो तिहाई हिस्सा है और जहां राज्य की लगभग 40 लाख आबादी का एक तिहाई हिस्सा निवास करता है.

कानून में एडीसी के लिए अधिक स्वायत्तता के प्रावधान हैं और बीजेपी ने आदिवासी परिषद में दल-बदल विरोधी कानून के साथ-साथ उनकी आबादी के हिसाब से बजटीय और समयबद्ध आवंटन का वादा किया है.

इसके अलावा, जे पी नड्डा ने कहा कि भाजपा राज्य के लिए सीबीएसई और आईसीएसई पाठ्यक्रम में कोकबोरोक भाषा (आदिवासियों द्वारा बोली जाने वाली) को शामिल करने के लिए भी कदम उठाएगी. बीजेपी के घोषणापत्र में त्रिपुरा के पूर्व राजा महाराजा बीर बिक्रम माणिक्य के नाम पर आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और प्रचार के लिए एक विश्वविद्यालय, दो लाख आदिवासी युवाओं के कौशल विकास के लिए एक कौशल विश्वविद्यालय और देश के विभिन्न हिस्सों में परिषद भवनों का निर्माण कुछ प्रमुख वादे थे.

घोषणापत्र में पीएम उज्ज्वला योजना कनेक्शन रखने वालों को दो मुफ्त एलपीजी सिलेंडर, मेधावी कॉलेज जाने वाली लड़कियों को मुफ्त स्कूटी, मछुआरों को प्रति वर्ष 6000 रुपये की वित्तीय सहायता, साथ ही सभी पात्र पीडीएस लाभार्थियों को हर महीने मुफ्त चावल और गेहूं देने का वादा किया गया है.

जेपी नड्डा ने कहा, “हमारा आदर्श वाक्य डीटीएच होगा जो विकास, परिवर्तन और सद्भाव के लिए खड़ा है. हम देवत्व के साथ विकास के लिए काम करेंगे और त्रिपुरा और समाज के विभाजन को रोकेंगे.”

नड्डा ने कहा, ‘‘हम रबर और बांस पर आधारित उद्योग-विशिष्ट विनिर्माण क्षेत्र स्थापित करेंगे. 6,000 रुपये की प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि को बढ़ाया जाएगा और राज्य सरकार द्वारा 2,000 रुपये और प्रदान किए जाएंगे.’’

बीजेपी ने कहा कि पार्टी आदिवासियों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन त्रिपुरा के विभाजन के खिलाफ है. हालांकि, सीपीआई(एम) और कांग्रेस भी ‘ग्रेटर टिप्रालैंड’ की मांग के खिलाफ हैं और TTAADC को अधिक स्वायत्तता देने के पक्षधर हैं.

उधर मुख्यमंत्री माणिक साहा ने कहा कि इस बार भाजपा को 2018 के चुनावों से अधिक सीटें मिलेंगी क्योंकि पिछले पांच वर्षों में आदिवासियों सहित लोग उनके विकास कार्यों से खुश हैं.

त्रिपुरा में 16 फरवरी को विधानसभा चुनाव होना है और वोटों की गिनती 2 मार्च को होगी. इसमें एक ओर जहां सत्तारूढ़ भाजपा सत्ता में वापसी के लिए पूरा जोर लगा रही है, वहीं दूसरी ओर वाम मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन के साथ मैदान में उतरे हैं.

जबकि त्रिपुरा के पूर्व महाराज के उत्तराधिकारी प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मन के नेतृत्व वाली आदिवासी पार्टी टिपरा मोथा भी तीसरे पक्ष के तौर पर चुनाव मैदान में है. जिन्होंने आदिवासी मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ को अपनी पार्टी का मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया है.

देबबर्मन की नई पार्टी टिपरा मोथा ने 60 में से 42 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. वाम-कांग्रेस गठबंधन और बीजेपी दोनों ने इस पार्टी को अपने पाले में खींचने की कोशिश की थी. लेकिन टिपरा मोथा ने ग्रेटर टिप्रालैंड के बारे में लिखित आश्वासन के बिना भाजपा के गठबंधन प्रस्ताव को खारिज कर दिया था.

60 सदस्यीय त्रिपुरा विधानसभा में 20 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. इस लिहाज से आने वाले चुनावों में आदिवासी वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं. राज्य में 2018 के दौरान बीजेपी ने इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) के साथ गठबंधन करके दो-तिहाई बहुमत हासिल करते हुए राज्य में 25 साल से चले आ रहे वाम सरकार शासन को खत्म कर दिया था.

इस दौरान 35 सीटों पर बीजेपी, 16 पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और 8 पर आईपीएफटी ने जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में कांग्रेस एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो सकी थी.

(Photo Credit: PTI)

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