मध्य प्रदेश के शिवपुरी से एक हृद्य विदारक घटना सामने आई है. यहां एक आदिवासी महिला को अस्पताल के बाहर खुले आसमान के नीचे अपने बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ा.
इस घटना ने स्वास्थ्य सेवाओं की हालत और अधिकारियों की लापरवाही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
ये घटना बुधवार देर रात जिले के रन्नौद स्वास्थ्य केंद्र के सामने की है. जब स्वास्थ्य केंद्र के बाहर प्रसव पीड़ा से जूझ रही आदिवासी महिला की डिलीवरी हुई.
बच्चे को जन्म देने वाली आदिवासी महिला का नाम कमल बताया गया है. कमल की आयु 22 वर्ष है और वह रन्नौद कस्बे के शंकरपुर की रहने वाली है.
बुधवार देर रात को कमल को प्रसव पीड़ा शुरु हुई. जिसके बाद उसके घर की महिलाएं उसे रन्नौद स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र लेकर आईं.
कमल की एक रिश्तेदार ने बताया कि अस्पताल आने के बाद स्वास्थ्य केंद्र में मौजूद नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टर ने महिला को शिवपुरी जिला अस्पताल रेफर कर दिया था. लेकिन पैसों की व्यवस्था नहीं होने के कारण वो उसे ज़िला अस्पताल नहीं ले जा सके.
जब रात के करीब 9 बजे महिला की प्रसव पीड़ा असहनीय हो गई तो रिश्तेदारों ने डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ से मदद की गुहार लगाई लेकिन स्टाफ ने मदद करने की बजाय थाने में बंद करवाने की धमकी दे दी.
इसके बाद गर्भवती महिला के साथ आई महिलाओं ने अस्पताल के बाहर ही खुले आसमान के नीचे जमीन पर उसकी डिलीवरी कराई.
वहीं दूसरी तरफ रन्नौद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर अक्षय शर्मा का कहना है कि आदिवासी महिला को बुधवार की शाम 6 बजे स्वास्थ्य केंद्र लाया गया था और जांच के दौरान उनके शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के बारे में पता चला था.
डॉक्टर ने बताया कि आदिवासी महिला का हीमोग्लोबिन महज 6 ग्राम था, जबकि हीमोग्लोबिन की मात्रा 11 ग्राम होनी चाहिए थी.
डॉक्टर का कहना है कि अगर हिमोग्लोबिन 9 या 10 ग्राम भी होता तो डिलीवरी करने के बारे में सोचा जा सकता था. साथ ही वह महिला गंभीर एनीमिया से ग्रसित थी इसलिए गाइडलाइन के तहत उसको जिला अस्पताल रेफर किया गया था.
उन्होंने बताया कि गर्भवती महिला को जिला अस्पताल भेजने के लिए 108 नंबर पर कॉल करके एम्बुलेंस भी बुला ली गई थी लेकिन परिजन उसे जिला अस्पताल ले जाने को राजी नहीं हुए.
इस मामले में CMHO HELTH शिवपुरी के डॉ संजय रिशेश्वर ने पूरे मामले की जांच करने के आदेश जारी किए हैं. उन्होंने कहा कि जांच में दोषी पाए जाने वाले स्टाफ के खिलाफ़ कार्यवाही की जाएगी.
आदिवासी इलाकों के दुर्गम रास्तों के चलते गर्भवती आदिवासी महिलाओं को समय पर स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाना अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण काम है. अगर महिला के अस्पताल पहुंचने पर भी उसे स्वास्थ्य सुविधा मुहैया नहीं कराई जाएगी तो इसके लिए कौन ज़िम्मेदार होगा?