झारखंड चुनाव की अभी तक औपचारिक घोषणा नहीं हुई है. लेकिन राज्य में मुख्य विपक्षी दल बीजेपी और सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा कांग्रेस के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू हो चुकी है.
बीजेपी की तरफ़ से मोर्चे पर पार्टी के दो धुरंधर रणनीतिकार मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को झारखंड के चुनाव प्रभारी और सह प्रभारी बनाया गया है.
इसके साथ ही झारखंड में पार्टी के चुनाव प्रचार को बल देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी काफ़ी सक्रिय हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार (15 सितंबर) को झारखंड के जमशेदपुर में कहा कि केंद्र की प्राथमिकता आदिवासियों, गरीबों, दलितों, महिलाओं और युवाओं का विकास है और उनके लाभ के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं.
उन्होंने कहा कि विकास में पिछड़ रहे झारखंड में भी इन परियोजनाओं के शुरू होने से तेजी से विकास होगा.
मोदी ने वंदे भारत ट्रेनों और कई परियोजनाओं की शुरुआत के लिए टाटानगर में एकत्रित लोगों को वर्चुअल माध्यम से संबोधित करते हुए कहा, “झारखंड विकास में पिछड़ रहा था लेकिन अब कई परियोजनाएं यहां प्रगति की ओर अग्रसर होंगी. अब केंद्र की प्राथमिकता आदिवासियों, गरीबों, युवाओं, महिलाओं और दलितों का विकास है.”
उन्होंने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि अब देश की प्राथमिकता देश का गरीब है. अब देश की प्राथमिकता देश का आदिवासी है. अब देश की प्राथमिकता देश का दलित, वंचित और पिछड़ा समाज है. अब देश की प्राथमिकता महिलाएं हैं, युवा हैं, किसान हैं.
वहीं अब पीएम मोदी के झारखंड दौरे पर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं और पूछा कि जमशेदपुर के लोग अब भी ‘खराब संपर्क’ की समस्या का सामना क्यों कर रहे हैं. साथ ही कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पर आदिवासियों को उनकी धार्मिक पहचान से वंचित करने और सरना संहिता को मान्यता देने से इनकार करने का आरोप लगाया.
कांग्रेस महासचिव एवं संचार प्रभारी जयराम रमेश ने यह भी पूछा कि आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र को अभी तक पर्यावरणीय मंजूरी क्यों नहीं मिली है.
रमेश ने एक्स पर हिंदी में लिखे एक पोस्ट में कहा, “गैर-जैविक प्रधानमंत्री आज झारखंड के जमशेदपुर में हैं। उन्हें झारखंड की जनता को इन तीन सवालों का जवाब देना चाहिए।”
उन्होंने पूछा कि जमशेदपुर के लोग अभी भी खराब कनेक्टिविटी की समस्या का सामना क्यों कर रहे हैं?
रमेश ने कहा कि औद्योगिक केंद्र होने के बावजूद जमशेदपुर खराब परिवहन संपर्क की समस्या से जूझ रहा है.
उन्होंने कहा, “भागलपुर, बेंगलुरु और दिल्ली जैसे प्रमुख शहरों के लिए चलने वाली ट्रेनों की संख्या पर्याप्त नहीं है। शहर में 2016 तक एक कार्यात्मक हवाई अड्डा था, लेकिन 2018 में उड़ान योजना में शामिल होने के बावजूद, एक नए हवाई अड्डे की योजना साकार नहीं हुई.”
उन्होंने कहा कि दिसंबर 2022 तक धालभूमगढ़ हवाई अड्डे के निर्माण के लिए जनवरी 2019 में झारखंड सरकार और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे.
उन्होंने कहा कि इससे आदित्यपुर में एमएसएमई को अच्छा बढ़ावा मिलेगा, जिसमें टाटा जैसी प्रमुख औद्योगिक कंपनियां भी शामिल हैं.
रमेश ने कहा, “जब दिसंबर 2022 की निर्धारित समय सीमा तक काम नहीं हुआ, तो भाजपा के अपने सांसदों को संसद में इस मुद्दे को उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा। 27 फरवरी, 2023 को केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ने जवाब दिया और पुष्टि की कि परियोजना को छोड़ दिया गया है.”
उन्होंने कहा कि अब कड़ी मेहनत के बाद पर्यावरणीय मंज़ूरी मिलने वाली है.
उन्होंने आगे पूछा कि आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र को अभी तक पर्यावरणीय मंजूरी क्यों नहीं मिली है।
उन्होंने कहा, “आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र का आधे से ज़्यादा हिस्सा “जमशेदपुर का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र 2015 से विनियामक दायरे में है. इस विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) में 1,200 इकाइयां हैं. इनमें 11 बड़ी, 64 छोटी और 166 अन्य इकाइयां शामिल हैं.”
उन्होंने आरोप लगाया कि 2015 में झारखंड राज्य उद्योग विभाग ने आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र में 276 एकड़ के विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) के भीतर 54 एकड़ वन भूमि के संबंध में स्पष्टीकरण दिया था लेकिन केंद्र सरकार ने वन और पर्यावरण मंजूरी देने में देरी करके इसके विकास में बाधा उत्पन्न की है.
जयराम रमेश ने कहा कि हालांकि यह परियोजना अधर में लटकी हुई है, लेकिन मोदी सरकार ने 2019 में गोड्डा में अडानी पावर के लिए 14,000 करोड़ रुपये की एसईजेड परियोजना को मंजूरी दे दी।
कांग्रेस नेता ने कहा, “आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र को लगभग 10 साल तक इंतजार क्यों करना पड़ा, जबकि अडानी की परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाया गया? क्या यह सौदा काले धन की गति से प्रेरित था, जिसके बारे में गैर-जैविक प्रधानमंत्री ने हमें बताया था?”
उन्होंने पूछा कि प्रधानमंत्री ने आदिवासियों को उनकी धार्मिक पहचान से वंचित क्यों किया और सरना कोड को मान्यता देने से इनकार क्यों किया?
जयराम रमेश ने कहा, “झारखंड के आदिवासी समुदाय कई सालों से सरना धर्म का पालन करते आ रहे हैं. वे भारत में अपनी अलग धार्मिक पहचान की आधिकारिक मान्यता की मांग करते रहे हैं। लेकिन, जनगणना के धर्म कॉलम से ‘अन्य’ विकल्प को हटाने के हालिया फैसले ने सरना अनुयायियों के लिए दुविधा पैदा कर दी है.”
उन्होंने दावा किया कि अब उन्हें या तो विकल्पों में से किसी एक धर्म को चुनना होगा या कॉलम को खाली छोड़ना होगा.
उन्होंने बताया कि नवंबर 2020 में झारखंड विधानसभा ने अलग धार्मिक पहचान की मांग का समर्थन करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था.
उन्होंने कहा, “पूर्व भाजपा मुख्यमंत्री रघुबर दास द्वारा 2021 तक सरना कोड लागू करने के आश्वासन और 2019 में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा इसी तरह के वादे के बावजूद, इस मुद्दे पर केंद्र सरकार में कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई है.”
रमेश ने कहा, “आज जब गैर-जैविक प्रधानमंत्री झारखंड में हैं तो क्या वे इस मुद्दे पर बात करेंगे और सरना कोड लागू करने पर अपना रुख स्पष्ट करेंगे? क्या रघुबर दास और अमित शाह के वादे महज़ बयानबाज़ी थे?”
झारखंड महीने में अगले कुछ महीने में ही चुनवा होना है. ऐसा माना जा रहा है कि जहां बीजेपी यह मान रही है कि हरियाणा और महाराष्ट्र में पार्टी के लिए जीत की कोई संभावना नहीं बन रही है. लेकिन झारखंड में उसे सफलता मिल सकती है.
यह मानने की एक वजह ये है कि लोकसभा चुनाव में बेशक पार्टी को कुछ सीटें खोनी पड़ीं, इसके बावजूद पार्टी ने यहां पर आठ लोक सभा सीटों पर जीत हासिल की थी.
लोक सभा चुनाव में पार्टी को 50 से ज़्यादा विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त भी हासिल हुई थी. लेकिन कांग्रेस पार्टी किसी भी सूरत में बीजेपी को राज्य में जीतने नहीं देना चाहती है.
वह कदम कदम पर बीजेपी को कड़ी चुनौती दे रही है.