पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के हरिसरा गांव में एक चौंकाने वाली घटना में जादू-टोना करने के शक में दो आदिवासी महिलाओं की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. शुक्रवार (13 सितंबर) को हुए हमले के एक दिन बाद उनके शव पास की नहर से बरामद किए गए.
यह घटना करम पूजा से ठीक एक दिन पहले हुई थी. करम पूजा एक ऐसा त्योहार है जिसमें आदिवासी समुदाय भरपूर फसल के लिए प्रकृति से प्रार्थना करते हैं.
हमले का एक वीडियो भी है, जिसे हमलावरों में से एक ने फिल्माया है. उसमें महिलाओं को नग्न करके बार-बार डंडों से तब तक पीटा जाता है जब तक कि वे दम नहीं तोड़ देतीं.
पीड़ितों की पहचान 54 वर्षीय लोदगी किस्कू और 40 वर्षीय डॉली सोरेन के रूप में हुई है.
पुलिस ने जांच शुरू कर दी है और अब तक 15 लोगों को हिरासत में लिया है. जिन्हें बाद में रामपुरहाट के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया गया.
मृतकों में से एक के रिश्तेदार सहित चार को छह दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया और अन्य को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
इसके अलावा पुलिस ने कहा कि उन्हें कथित लिंचिंग से जुड़ा एक वीडियो क्लिप मिला है और वे फुटेज का विश्लेषण कर रहे हैं.
पुलिस के मुताबिक, दोनों मृतक महिलाओं के परिवार ने आरोप लगाया है कि पड़ोसियों ने महिलाओं को उनके घरों से घसीटा और रस्सियों से बांधने से पहले उन्हें डंडों से पीटा.
लोदगी किस्कू के परिवार ने स्थानीय गांव के नेता लक्ष्मीराम किस्कू पर उन्हें जबरन उनके घर से ले जाने और ग्रामीणों को उन पर हमला करने के लिए उकसाने का आरोप लगाया है. पड़ोसी गांव की डॉली सोरेन लोदगी से मिलने आई थीं, जब वह भी हिंसा का निशाना बन गईं.
लोदगी की बेटी रानी किस्कू ने कहा, “गांव का मुखिया लक्ष्मीराम आया और मेरी मां को हमारे घर से ले गया. हमें नहीं पता था कि मेरी मां ने क्या गलत किया है. बाद में हमने सुना कि उन्होंने उसे मार दिया है. अब हमें डर है कि वे हमें भी मार सकते हैं.”
वहीं लक्ष्मीराम की पत्नी का दावा है कि उनक पति एक ‘देवांशी’ (स्वयंभू आध्यात्मिक नेता) हैं. उन्होंने कहा कि जब मेरी बेटी लोदगी को देखकर बेहोश हो गई, तब वह सो रहे थे. लोदगी ने कहा कि वह सभी का खून पी जाएगी. मेरी चीखें सुनने के बाद सभी लोदगी को खींचकर ले गए. वह एक राक्षस थी और उसने हमारे गांव के कई लोगों को नुकसान पहुंचाया था. पूरे गांव ने उसे मार डाला.
गांव की कई महिलाओं ने भी यही कहा और आरोप लगाया कि दोनों पीड़ित जादू-टोना करने के लिए जानी जाती थीं.
एक महिला ने कहा कि ऐसा माना जाता है कि वे अपने अनुष्ठानों के माध्यम से दूसरों को नुकसान पहुंचाती थीं.
दोनों महिलाओं के साथ क्रूरतापूर्वक मारपीट की गई, उन्हें नंगा किया गया, बांधा गया और पीटा गया. उनकी मौत के बाद उनके शवों को अपवित्र किया गया और सिंचाई नहर में फेंक दिया गया. बताया जाता है कि इस हमले में कई ग्रामीण, पुरुष और महिलाएं, शामिल थे.
एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि हमें अभी तक मौत के सही कारण का पता नहीं चल पाया है, शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है.
वहीं गांव में बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है, मामले की आगे की जांच जारी है.
आधुनिकीकरण और शिक्षा के प्रयासों के बावजूद कुछ आदिवासी समुदायों में जादू-टोने से जुड़े अंधविश्वास अभी भी कायम हैं.
हाल के वर्षों में बीरभूम में कई बार ऐसी हिंसा की खबरें आई हैं, जिसमें महिलाओं को अक्सर जादू-टोने के आरोप में मार दिया जाता है या उनके घरों से निकाल दिया जाता है.
शांतिनिकेतन के आस-पास के गांवों में डायन-शिकार के नाम पर परिवारों को विस्थापित किया गया है और उनके घरों पर कब्ज़ा कर लिया गया है, जो कुछ आदिवासी क्षेत्रों में बढ़ती प्रवृत्ति है.
मयूरेश्वर पुलिस स्टेशन के अंतर्गत जिस क्षेत्र में यह घटना हुई, वह लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का संगठनात्मक गढ़ रहा है. दशकों से हिंदुत्व समूह यहां सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं, कथित तौर पर आदिवासी आबादी के बीच प्रभाव फैलाने के लिए जादू-टोना जैसी प्रथाओं का इस्तेमाल करते हैं.
वनवासी कल्याण आश्रम और सरस्वती शिशु मंदिर जैसे संगठन, विभिन्न गैर सरकारी संगठनों के साथ, 30 से अधिक वर्षों से इस क्षेत्र में अपनी पहुंच बढ़ा रहे हैं.
स्थानीय आदिवासी नेताओं का कहना है कि इस तरह की हिंसा पहले आम नहीं थी लेकिन अब इन क्षेत्रों में यज्ञ और पूजा अनुष्ठान जैसी हिंदू प्रथाएँ तेजी से प्रचलित हो रही हैं.