HomeAdivasi Dailyअसम: आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक क़ानून का सियासी इस्तेमाल

असम: आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक क़ानून का सियासी इस्तेमाल

बीजेपी आरोप लगाती है कि आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक की सुरक्षा क़ानून का कांग्रेस ने वोट बैंक राजनीति के लिए इस्तेमाल किया है. लेकिन यह बात भी उतनी ही सही है कि बीजेपी भी इस क़ानून का सियासी इस्तेमाल ही कर रही है.

असम के सोनापुर में चलाए जा रहे बेदखली अभियान के बीच गुरुवार को हुई झड़पों के बाद शनिवार को आदिवासी बेल्ट और सुरक्षा की मांग को लेकर लोगों ने प्रदर्शन किया है.

कामरूप ज़िले के सोनापुर कचुटाली क्षेत्र में शनिवार को स्थानीय लोगों ने आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक क्षेत्रों की सुरक्षा की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया.

गुरुवार को सोनपुर में बेदखली अभियान के दौरान हिंसक झड़पें हुईं. इन झडपों में पुलिस ने गोली चला दी.

इस घटना में दो लोगों की मौत हो गई और सात घायल हो गए.

प्रशासन का दावा है कि 1500 से अधिक लोगों की भीड़ ने सरकारी अधिकारियों और पुलिस पर हमला किया था. प्रशासन ने इस हमले में 22 पुलिसकर्मी और एक राजस्व अधिकारी के घायल होने की जानकारी दी है.

सीमा पर अवैध घुसपैठ और अतिक्रमण की आशंका

असम के पुलिस महानिदेशक (DGP) जीपी सिंह ने बताया कि हाल ही में मिली जानकारी के अनुसार बांग्लादेश से कुछ लोग असम में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे थे जिससे आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक क्षेत्र में अतिक्रमण का खतरा पैदा हो गया.

डीजीपी ने बताया कि वे इस मामले को मुख्यमंत्री सरमा के ध्यान में लाए और उन्होंने जांच का निर्देश दिया. जांच में पाया गया कि सोनापुर बेल्ट में बसे लोग उस श्रेणी से नहीं हैं जिन्हें वहां रहने की अनुमति दी गई है.

एक सप्ताह तक इन लोगों के अवैध रूप से यहां रहने की घोषणा की गई. इसके बाद 9 सितंबर को बेदखली अभियान शुरू किया गया.

इस अभियान में 151 लोगों के 300 घरों को खाली कराते हुए अवैध रूप से कबज़ाई हुई 248 बीघा ज़मीन को मुक्त कराया गया है.

सिंह ने कहा कि स्थिति 12 सितंबर को तब हिंसक हो गई जब कुछ लोगों ने अधिकारियों पर पत्थरबाजी शुरू कर दी. हिंसा भड़कने के बाद स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई थी.

सरकारी अधिकारियों और पुलिस पर हमले के बाद, मामले की जांच जारी है और पुलिस ने घटना के संबंध में केस दर्ज कर लिया है. सिंह ने भरोसा दिलाया कि सरकार की नीति के अनुसार कार्रवाई की जाएगी और दोषियों को सख्त सज़ा मिलेगी.

हिंसा के बाद पक्ष-विपक्ष के एक दूसरे पर आरोप

मुख्यमंत्री ने शुक्रवार को कांग्रेस पर अतिक्रमणकारियों को उकसाने का आरोप लगाया. हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि गुरुवार को कांग्रेस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर घुसपैठियों के प्रति सहानुभूति जताई थी जिसके बाद उन्हीं घुसपैठियों ने पुलिस पर हमला कर दिया.

सरमा ने कहा कि जो नारे बांग्लादेश में लगाए गए थे, वही नारे गुरुवार को हुई हिंसा में भी लगाए गए.

दूसरी तरफ कांग्रेस ने आरोप लगाया कि भाजपा सदस्यों ने पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल को गुवाहाटी के बाहरी इलाके सोनापुर में बेदखली स्थल पर जाने से रोक दिया जहां गुरुवार को हुई पुलिस गोलीबारी में दो लोगों की मौत हो गई थी.

घटनास्थल के पास पत्रकारों से बात करते हुए कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष और विधायक ज़ाकिर हुसैन सिकदर ने कहा कि वे जनता के प्रतिनिधि के तौर पर लोगों की सभी जायज़ चिंताओं को उठाएंगे.

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पुलिस द्वारा लोगों की गोली मारकर हत्या करने और बिना नोटिस के लोगों को बेदखल करने को भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.

हुसैन ने ज़ोर देकर कहा कि वे शांतिपूर्ण असम चाहते हैं.

प्रतिनिधिमंडल ने क्षेत्र से लौटकर गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में भर्ती घायलों से मुलाकात की और उनकी स्थिति के बारे में जानकारी ली.

बाद में यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए हुसैन ने कहा कि कांग्रेस अतिक्रमण का समर्थन नहीं करती है और अवैध रूप से बसे लोगों को बेदखल किया जाना चाहिए.

उनका मानना है कि यह कार्य पुनर्वास के प्रावधान के साथ अदालतों द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार किया जाना चाहिए.

आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक कानून पर सरकार का पक्ष क्या है?

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस मामले को लेकर मीडिया से बातचीत की. उन्होंने आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक कानून की चर्चा करते हुए बताया कि यह कानून असम लैंड एंड रेवेन्यू रेगुलेशन, 1886 के अध्याय दस पर आधारित है जिसे 1947 में असम के पहले मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई ने लागू किया था. उन्होंने कहा कि यह कानून पिछड़े समुदायों के भूमि अधिकार का संरक्षण करता है.

सरमा ने आरोप लगाया कि कुछ अतिक्रमणकारियों ने धीरे-धीरे इस क्षेत्र में अपनी पैठ बना ली, इतना ही नहीं इनके पास वोटर आईडी भी उपलब्ध हैं. इन अवैध प्रवासियों को हटाना राजनीतिक दलों के लिए चुनौतीपूर्ण है क्योंकि अब यह वोट बैंक का सवाल है.

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि कुछ भूमि दलालों की पहचान की गई है जो इन अवैध प्रवासियों को जमीन बेच रहे हैं. सीएम ने आश्वासन दिया कि उनके खिलाफ भी जल्द कार्रवाई की जाएगी.

असम भूमि और राजस्व अधिनियम, 1886 क्या है?

असम भूमि और राजस्व अधिनियम, 1886 (Assam Land and Revenue Regulation, 1886) का उद्देश्य असम में भूमि प्रशासन को बेहतर तरीके से लागू करना था.

असम में बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय निवास करते थे और उनकी जमीनों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं थी. इस कानून ने आदिवासी और पिछड़े वर्गों की भूमि अधिकारों को संरक्षित कर उनकी जीविका सुनिश्चित करने की कोशिश की.

ब्रिटिश सरकार की प्राथमिकता भारतीयों के अधिकारों की सुरक्षा नहीं बल्कि अपने प्रशासन और आर्थिक हितों को सुरक्षित करना था.

इस कानून के पीछे ब्रिटिश सरकार का प्रमुख उद्देश्य असम के प्राकृतिक संसाधनों (विशेष रूप से चाय और अन्य कृषि उत्पादों) का दोहन करना था.

असम में चाय बागानों और व्यापार के विस्तार के लिए ब्रिटिशों को जमीन की जरूरत थी और वे असम के स्थानीय जनजातीय समूहों और आदिवासियों की भूमि को व्यवस्थित तरीके से नियंत्रित करना चाहते थे.

1947 में इस कानून में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया गया जिसे ‘अध्याय दस’ के रूप में जाना जाता है.

यह संशोधन असम के पहले मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई की अगुवाई में किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य असम के आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था.

इस संशोधन के तहत कुछ क्षेत्रों को ‘संरक्षित बेल्ट और ब्लॉक’ घोषित किया गया जहां केवल आदिवासी और अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों को बसने का अधिकार दिया गया.

यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि असम में पूर्वी बंगाल से बड़ी संख्या में प्रवासियों का आगमन शुरू हो चुका था. ये प्रवासी मुख्यतः मुस्लिम समुदाय से थे.

असम की वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा बेशक यह आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस की वोट बैंक की राजनीति की वजह से असम में अवैध घुसपैठ होती रही है.

लेकिन हिमंत बिस्वा सरमा खुद भी फ़िलहाल राजनीति ही कर रहे हैं. उनकी कोशिश आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक क़ानून का इस्तेमाल कर हिन्दू मुसलमान ध्रुवीकरण पैदा करने की है.

वे इस क़ानून का इस्तेमाल कर हिन्दू वोटबैंक को जोड़ने की फ़िराक़ में हैं.

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