कर्नाटक के नागरहोल टाइगर रिजर्व के आसपास के वन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों ने गुरुवार को डायरेक्टर ऑफिस के सामने विरोध प्रदर्शन किया. उन्होंने मांग की कि दशकों से अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर रहने वाले वनवासियों को किसी भी कारण से जंगल से अलग न किया जाए.
नागरहोल आदिवासी जम्मापाले अधिकार स्थापना समिति के नेतृत्व में सैकड़ों आदिवासियों ने मांग की कि अधिकारी उन्हें विस्थापित न करें. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि आदिवासी कभी भी जंगल नहीं छोड़ना चाहते.
उन्होंने कहा, “आदिवासियों की अपनी संस्कृति है. अब राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने हमें तुरंत जंगल छोड़ने के लिए नोटिस जारी किया है. यह कार्रवाई का सही तरीका नहीं है. अधिकारियों द्वारा अचानक हमें नोटिस देने और तुरंत खाली करने के लिए कहने का क्या उद्देश्य है?”
प्रदर्शनकारियों ने अपील की कि वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत, सामुदायिक अधिकार, सामुदायिक वन संसाधन अधिकार और आवास अधिकारों को संविधान के मुताबिक पूरी तरह से मान्यता दी जानी चाहिए.
एसीएफ अनन्यकुमार ने आदिवासियों की अपील प्राप्त की. समिति के अध्यक्ष जेके थिम्मा, सचिव शिवू, आदिवासी किसान संघ के अध्यक्ष सिद्दप्पा और अन्य ने विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया.
एसीएफ ने कहा, “आदिवासियों को जंगल से विस्थापित करने का विभाग के समक्ष कोई प्रस्ताव नहीं है. अगर आदिवासी खुद चाहेंगे तो ऐसे परिवारों को स्थानांतरित करने की व्यवस्था की जाएगी.”
अधिकारी ने आंदोलनकारियों से कहा, “राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा जारी अधिसूचना विस्थापन से संबंधित नहीं है.”
नागरहोल और आदिवासी
दरअसल दक्षिण कर्नाटक के नागरहोल टाइगर रिज़र्व फ़ॉरेस्ट में आदिवासी लंबे समय से जबरन विस्थापन और वन अधिकार क़ानून, 2006 के तहत अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे है.
राजीव गांधी या नागरहोल नेशनल पार्क के रूप में जाना जाने वाली भूमि को 1999 में एक टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था. यहां के स्थानीय समुदायों का संघर्ष लोगों के अपनी जमीन पर रहने के अधिकार के मूल सिद्धांत में निहित है.
नागरहोल में आदिवासियों और यहाँ के मूल निवासियों के विस्थापन का सिलसिला 1978-80 में शुरू हुआ. यहां रहने के अपने अधिकारों के लिए लोगों के निरंतर संघर्ष के बावजूद यहां से विस्थापन भी अनवरत जारी है.
संरक्षित क्षेत्र के रूप में नागरहोल की स्थापना के बाद से विस्थापित गांवों की संख्या 47 हो चुकी है. लेकिन अभी भी वन विभाग लोगों को जंगल से निकालने के इरादे छोड़ नहीं रहा है.
यहां के आदिवासियों का कहना है कि बाघ संरक्षण के नाम पर लोगों का जबरन पुनर्वास बंद करना चाहिए.