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झारखंड: JMM और बीजेपी के बीच आदिवासी पहचान और आर्थिक मुद्दों पर प्रतिस्पर्धा है

लोकसभा 2024 के चुनाव परिणामों से यह स्पष्ट हो गया है कि आदिवासी इलाकों में झारखंड मुक्ति मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन का समर्थन बरक़रार है. दूसरी तरफ राज्य के मुख्यमंत्री लगातार ऐसी योजनआों का ऐलान कर रहे हैं जिससे लोगों को आर्थिक मोर्चे पर फ़ायदा मिलेगा.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार (2 अक्टूबर) को कहा कि झारखंड में हिंदुओं और आदिवासियों की जनसंख्या घट रही है और उन्होंने झामुमो गठबंधन सरकार पर राज्य की पहचान, संस्कृति और विरासत की कीमत पर घुसपैठियों का समर्थन करके ‘‘वोट बैंक की राजनीति’’ करने का आरोप लगाया.

उन्होंने कहा कि ‘‘माटी, बेटी, रोटी’’ को बचाने के लिए अब ‘‘ऐसी ताकतों को बाहर करने’’ का समय आ गया है.

भाजपा की परिवर्तन यात्रा के समापन के मौके पर हजारीबाग में एक जनसभा को संबोधित करते हुए मोदी ने आगाह किया कि हिंदुओं और आदिवासियों की आबादी घट रही है.

राज्य में सत्ता परिवर्तन की अपील करते हुए उन्होंने कहा कि झारखंड की पहचान की रक्षा के लिए घुसपैठियों को प्रोत्साहित करने वाली “ताकतों को बाहर निकालने” का समय आ गया है.

उन्होंने कहा, “संथाल परगना इसका जीता जागता सबूत है, जहां घुसपैठ के कारण जनसांख्यिकी परिवर्तन से आदिवासी आबादी में कमी आ रही है. इस बदलाव के लिए झामुमो-कांग्रेस-राजद सरकार जिम्मेदार है क्योंकि वे झारखंड की आत्मा को बदलने की कोशिश कर रहे हैं.”

इसके अलावा पीएम ने 80 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक की योजनाओं की शुरुआत की है. कुछ योजनाओं में देश के लगभग 550 जिलों में 63 हज़ार आदिवासी बहुल गांवों को विकसित करने के लिए धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान; 40 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) का उद्घाटन के अलावा 25 और स्कूलों की आधारशिला रखी.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस भाषण में जो बातें कही गई हैं और जिस तरह से उन्होंने झारखंड में आदिवासी जनसंख्या को ध्यान में रख कर कई योजनाओं का ऐलान किया है, उससे राज्य के विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी की रणनीति कुछ कुछ स्पष्ट होती है.

इस रणनीति के तहत बीजेपी आदिवासी इलाकों में केंद्र सरकार की योजनाओं के प्रचार के अलावा कुछ ऐसे मुद्दे उछालेगी जिससे आदिवासी वोटबैंक में कुछ बंटवारा पैदा किया जा सके.

लोकसभा 2024 के चुनाव परिणामों से यह स्पष्ट हो गया है कि आदिवासी इलाकों में झारखंड मुक्ति मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन का समर्थन बरक़रार है. दूसरी तरफ राज्य के मुख्यमंत्री लगातार ऐसी योजनआों का ऐलान कर रहे हैं जिससे लोगों को आर्थिक मोर्चे पर फ़ायदा मिलेगा.

इसके अलावा झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस ने लगातार आदिवासी पहचान और अधिकारों को केंद्र मे रखने की कोशिश की है. जहां हेमंत सोरेन आदिवासियों की धार्मिक पहचान यानि सरना धर्म कोड को मुद्दा बनाते हैं तो राहुल गांधी आदिवासी बनाम वनवासी के मुद्दे को उठाते हैं.

बीजेपी ने इन दोनों ही मोर्चों पर सत्ताधारी गठबंधन से लोहा लेने की तैयारी की है. इसलिए झारखंड में सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस का भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से मुकाबला कई आयामों पर हो रहा है.

संथाल परगना में आदिवासी आबादी कम हो रही

पिछले कुछ वक्त से झारखंड में जनसांख्यिकी में कथित बदलाव को लेकर हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार पर भाजपा लगातार हमलावर हो रही है. असम के मुख्यमंत्री और झारखंड भाजपा के चुनाव सह प्रभारी हिमंत बिस्व सरमा बार-बार इस मुद्दे पर सोरेन सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं.

वहीं गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में संताल परगना की बदल रही डेमोग्राफी, आदिवासियों की घटती जनसंख्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाया था.

पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने भी इस मामले को उठाया है और कहा कि “जनसांख्यिकी परिवर्तन” ने आदिवासी ‘अस्मिता’ को चोट पहुंचाई है. प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी भी बार-बार इस मुद्दे को उठाते रहे हैं.

झारखंड मुक्ति मोर्चा से बीजेपी में शामिल हुए चंपई सोरेन भी इस मुद्दे पर बोल रहे हैं और घुसपैठ को आदिवासी समाज के अस्तित्व के लिए गंभीर ख़तरा बताया.

अब तक झारखंड में बीजेपी का मोर्चा संभाले ये सभी वरिष्ठ नेता जोरशोर से इस मुद्दे को उठाकर सोरेन सरकार को घेरने में लगे थे.

लेकिन जब प्रधानमंत्री मोदी ने संथाल परगना में आदिवासी आबादी के घटने और बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे को संबोधित किया है तो यह पूरी तरह से साफ हो गया है कि इस साल के आखिर में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में बीजेपी इसी मुद्दे पर दांव खेलेगी और आदिवासी मतदाताओं को साधने की कोशिश करेगी.

हालांकि आदिवासी मसलों के जानकार कहते हैं कि घटती आदिवासी आबादी के लिए पलायन, गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण बड़े कारण हैं. ये जानकार कहते हैं कि आदिवासी आबादी कम नहीं हो रही है; वे बस बेरोजगारी के कारण बाहर जा रहे हैं.

इस मुद्दे पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बीजेपी की केंद्र सरकार को ही घरेने की कोशिश की है. उनका कहना है कि देश की सीमाओं की रक्षा करने का काम केंद्र सरकार का है. अगर झारखंड के किसी इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठ हो रही है तो फिर केंद्र सरकार को जवाब देने चाहिए कि ये बांग्लादेशी भारत में कैसे और कहां से घुसे.

आदिवासी पहचान की लड़ाई

26 प्रतिशत आदिवासी आबादी वाले झारखंड में लोकसभा चुनाव के दौरान 31 जनवरी को कथित भूमि अधिग्रहण के मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद पहचान की राजनीति केंद्र में आ गई.

इसके अलावा झारखंड में आदिवासी समुदायों द्वारा पालन किए जाने वाले धर्म “सरना” की मांग भी जोरशोर से उठ रही है.

हेमंत सोरेन ने हाल ही में कहा भी था कि बीजेपी यहां (झारखंड) घुसपैठिए, लव जिहाद और लैंड जिहाद की बात करते हैं. लेकिन हम इनसे पूछते हैं कि आदिवासियों को जनगणना फॉर्म में सरना आदिवासी धर्म लिखने की इजाजत क्यों नहीं दे रहे. हमारी पहचान ही नहीं है तो हमारा गायब होना स्वाभाविक है.

दरअसल, आदिवासियों का एक बड़ा तबका ऐसा है जो खुद को हिंदू या ईसाई नहीं मानता है. इनमें झारखंड के आदिवासियों की आबादी सबसे ज्यादा है. ये आदिवासी खुद को ‘सरना धर्म’ मानने वाले बताते हैं.

झारखंड के आदिवासी वर्षों से अपने लिए अलग से ‘सरना धर्म कोड’ लागू करने की मांग कर रहे हैं. आदिवासियों की ये मांग 80 के दशक से चली आ रही है.

2019 में झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार आने के बाद ये मांग और तेज़ हो गई. सोरेन सरकार ने ‘सरना धर्म कोड बिल’ पास भी किया था. लेकिन ये बिल अभी केंद्र सरकार के पास मंजूरी के लिए अटका है.

इस मामले में पिछले साल सितंबर में झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र भी लिखा था. जिसमें उन्होंने सरना धर्म कोड को लागू करने की मांग की. पीएम को लिखे पत्र में सीएम सोरेन ने कहा था कि हम आदिवासी पेड़ो, पहाड़ो एंव जंगलों को बचाने को अपना धर्म मानते हैं.

उन्होंने कहा कि झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है. यहां आदिवासियों की संख्या एक करोड़ से भी ज्यादा है. राज्य की एक बड़ी आबादी सरना धर्म को मानती है इसलिए पूरे आदिवासी समुदाय के लोग जनगणना में सरना धर्म को शामिल करने की मांग कर रहे हैं.

विधानसभा चुनाव से पहले भी इस मुद्दे को बार-बार उठा रहे हैं.

लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी सत्तारूढ़ JMM और उसकी सहयोगी कांग्रेस दोनों ने सरना कोड को लेकर BJP को घेरने की कोशिश की थी.

आर्थिक मोर्चे पर प्रतिस्पर्धा

हेमंत सोरेन आदिवासी आबादी के समर्थन को बनाए रखने के लिए चुनाव से पहले कई योजनाओं की भी घोषणा कर चुके हैं.

इस क्रम में उन्होंने पिछले महीने 201 करोड़ 83 लाख 6 हज़ार 547 रुपए की लागत से 96 योजनाओं का उद्घाटन शिलान्यास किया. इसमें 153 करोड़ 33 लाख 3 हज़ार 847 रुपए की 77 योजनाओं की नींव रखी गई, वहीं 48 करोड़ 50 लाख 2 हज़ार 650 रुपए की 19 योजनाओं का उद्घाटन हुआ.

इसके अलाव सोरेन सरकार ‘मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना’ के जरिए प्रदेश की महिलाओं के बीच अपनी पहुंच मजबूत करने में जुटी है. मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना के तहत एक महीने में करीब 45 लाख महिलाओं के खाते में राशि पहुंचाई जा चुकी है.

इस योजना के तहत 18 से 50 साल की महिलाओं को लाभ मिलेगा. योजना के तहत हर महीने 1000 रुपये दिए जाएंगे यानी सालाना महिलाओं को 12 हज़ार मिलेंगे. महिलाओं को यह राशि सीधे उनके खाते में डीबीटी यानी डायरेक्ट डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के तहत भेजी जाएगी.

उधर बीजेपी ने भी केंद्र सरकार के सहारे आदिवासी आबादी के लिए कई धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान जैसी योजनाओं की घोषणा की है.

झारखंड में झामुमो-कांग्रेस और बीजेपी के बीच सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर एक गहरी राजनीतिक लड़ाई चल रही है. झामुमो-कांग्रेस और बीजेपी के बीच आदिवासी पहचान, सांस्कृतिक अधिकार और सामाजिक कल्याण योजनाओं को केंद्र में रखा कर यह लड़ाई कुल मिला कर अच्छी ही कही जा सकती है.

इस लड़ाई से यह स्पष्ट हो रहा है कि राज्य में बीजेपी मतदाता ने सत्ताधारी दल और विपक्ष दोनों को ही मूल मुद्दों पर बहस और प्रतिस्पर्धा के लिए मजबूर कर दिया है.  

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