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झारखंड की राजनीति में कल्पना की उड़ान ग़ौर करने लायक है

झारखंड में दो चरणों के चुनाव में JMM के हाथ बंधे रह सकते थे क्योंकि हेमंत सोरेन इंडिया ब्लॉक के लिए एकमात्र स्टार प्रचारक थे. लेकिन कल्पना सोरेन की रैलियों की योजना ने चीजों को आसान बना दिया है.

झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए बिगुल बज गया है. राज्य में दो चरण में 13 और 20 नवंबर को  मतदान होगा. पहले चरण के लिए चुनाव प्रचार अब अपने अंतिम दौर में है. राज्य के सभी नेता चुनाव प्रचार में पूरा ज़ोर लगा रहे हैं.

इस चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, राहुल गांधी, हेमंत सोरेन, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा, अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी सभी बड़े नेता बीजेपी की तरफ से मैदान में उतरे हुए हैं.

लेकिन इन सभी बड़े नामों के अलावा झारखंड की राजनीति और इस विधान सभा चुनाव में एक नाम बड़ी तेज़ी से उभरा है – कल्पना सोरेन …

झारखंड विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान के कल्पना सोरेन को सुनने के लिए लोगों का हुजूम देखने को मिल रहा है. इन लोगों में आदिवासी महिलाएं ज्यादा हैं. कल्पना सोरेन एक साल से भी कम समय में आदिवासी मतदाताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बन गई हैं. ख़ासतौर से आदिवासी महिलाएं बड़ी संख्या में उन्हें देखने और सुनने आती हैं.

(कल्पना सोरेन के संबोधन को सुनने आईं महिलाएं)

कल्पना सोरेन ने इस साल जनवरी में मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद लोकसभा चुनाव से पहले इंडिया ब्लॉक के लिए प्रचार की कमान संभाली. और उन्होंने आम चुनाव के दौरान जमकर प्रचार किया था.

झारखंड की राजनीति में हमेशा परदे के पीछे वाली कल्पना इस चुनाव के दौरान पहली बार इतने बड़े मंच से देश की जनता को संबोधित करती नज़र आई थीं.

विधानसभा चुनाव में बटोर रहीं सुर्खिया

हेमंत सोरेन जून में जेल से रिहा हुए और वर्तमान में राज्य विधानसभा चुनाव से पहले अपनी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) पार्टी के लिए चुनाव प्रचार का नेतृत्व कर रहे हैं. लेकिन अब वे अकेले नहीं हैं…क्योंकि कल्पना सोरेन की रैलियों और सभाओं में भी उतनी ही और कई बार तो हेमंत सोरेन की सभाओं से भी ज़्यादा भीड़ जुट रही है.

पिछले हफ्ते खूंटी जिले में जब कल्पना सोरेन चुनाव प्रचार के लिए पहुंची तो उनकी सभा में जन सैलाब उमड़ गया. कल्पना सोरेन के भाषण में एक लय नज़र आती है. वे अपने पति के बारे में बात करते हुए शुरुआत करती हैं और फिर भीड़ को जेएमएम के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार की कई प्रमुख योजनाओं के बारे में याद दिलाती हैं.

उनके सार्वजनिक भाषण देने के कौशल और महिला मतदाताओं से जुड़ने की क्षमता ने उनकी रैलियों की मांग बढ़ा दी है.

लेकिन सवाल ये है कि आखिर इतने कम समय में कल्पना सोरेन मतदाताओं के बीच इतनी लोकप्रिय क्यों हो गईं? अपने शब्दों के प्रति सजग 48 वर्षीय गांडेय विधायक अपनी जनसभाओं में उस क्षेत्र के प्रति सजग रहती हैं, जहां वे बोल रही हैं.

उदाहरण के लिए, जब पिछले हफ्ते कल्पना सोरेन आदिवासी बहुल खूंटी जिले के अंदरूनी हिस्से में एक जनसभा को संबोधित कर रही थीं… तो उन्होंने यह याद रखा कि 2019 में ये इलाके पत्थलगढ़ी आंदोलन का केंद्र थे, जो इस क्षेत्र के आदिवासियों के लिए एक भावनात्मक मुद्दा था.

ऐसे में करीब 1,500 आदिवासियों की भीड़ को संबोधित करते हुए कल्पना ने उन्हें याद दिलाया कि कैसे पिछली भाजपा सरकार ने “हमारे लड़कों” (आदिवासी युवाओं) के खिलाफ मामले दर्ज किए और 2019 में उन्हें गिरफ्तार किया.

उन्होंने भीड़ को याद दिलाया कि कैसे पत्थलगड़ी आंदोलन का हिस्सा होने के आरोप में उन लोगों के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था.

इसके साथ ही कल्पना ने आदिवासियों के लिए अलग सरना धर्म संहिता और 1932 के खतियान (झारखंड के स्थानीय निवासी कौन हैं, यह तय करने के लिए आधार रेखा) के आधार पर आवास नीति के लिए इंडिया ब्लॉक की गारंटी को भी रेखांकित किया.

कल्पना सोरेन की रैलियां पार्टी के लिए गेम चेंजर के रूप में उभर रही हैं.

झारखंड में दो चरणों के चुनाव में JMM के हाथ बंधे रह सकते थे क्योंकि हेमंत सोरेन इंडिया ब्लॉक के लिए एकमात्र स्टार प्रचारक थे. लेकिन कल्पना सोरेन की रैलियों की योजना ने चीजों को आसान बना दिया है.

कुल मिलाकर अब हेमंत सोरेन अकेले नहीं हैं, कल्पना उनके साथ हैं.

वहीं कल्पना सोरेन कहती हैं कि उनके पति की गिरफ्तारी के बाद उनकी जिम्मेदारियां अचानक बदल गईं. उनका कहना है कि 2024 की शुरुआत से सामने आई चुनौतियों ने उनको बदल दिया. पहले उनके पास परिवार की जिम्मेदारी थी अब उनके पास पार्टी की भी जिम्मेदारी है. कल्पना सोरेन अपनी सभाओं में सिर्फ़ महिलाओं का सवाल या अपने पति पर ज़ुल्म की बात ही नहीं करती हैं, वे बीजेपी के हमलों का जवाब भी देती हैं. मसलन आदिवासी इलाकों में बांग्लादेशी घुसपैठ पर वे बीजेपी पर पलटवार करती हैं.

कल्पना की राजनीतिक यात्रा

कल्पना सोरेन का नाता ओड़िशा के मयूरभंज जिले के उसी रायरंगपुर इलाके से है, जहां से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हैं. वे बलहदा प्रखंड के तेंतला गांव की रहने वाली हैं. यह गांव रायरंगपुर अनुमंडल का हिस्सा है.

कल्पना बहुभाषी हैं. संथाली, ओड़िया, हिंदी और अंग्रेजी जैसी भाषाओं पर भी उनकी खासी पकड़ है. भारतीय सेना के रिटायर्ड अधिकारी अम्पा मुर्मू की पहली संतान कल्पना सोरेन की शुरुआती पढ़ाई बारीपदा के केंद्रीय विद्यालय से हुई है.

इसके बाद उन्होंने भुवनेश्वर के एक कॉलेज से बी-टेक की पढ़ाई की. बिजनेस मैनेजमेंट में रुचि के कारण उन्होंने एमबीए की भी डिग्री ली.

झारखंड में उनकी पहचान एक बिजनेस वूमेन और समाजसेविका के तौर पर भी है. वे रांची में एक प्ले स्कूल की संचालिका हैं और एक निजी कंपनी की निदेशक भी हैं.

फरवरी 2006 में हेमंत सोरेन से शादी के बाद से वे रांची में रहती हैं.

एक सैन्य परिवार में जन्मी कल्पना ने पूरे देश में भ्रमण किया. उनके पिता के सेना में होने की वजह से तबादले होते रहते थे और उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग संस्कृतियों का अनुभव करने का मौका मिला. और उनके इसी अनुभव ने उनकी राजनीतिक समझ को आकार दिया.

दो बेटों की देखरेख करने वाली कल्पना सोरेन अब तक राजनीति से दूरियां बनाए रखती थीं. लेकिन समय-समय पर हेमंत सोरेन के साथ कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी नजर आती थीं.

कल्पना ने कभी राज्य की चुनावी राजनीति में हिस्सा नहीं लिया था. जबकि उनके ससुर दिशोम गुरु शिबू सोरेन, पति हेमंत सोरेन और भाभी सीता सोरेन दशकों तक राजनीतिक चर्चा में छाए रहे.

लेकिन फिर कल्पना सोरेन ने गिरिडीह जिले के गांडेय से विधानसभा उपचुनाव जीतकर चुनावी राजनीति में पदार्पण किया.

कल्पना मैया सम्मान योजना यात्रा का चेहरा हैं जिसे जेएमएम ने महिलाओं और युवा मतदाताओं तक पहुंचने के लिए शुरू किया है और इसे अपने फिर से चुनाव प्रयासों का केंद्रबिंदु बना दिया है.

यह चुनाव उनकी राजनीतिक क्षमता की परीक्षा होगी और यह दिखाएगा कि क्या उन्हें पूरे झारखंड में एक चेहरे के रूप में स्वीकार किया जाता है.

(Photo credit : @JMMKalpanaSoren)

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