राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने माओवादी हिंसा के कारण 2005 में छत्तीसगढ़ से विस्थापित हुए गुट्टी कोया आदिवासियों की स्थिति पर गंभीर चिंता जताई है.
आयोग ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और ओडिशा सरकारों से इन आदिवासियों की स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है.
दूसरे राज्यों में रह रहे ये आदिवासी सामाजिक सुरक्षा सुविधाओं और बुनियादी ज़रूरतों के अभाव में कई तरह की मुश्किलों का सामना कर रहे हैं.
आयोग की विशेष बैठक का आह्वान
आयोग ने इस मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए 9 दिसंबर को गृह मंत्रालय और चारों राज्यों के मुख्य सचिवों की उपस्थिति के साथ एक बैठक बुलाई है.
आयोग का मानना है कि गुट्टी कोया समुदाय की समस्याओं को हल करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर एक ठोस नीति तैयार करनी चाहिए ताकि इन विस्थापित आदिवासियों को तत्काल सहायता मिल सके.
विस्थापन का कारण और मौजूदा चुनौती
आदिवासी अधिकार कार्यकर्ताओं के मुताबिक, 2005 में माओवादी हिंसा और सुरक्षा बलों के संघर्ष के कारण लगभग 50 हज़ार गुट्टी कोया आदिवासी छत्तीसगढ़ से विस्थापित होकर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और महाराष्ट्र के जंगलों में बस गए.
यहां ये आदिवासी लगभग 248 बस्तियों में जीवनयापन कर रहे हैं. लेकिन इन राज्यों में उनके लिए आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा का संकट बढ़ गया है, क्योंकि उन्हें वहां के स्थानीय समाज से बहुत कम समर्थन मिल रहा है.
ज़मीन और आजीविका पर संकट
अनुसूचित जनजाति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, तेलंगाना में 75 से अधिक बस्तियों में इन आदिवासियों से जमीनें वापस ली गई है, जिससे उनकी आजीविका संकट में आ गई है.
यहां तक कि कुछ जगहों पर वन विभाग के अधिकारियों पर इनके घरों को ध्वस्त करने और फसलों को नष्ट करने का भी आरोप लगाया गया है.
इन घटनाओं ने आदिवासियों को और भी अधिक असुरक्षित बना दिया है और उनके पास जीविका का कोई स्थाई साधन नहीं रह गया है.
अधिकारों से वंचित
तेलंगाना के भद्राद्री कोठागुडेम के जिलाधिकारी की एक रिपोर्ट में गुट्टी कोया समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने से इनकार किया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि गुट्टी कोया लोग वन भूमि पर अतिक्रमण कर रहे हैं और इनकी गतिविधियां पर्यावरण को नुकसान पहुँचा सकती हैं.
ज़िलाधिकारी का कहना है कि ये आदिवासी छत्तीसगढ़ से विस्थापित हुए थे, इसलिए राज्य में इनकी अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता नहीं है और इन्हें वन अधिकार भी प्राप्त नहीं हो सकते हैं.
कहने का अर्थ है कि दूसरे राज्यों में जाकर रहने के कारण, इन आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति का हिस्सा नहीं माना जा रहा है और इन्हें न तो सरकारी योजनाओं का फायदा हो रहा है और न ही इनके जंगल का अधिकार इन्हें मिल रहा है.
पुनर्वास योजनाओं में रुचि की कमी
सरकार ने हाल ही में संसद में बताया था कि छत्तीसगढ़ से विस्थापित आदिवासी परिवारों को पुनर्वास योजनाओं के बावजूद अपने मूल स्थानों पर लौटने में रुचि नहीं है.
सरकार का कहना है कि सुरक्षा शिविरों और अन्य उपायों के बावजूद ये आदिवासी लौटने के लिए तैयार नहीं हैं.
इसके पीछे का एक कारण यह हो सकता है कि उन्हें नए स्थानों पर बसने और अपनी आजीविका का नया साधन खोजने में कठिनाई होगी.
सर्वेक्षण और सुधार की संभावनाएं
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने तेलंगाना में स्थित आर्थिक और सामाजिक अध्ययन केंद्र के निदेशक से भी इन बस्तियों का सर्वेक्षण कर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है.
इसका उद्देश्य है कि गुट्टी कोया समुदाय की वास्तविक स्थिति और आवश्यकताओं को समझकर एक सटीक नीति बनाई जा सके.
आयोग ने इस दिशा में जल्द कदम उठाने के संकेत दिए हैं ताकि इन विस्थापित आदिवासियों को पर्याप्त समर्थन और संसाधन उपलब्ध कराए जा सकें.
गुट्टी कोया आदिवासियों की स्थिति न केवल सामाजिक सुरक्षा का विषय है, बल्कि उनके अस्तित्व से भी जुड़ी है. इसलिए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और सरकार को संयुक्त रूप से इस जनजाति के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए प्रयास करने चाहिए.