23 नवंबर 2024 को घोषित झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों से यह साफ़ है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का संथाल परगना क्षेत्र में “बांग्लादेशी घुसपैठ” का मुद्दा आदिवासी (ST) के वोटरों को गोलबंद करने में असफल रहा.
झारखंड की अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 28 सीटों में से भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को 27 पर हार का सामना करना पड़ा.
भाजपा ने इन 28 सीटों में से 25 पर चुनाव लड़ा, जो संथाल परगना, कोल्हान, दक्षिण छोटानागपुर और पलामू क्षेत्रों में फैली थीं. इन सीटों पर पार्टी को केवल सरायकेला सीट पर जीत मिली. यहां पर पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन जीते हैं. चंपई सोरेन की जीत को भी बीजेपी की जीत से ज़्यादा उनकी व्यक्तिगत जीत माना जा रहा है.
चंपई सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) छोड़कर भाजपा का दामन थामा था. वे 20,000 से अधिक मतों के अंतर से विजयी हुए हैं.
खूंटी और तोरपा सीटें, जो 2019 में भाजपा के पास थीं, इस बार JMM ने जीत ली हैं. इस तरह ST सीटों पर NDA का आंकड़ा 2019 के तीन से घटकर केवल एक रह गया.
संथाल परगना में NDA की करारी हार
संथाल परगना क्षेत्र की अधिकांश सीटें पश्चिम बंगाल से सटी हुई हैं. इस क्षेत्र में INDIA गठबंधन (JMM-कांग्रेस-राजद) ने 52% वोट शेयर हासिल किया. यह वोट शेयर 2019 के विधान सभा चुनाव के मुकाबले 12% अधिक है.
भाजपा को इस क्षेत्र में आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित सीटों पर ही नहीं बल्कि सामान्य सीटों पर भी बड़ा नुकसान हुआ. राजमहल, सारठ और गोड्डा जैसी सीटें इस चुनाव में बीजेपी ने गंवा दीं हैं.
राजमहल में भाजपा के अनंत कुमार ओझा को, जो 2009 से इस सीट पर जीतते आ रहे थे, उन्हें JMM के मोहम्मद ताजुद्दीन ने 43,000 से अधिक वोटों के अंतर से हराया है. सारठ सीट JMM और गोड्डा सीट राजद ने भाजपा से छीन ली हैं.
संथाल परगना की 18 विधानसभा सीटों में से JMM-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने 17 पर जीत हासिल की है. भाजपा केवल जरमुंडी सीट जीत पाई, जिसे कांग्रेस ने 2014 और 2019 में जीता था.
भाजपा की ‘घुसपैठ’ की रणनीति विफल
भाजपा ने इस चुनाव में “संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ” के मुद्दे को मुख्य चुनावी एजेंडा बनाया. इसे झारखंड की आदिवासी पहचान, “रोटी, बेटी और माटी” की सुरक्षा और अपराध, भूमि कब्जा, व सांस्कृतिक पर ख़तरा से जोड़ा था.
JMM ने इस नैरेटिव को तीन स्तरों पर चुनौती दी
- झारखंड मुक्ति मोर्चा ने तीन स्तर पर बीजेपी के इस प्रचार का जवाब दिया. इसमें पहला बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को घुसपैठ रोकने की जिम्मेदारी दी. इसके अलावा असम के मुख्पमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे स्टार प्रचारकों को “बाहरी” बताया गया. हेमंत सोरेन आदिवासियों को यह समझाने में कामयाब रहे कि ये दोनों ही बीजेपी नेता अपने ही राज्यों में आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार रोकने में असफल रहे.
- इसके अलावा JMM ने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के संथाल परगना को झारखंड से अलग करने के सुझाव को राज्य को तोड़ने की साजिश करार दिया.
- JMM ने इस चुनाव में जिला स्तर के व्हाट्सएप ग्रुप्स के जरिए अपनी बात लोगों तक पहुंचाई, जबकि भाजपा ने सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर विज्ञापन दिए और संघ परिवार से जुड़े वनवासी कल्याण आश्रम के जरिए NRC का वादा किया.
कोल्हान और दक्षिण छोटानागपुर में भी भाजपा को झटका
कोल्हान क्षेत्र में भाजपा केवल जमशेदपुर पूर्वी सीट वापस जीतने में सफल रही है. भाजपा के चंपई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन को घाटशिला में JMM ने 22,000 वोटों से हराया. पोटका सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा JMM के संजीब सरदार से 28,000 वोटों से हार गईं.
दक्षिण छोटानागपुर क्षेत्र में, जहां संघ परिवार से जुड़े वनवासी कल्याण आश्रम ने NRC के वादे के साथ आदिवासी गांवों में भाजपा के लिए प्रचार किया, वहां पार्टी 11 ST आरक्षित सीटों में से एक भी नहीं जीत पाई. खूंटी सीट, जो झारखंड के गठन के बाद से भाजपा का गढ़ रही है, इस बार JMM के राम सूर्य मुंडा ने 42,000 वोटों से जीती हैं.
भाजपा को तोरपा सीट पर भी हार का सामना करना पड़ा है.
JMM-कांग्रेस-राजद गठबंधन की ऐतिहासिक जीत
इस चुनाव में JMM-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने राज्य भर में ST सीटों पर लगभग क्लीन स्वीप किया. झारखंड में इंडिया गठबंधन की यह जीत भाजपा की रणनीति और मुद्दों को ख़ारिज करने के साथ-साथ यह भी बताती है कि कैसे हेमंत सोरेन ने बीजेपी की चालों का तोड़ तैयार किया.