जुलाई महीने में हमारी टीम झारखंड के लोहरदगा और लातेहार घूम रही थी. यहां पर कई आदिवासी नेताओं, कार्यकर्ताओं और आम लोगों से बातचीत हुई.
इस बातचीत में झारखंड के विधान सभा चुनाव में हेमंत सोरेन की सरकार के लौटने की संभावनाओं और लोकसभा चुनाव में बीजेपी को आदिवासी सीटों पर लगे झटके के बारे में बात हुई.
मुझे याद है कि इस बातचीत में लोहरदगा के एक सामाजिक कार्यकर्ता संतोष भगत ने कहा था,”हेमंत सोरेन और अधिक ताक़त के साथ लौट रहे हैं.”
उन्होंने शायद यह भी कहा था कि आदिवासी राष्ट्रीय दलों पर भरोसा ज़्यादा भरोसा नहीं करता है. ऐसी ही कई और बातें यहां अलग अलग लोगों से बातचीत में सामने आईं.
मसलन एक बात जो कई लोगों ने कही कि आदिवासी फ्री बिजली या पेंशन जैसे मुद्दों से उतना खुश नहीं होता है जितना वह अपनी ज़मीन के छीन जाने के ख़तरे से विचलित हो जाता है.
यहां के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने यह भी कहा कि राज्य में रघुबर दास के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने आदिवासी अधिकारों से जुड़े कानूनों में छेड़छाड़ की कोशिश की थी. इसका परिणाम यह हुआ कि बीजेपी से आदिवासी का भरोसा उठ गया है.
लेकिन क्या इन दावों को लोकसभा चुनाव परिणामों के आंकड़ों की कौसटी पर तोला जा सकता है. आज यानि 8 अगस्त को सीएसडीएस-लोकनीति-द हिन्दू ने आदिवासी वोट शेयर पर कुछ ज़रूरी आंकड़े जारी किये हैं. आईए इन आंकड़ों के साथ इस बात को समझने की कोशिश करते हैं.
लोकसभा चुनाव 2024 में अनुसूचित जनजाति यानि आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 25 सीटें बीजेपी ने जीती हैं. यानि 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में बीजेपी ने कम से कम 6 एसटी रिजर्व सीटें कम जीती हैं.
क्या कहते हैं लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम
आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित सीटों पर वोट शेयर के मामले में बीजेपी को कोई नुकसान नहीं देखा गया है. साल 2019 और साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को आदिवासी सीटों पर करीब 42.6 प्रतिशत वोट ही मिला है.

अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित लोकसभा सीटों के मामले में कांग्रेस को मिली सफलता बड़ी है. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने आदिवासी आरक्षित सीटों में से सिर्फ़ 4 सीट पर ही जीत दर्ज की थी. जबकि लोकसभा चुनाव 2024 में उसे अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 में से 12 सीटें मिली हैं.
आदिवासी आरक्षित लोकसभा सीटों पर कांग्रेस पार्टी के वोट शेयर में भी बढ़ोत्तरी हुई है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 1.5 प्रतिशत ज़्यादा वोट मिला है.
अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित लोकसभा सीटों पर कांग्रेस को फ़ायदा और बीजेपी को जो नुकसान दिखाई देता है, उसमें एकरूपता (Uniformity) नहीं है.
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी और उसके सहयोगी दलों को मोटेतौर पर फ़ायदा दिखाी देता है. लेकिन यह फ़ायदा उसे कुछ ही राज्यों में मिला है. जबकि कई राज्यों में कांग्रेस पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा है.
मसलन महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, गोवा, जम्मू और कश्मीर में कांग्रेस को आदिवासी वोट शेयर के मामले में फ़ायदा हुआ है. जबकि गुजरात में बीजेपी और कांग्रेस को आदिवासी वोट शेयर लगभग बराबर मात्रा में मिला है. यहां पर दोनों ही पार्टियों का वोट शेयर 49 प्रतिशत के आस-पास ही रहा है.
इसी तरह से झारखंड और उत्तराखंड में भी आदिवासी वोट दोनों ही पार्टी में लगभग बराबर ही रहा है. जबकि आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में आदिवासी वोट शेयर के मामले में बीजेपी को फ़ायदा हुआ है.
इस मामले में मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में आदिवासी अन्य राज्यो की तुलना में बीजेपी की तरफ ज़्यादा झुका हुआ नज़र आता है.
मध्य प्रदेश में कुल जनसंख्या में करीब 21.1 प्रतिशत आदिवासी हैं. यहां पर अगर वोट शेयर देखा जाए तो बीजेपी को 71 प्रतिशत आदिवासी वोट मिला है. जबकि कांग्रेस के इंडिया गठबंधन को सिर्फ़ 24 प्रतिशत वोट ही मिला है.
वैसे ही पश्चिम बंगाल के आदिवासी वोट शेयर को देखें यहां पर कुल जनसंख्या का 6 प्रतिशत हिस्सा आदिवासी का है. यहां पर बीजेपी को आदिवासी वोट का करीब 63 प्रतिशत हिस्सा मिला, टीएमसी को 29 प्रतिशत जबकि इंडिया गठबंधन को सिर्फ़ 2 प्रतिशत सआदिवासी वोट ही मिला है.
झारखंड में बीजेपी ने आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित सभी लोकसभा सीट खो दी हैं. लेकिन अगर वोट शेयर के मामले में देखेंगे तो पता चलता है कि बीजेपी और उसके सहोयगी दलों को ज़्यादा वोट मिला है. यहां पर बीजेपी को करीब 38 प्रतिशत वोट शेयर मिला है जबकि इंडिया गठबंधन को सिर्फ़ 36 प्रतिशत वोट मिला है.
महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है जहां पर आदिवासी बीजेपी से काफ़ी नाराज़ नज़र आता है. यहां पर इंडिया गठबंधन को कुल आदिवासी वोट का 61 प्रतिशत मिला है जबकि एनडीए को सिर्फ़ 29 प्रतिशत वोट ही मिल पाया है.
सीएसडीएस-लोकनीति के हाल ही में प्रकाशित पोस्ट पोल सर्वे से भी ऐसा ज़रूरी लगता है कि बीजेपी को आदिवासी सीटों के मामले में बड़ा फ़ायदा हुआ है. वहीं मोदी सरकार की लगातार आदिवासी केंद्रित योजनाओं और प्रचार के बावजूद बीजेपी को कोई नुकसान हुआ है.
लेकिन यह बात जहां महाराष्ट्र के मामले में ठीक नज़र आती है तो वहीं झारखंड के मामले में सभी आदिवासी आरक्षित सीटें खोने के बाद भी बीजेपी को वोट शेयर का कोई नुकसान नज़र नहीं आता है.
महाराष्ट्र और झारखंड में विधान सभा चुनाव इस साल के अंत तक होने की उम्मीद है. इन राज्यों में झारखंड ऐसा है जहां पर सरकार किसकी बनेगी इसमें आदिवासी की राय मायने रखती है.
लोकसभा चुनाव परिणाम से इंडिया गठबंधन को विधान सभा चुनाव के लिए एक अच्छा स्टार्ट मिला है. लेकिन आंकड़ों यह बताते हैं कि झारखंड में बीजेपी काफ़ी मजबूत स्थिति में है.