HomeGround Reportसामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान की दावेदारी करता संथाल समुदाय

सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान की दावेदारी करता संथाल समुदाय

संथाल आदिवासी समुदाय देश का तीसरा सबसे बड़ा समुदाय है. यह सच है कि अभी तक आदिवासी समुदायों को भारत की राजनीति में उनकी उचित भागीदारी नहीं मिली है. लेकिन आदिवासी समुदाय अपनी पहचान को मज़बूती से पेश करते हुए राजनीतिक हिस्सेदारी माँग रहे हैं.

झारखंड की उपराजधानी कहे जाने वाले दुमका, में 1855 के हूल नायकों, सिदो कान्हू की मूर्तियाँ लगी हैं. संथाल वीर नायकों के इन पुतलों में इनका जो रूप दिखाया गया है, उससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि  डेढ़ सौ -दो सौ साल पहले संथाल परगना के पुरूष की वेशभूषा कैसी थी.

संथाल पुरुषों कि परंपरागत वेशभूषा में बदन पर एक ही कपड़ा रहता है जिसे पचीं या पचीं डेंगा बोला जाता है. जैसे सिदो कान्हू हीरो हैं वैसे ही फूलो-झानो भी हूल की नायिका हैं. सिदो कान्हू की तरह ही फूलो झानों के पुतले भी दुमका में लगे हैं.

इन मूर्तियों में भी आप देखेंगे कि उनको परंपरागत संथाल वेशभूषा में सजाया गया है. दुमका के अलावा भी संथाल परगना में लगभग हर गाँव और क़स्बे में इन आदिवासी नायक नायिकाओं की मूर्तियाँ लगी मिलती हैं. ये मूर्तियाँ दो बातों की प्रतीक हैं कि आदिवासी कैसे अपने इतिहास और सांस्कृतिक पहचान को assert कर रहा है, अपनी ताक़त के तौर पर पेश करना चाहता है. पूरी कहानी के लिए उपर वीडियो लिंक को क्लिक कर देखें.

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