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सांप के काटने से आदिवासी लड़की की मौत को टाला जा सकता था

अगर गांव तक सड़क होती या फिर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में सांप के ज़हर को उतारने की दवा होती तो 18 महीने की आदिवासी लड़की की जान ना गई होती. भारत के ग्रामीण इलाकों में हर साल करीब 58000 मौत साँप काटने से होती हैं.

तमिलनाडु के वेल्लोर ज़िले में सांप के काटने (snake bite) से एक आदिवासी लड़की की मौत हो गई. यह लड़की वेल्लोर ज़िले के एक गांव अतिमारतुरकोलाई की रहने वाली थी. परिवार ने लड़की की उम्र करीब 18 महीने की बताई है. 

वेल्लोर ज़िले की अल्लेरी पहाड़ियों में बसी 12 आदिवासी बस्तियों में से अतिमारतुरकोलाई एक है. इस बस्ती में रहने वाले एस विजी, उनकी पत्नी और दो बच्चे अपने झोपड़े के बाहर सो रहे थे. उस समय रात के करीब 9 बजे थे. अचानक बच्ची की रोने की आवाज़ से पति पत्नी की नींद टूटी तो उन्होंने देखा कि उनकी बच्ची के पास से एक सांप झाड़ी की तरफ जा रहा है.

इस आदिवासी बच्ची के माता-पिता कुछ और लोगों को साथ लेकर सरकारी अस्पताल की तरफ भागे थे. इनकी बस्ती से सरकारी अस्पताल की दूरी कम से कम 17 किलोमीटर बताई गई है. इस बच्ची के माता-पिता बच्ची को लेकर देर रात अस्पताल पहुंच गए, लेकिन तब तक बच्ची दम तोड़ चुकी थी.

इस बच्ची के मां-बाप ने कहा कि उनके गांव तक अगर एक सड़क बन जाती तो आज उनकी बच्ची बच गई होती. इस बच्ची के मां-बाप की पीड़ा का अंत यहीं नहीं हुआ, बल्कि उन्हें अपनी बेटी का मृत शरीर गांव तक ले जाने में भी काफी कष्ट उठाना पड़ा.

पोस्टमार्टम के बाद अस्पताल ने एंबुलेंस से इस बच्ची के शरीर को उसके गांव तक पहुंचाने का इंतज़ाम किया था. लेकिन एंबुलेंस के लिए पहाड़ी रास्ते पर जाना संभव नहीं था. अंतत इस बच्ची के मां बाप अपनी बच्ची के शरीर को गोद में उठा कर आठ किलोमीटर तक ले गए. 

सांप के ज़हर से होने वाली मौतें टाली जा सकती हैं

भारत में हर साल करीब 58000 लोग सांप के डसने से मारे जाते हैं. यह आंकड़ा 2000 से 2019 के बीच का बताया गया है. इन मौतों में से अधिकतर देश के आदिवासी इलाकों में ही होती हैं. कई अध्य्यन यह भी बताते हैं कि आदिवासी इलाकों में सांप काटने पर अक्सर ओझा या स्थानीय वैद्यों पर निर्भर करने की वजह से भी की जान चली जाती हैं. 

आदिवासी भारत में इसलिए भी सांप काटने की घटनाएँ ज़्यादा होती हैं क्योंकि यहां पर लोग अभी भी कच्चे घरों में रहते हैं और ज़मीन पर ही सोते हैं.

सांप के ज़हर से बचाने वाले इंजेक्शन को ज़रूरी दवाओं की सूची में शामिल किया गया है. इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टेंडर्ड्स (India Public Health Standard) की 2012 की गाइडलांइस के अनुसार इमेरजेंसी मैनेजमेंट के लिए ज़रूरी दवाओं में सांप के ज़हर को उतारने वाले इंजेक्शन को भी रखा जाना ज़रूरी है. 

लेकिन अक्सर दूर-दराज के आदिवासी इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर सांप के ज़हर को उतारने वाले इंजेक्शन नहीं मिलते हैं. इसलिए आदिवासी गांवों से लोगों को शहरों की तरफ भागना पड़ता है.

यह भी एक तथ्य है कि सांप के काटने के मामले में अधिकतर मौतें ऐसी हैं जिन्हें टाला जा सकता है. लेकिन समय पर इलाज नहीं मिलना एक बड़ी बाधा बना हुआ है. 

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